वीआईपी कल्चर से दूर हैं कई देश
नई दिल्ली | संवाददाता: वीआईपी कल्चर और लाल बत्ती को लेकर भारत में अभी बहस शुरु हुई है.
लेकिन दुनिया के कई देश बरसों से इस वीआईपी कल्चर और लाल बत्ती जैसी विशिष्टता से कोसों दूर हैं. इन देशों में किसी को भी विशिष्ट होने का दर्ज़ा नहीं है. यहां विशिष्ट पदों पर बैठे लोगों का आचार-व्यवहार भी आम लोगों की तरह ही है.
सूरज का घर कहे जाने वाले नार्वे से लेकर स्वीडन तक ऐसे कई देश हैं, जहां लोकसेवक और जनप्रतिनिधि आम लोगों की तरह ही सारी सुविधाओं का उपयोग करते हैं. इन देशों में वीआईपी लोगों को सुरक्षा व्यवस्था तो मिलती है लेकिन इसके अतिरिक्त ऐसा कुछ भी नहीं है, जो उनकी जीवन शैली में वीआईपी की तरह का हो.
ओस्लो में प्रधानमंत्री अर्ना सोलबर्ग को कभी भी आम लोगों के साथ किसी रेस्तोरां में चाय-कॉफी पीते देखा जा सकता है. अर्ना का कहना है कि अगर आप आम जनता के सेवक होने का दावा करते हैं तो आपको आम जनता के साथ दिखना पड़ेगा, उनके साथ रहना होगा. अगर आपमें विशिष्ठता का भाव आ गया तो तय मान कर चलिये कि आप कम से कम जनता से जुड़े मामलों में ठीक-ठीक निर्णय नहीं ले पायेंगे.
नार्वे के दूसरे शीर्ष पदों पर बैठे लोगों का भी यही हाल है. उन्हें भी आम जनता के साथ ही जीवन गुजारते और वैसे ही सामाजिक स्तर में देखा जा सकता है.
स्वीडन जैसे देशों में भी राष्ट्राध्यक्षों का सामाजिक स्तर आम लोगों की तरह ही है. वहां के प्रधानमंत्री स्टेफान ल्योव्हेन को भी आम लोगों के साथ, साधारण रेलगाड़ियों में सफर करते अक्सर देखा गया है. वीआईपी होने का भाव वहां भी नहीं है.
भारत में भी माणिक सरकार जैसे मुख्यमंत्री रहे हैं, जो अपनी पत्नी के साथ रिक्शा में बैठ कर सब्जी खरीदने जाने के लिये मशहूर रहे हैं. बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य या ममता बैनर्जी की भी सादगी की चर्चा होती है. बंगाल सरकार के मंत्री भी अपनी सादगी के लिये एक जमाने में प्रसिद्ध रहे हैं. बिहार में मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर की सादगी की मिसाल राजनीति में हमेशा दी जाती है.