चुनाव विशेष

जीत गये मतदाता

दिवाकर मुक्तिबोध
छत्तीसगढ़ में नक्सली आतंक को खारिज करते हुए लोकतंत्र के महापर्व का शानदार आगाज हुआ. बस्तर और राजनांदगांव के सभी जिलों की 18 सीटों में से अधिकांश नक्सली दहशत के साए में थी लेकिन मतदाताओं ने बड़ी हिम्मत दिखाते हुए भारी संख्या में मतदान करते हुए यह संदेश दिया कि कोई दहशत, कोई आतंक उन्हें मतदान के लोकतांत्रिक अधिकार से जुदा नहीं कर सकता.

यह निश्चय ही काबिलेतारीफ है कि छिटपुट वारदातों को छोड़कर बिना किसी हिंसा के बस्तर में शांतिपूर्वक मतदान हुआ जबकि नक्सलियों ने मतदान के बहिष्कार का फरमान जारी किया था. नक्सलियों ने अपनी रणनीति के तहत हिंसा का जाल फैलाने की कोशिश भी की किंतु सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त और सुरक्षा बलों की कर्मठता व सक्रियता के चलते वे अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हुए.

सन् 2003 एवं 2008 के चुनाव की तरह इस बार भी बस्तर के मतदाताओं ने नक्सलियों को करारा जवाब देते हुए यह साबित किया कि लोकतंत्र में ही उनका अगाध विश्वास है तथा बन्दूक की नोक से परिवर्तन लाने की कोई साजिश कभी कामयाब नहीं हो सकती. यकीनन बस्तर में लोकतंत्र की जीत हुई और हिंसा का पराभव हुआ है.

घोर नक्सल प्रभावित जिले कोंटा, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, भानुप्रतापपुर जैसे इलाकों में मतदान का प्रतिशत अमूमन पिछले चुनाव जैसा ही है. बीजापुर में पिछले चुनाव में मात्र 30 प्रतिशत वोटिंग हुई थी लेकिन इस बार वोटों का प्रतिशत और घट गया. इससे यह बात साफ होती है कि बीजापुर में नक्सली मतदाताओं को वोट करने से रोकने में कामयाब हुए हैं. यानी उनकी दहशतगर्दी बीजापुर में शबाब पर है.

संभाग में सबसे न्यूनतम 24 प्रतिशत वोट इसी विधानसभा क्षेत्र में ही पड़े हैं. लेकिन राजनांदगांव जिले के मोहला-मानपुर ने नक्सली फरमान को दरकिनार करते हुए भारी संख्या में मतदान करके जिस जज्बे का परिचय दिया, अद्भुत है. यहां 75 फीसदी वोटिंग एक कीर्तिमान है.

बस्तर संभाग की 12 और राजनांदगांव जिले की 6 विधानसभा सीटों पर मतदान के साथ ही छत्तीसगढ़ में चुनाव का प्रथम चरण पूरा हो गया है. द्वितीय और अंतिम चरण में 72 सीटों के भाग्य का फैसला 19 नवंबर को होगा. पहले चरण की 18 सीटों पर भारी-भरकम मतदान किस पार्टी के पक्ष में जाएगा, कहना मुश्किल है. अमूमन यह माना जाता है कि भारी मतदान सत्ता विरोधी लहर का परिणाम होता है. लेकिन यदि हम 2008 के चुनाव को देखें तो उस दौर में भी बस्तर में भारी मतदान हुआ था लेकिन परिणाम व्यवस्था के खिलाफ नहीं व्यवस्था के पक्ष में गया था. इसी वजह से सत्तारूढ़ भाजपा को बस्तर की 12 में से 11 सीटें एवं राजनांदगांव में 6 में से 4 सीटें मिली थीं.

हालांकि कांग्रेस ने यह आरोप लगाया था कि भारी मतदान बोगस वोटिंग की वजह से हुआ. किंतु इस बार मतदान केन्द्रों में चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था के कारण यह संभावना कहीं नहीं ठहरती लिहाजा कहा जा सकता है कि इस बार की वोटिंग भी एक लहर के रूप में है जो अपने साथ किसे बहा ले जाएगी, और किसे सवारी करने देगी फिलहाल कहना मुश्किल है अलबत्ता इस बारे में सबके अपने-अपने दावे हो सकते हैं.

इस चुनाव में भाजपा के पास विकास सबसे बड़ा मुद्दा है जबकि कांग्रेस ने कुशासन एवं भ्रष्टाचार को अपना प्रमुख हथियार बना रखा है लेकिन इससे कहीं ज्यादा फायदा उसे एंटी इंकम्बेसी फैक्टर पर भरोसा है. यदि इसने लहर का रूप ले लिया, जैसा कि कहा जा रहा है तो मानना होगा बस्तर में परिणाम पिछले चुनाव के ठीक उलट आएंगे और यही स्थिति राजनांदगांव जिले की 6 सीटों पर भी होगी.

यदि हम लहर की बात कर रहे हैं तो यह निश्चित है कि दूसरे चरण की शेष 72 सीटें भी इसी लहर पर सवार रहेंगी यानी इन सीटों पर भी भारी मतदान की उम्मीद की जा सकती है और यदि ऐसा हुआ तब कोई ठीक-ठीक अनुमान लगाया जा सकेगा. फिलहाल यही कहा जा सकता है कि मौन मतदाताओं ने बस्तर और राजनांदगांव में अपना फैसला दे दिया है.

लेखक हिंदी के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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