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लश्कर से संबंधित गिरोह प्रतिबंधित

वाशिंगटन | एजेंसी: अमरीका ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े कई गिरोहों को प्रतिबंधित कर दिया है. जिसमें जमात-उद-दावा, अल-अनफल ट्रस्ट, तहरीक-ए-हुरमत-ए-रसूल और तहरीक-ए-तहफुज किबला अव्वाल शामिल हैं.

गौरतलब है कि लश्कर पर मुंबई में वर्ष 2008 में हुए हमले की साजिश करने का आरोप है, जिसमें करीब 170 लोगों को मौत हो गई थी और सैकड़ों घायल हुए थे.

अमरीका के वित्त मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि लश्कर के उपाध्यक्ष रह चुके नजीर अहमद चौधरी और मुख्य वित्त अधिकारी रह चुके मुहम्मद हुसैन गिल को अमरीका ने वैश्विक आतंकवादियों की सूची में शामिल किया है.

इस प्रतिबंध के तहत अमरीका में मौजूद उनकी संपत्तियों को जब्त कर लिया जाएगा और अमरीकी नागरिकों को उनके साथ व्यवसाय करने की अनुमति नहीं होगी.

अमरीकी विदेश मंत्रालय ने बुधवार को कहा, “वर्ष 2008 के मुंबई हमले की जिम्मेदारी लेने वाला लश्कर इस साल 23 मई को अफगानिस्तान के हेरात स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास में हुए हमले के लिए भी जिम्मेदार है.”

विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मैरी हार्फ ने बुधवार को संवाददाताओं से कहा, “यह प्रतिबंध लश्कर को मिलने वाली हर तरह सहायता व आर्थिक मदद को रोकेगा, जिससे भविष्य में उसके हमलों को रोकने में भी मदद मिलेगी.”

उन्होंने कहा, “अमरीका और भारत के बीच सहयोग की वजह से डेविड हेडली सहित कई आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है.”

मुंबई हमले के लिए रेकी करने वाले हेडली ने लश्कर के कहने पर खुफिया एजेंसियों का खुद पर से ध्यान भटकाने के लिए अपना नाम डेविड हेडली कर लिया था, जबकि पाकिस्तानी पिता और अमरीकी मां की संतान हेडली का मूल नाम दाऊद सैयद गिलानी है.

हार्फ ने कहा, “न्याय मंत्रालय और एफबीआई ने भारत सरकार को मुंबई हमले की जांच में व्यापक सहायता दी है, जिसमें डेविड हेडली का साक्षात्कार दिलाना और अतिरिक्त आवश्यक सबूत जुटाना शामिल है.”

प्रवक्ता ने कहा कि राष्ट्रपति बराक ओबामा और हर किसी का रवैया इस बात को लेकर बिल्कुल साफ रहा है कि अमरीका अन्य हमलावरों के खिलाफ भी कार्रवाई करना जारी रखेगा.

यह पूछे जाने पर क्या अमरीका एक बार फिर भारत को हेडली और उसके साथी तहव्वुर हुसैन राणा से संपर्क साधने की अनुमति देगा, हार्फ ने कहा कि इस बारे में न्याय मंत्रालय और संघीय जांच ब्यूरो अधिक बेहतर जवाब दे पाएंगे.

अमरीका के इस कदम से माना जा रहा है कि इन आतंकी संगठनों को आर्थिक तौर पर मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. जिससे उनके गतिविधियों में कमी आयेगी.

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