सेब उत्पादकों को नेपाली मजदूरों का इंतजार
शिमला | एजेंसी: हिमाचल प्रदेश के फल उत्पादकों को नेपाली मजदूरों का बेसब्री से इंतजार है.
गोरखा मजदूर पिछले करीब पांच दशकों से राज्य के 2,000 करोड़ रुपये से अधिक के सेब उद्योग में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ समय से बागानों में इन मजदूरों की संख्या काफी घट गई है.
मजदूरों की संख्या घटने के कारण फल तोड़ने और फलों की पेटियों को उठाकर सड़क तक पहुंचाने में काफी देरी हो रही है.
मजदूरों के तलाश में फल उत्पादकों ने शिमला के मुख्य बस अड्डों पर डेरा जमा रखा है और जैसे ही नेपाली मजदूर बसों से उतरते हैं, वे उन्हें पटाने में लग जाते हैं.
एक सेब उत्पादक राजीव मंता ने शिमला में कहा, “हमें तनकपुर से आने वाली बस का इंतजार है, जिससे आम तौर पर गोरखा आते हैं.”
तनकपुर उत्तराखंड में भारत-नेपाल सीमा पर शिमला से करीब 700 किलोमीटर दूर स्थित है. यह शिमला से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है.
अधिकतर नेपाली राज्य परिवहन निगम की बसों से शिमला जाने को वरीयता देते हैं. ये बसें तनकपुर से शिमला के बीच रोजाना चलती हैं. एक ओर की यात्रा में 18 घंटे लगते हैं. इसका किराया 682 रुपये है.
बागवानी विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि हिमाचल प्रदेश, देश का एक प्रमुख सेब उत्पादक क्षेत्र है. इस साल साढ़े तीन करोड़ पेटी से अधिक सेब उत्पादन की उम्मीद है. जिसका कुल वजन करीब 7,65,000 टन होगा.
कुछ लोगों ने हालांकि कहा कि बड़े शहरों में बेहतर अवसर मिलने के कारण नेपाली मजदूर इस शहर को छोड़ते जा रहे हैं.
शिमला के कोटगढ़ में सेब और स्ट्रॉबेरी उत्पादक दीपक बेगटा ने कहा, “बागानों में शायद ही कोई नेपाली मजदूर बचा हो. बड़े शहरों में कम मेहनत वाले काम और बेहतर अवसर मिलने के कारण उन्होंने इस क्षेत्र को छोड़ दिया है.”