मौत से हार गये विद्याचरण शुक्ल
नई दिल्ली | संवाददाता: नक्सली हमले में घायल छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल का मंगलवार को निधन हो गया. 25 मई को बस्तर के जीरम घाटी में हुए माओवादी हमले में घायल विद्याचरण शुक्ल को तीन गोलियों लगी थीं और उनका गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में इलाज चल रहा था. मंगलवार की दोपहर को चिकित्सकों ने उनके निधन की घोषणा की.
मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल के बेटे विद्याचरण शुक्ल ने कई बार केंद्रीय मंत्री की भूमिका निभाई. 29 साल की उम्र में वे 1957 में तीसरी लोकसभा में वे महासमुंद इलाके से सांसद चुने गए. इसके बाद वे चौथी, पाचवीं, सातवीं, आठवीं, नौवी, दसवीं लोकसभा के सदस्य चुने गए. वे कुल 9 बार लोकसभा के लिये चुने गये.
1929 में जन्में विद्याचरण शुक्ल 1966-67 से लेकर 1996 तक कई बार विभिन्न विभागों के केंद्रीय मंत्री रहे. वे नरसिंह राव सरकार के बाद कई बार गैर-कांग्रेसी पार्टियों में गए जिसमें चन्द्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी और भाजपा शामिल है. इसके बाद वे कांग्रेस में लौट आए.
इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिंह राव के दौर में विद्याचरण शुक्ल से ज्यादा ताकतवर राजनेता कांग्रेस में शायद ही कोई रहा हो. एक समय तो कहा जाता था कि वे राजीव गांधी को हटा कर खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते थे. यही कारण है कि उन्हें सोनिया गांधी ने कभी भी ज्यादा महत्व नहीं दिया.
उनके भाई श्यामाचरण शुक्ल तीन बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ तो विद्याचरण शुक्ल नए राज्य के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में से एक थे.
इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाये जाने के समय वे सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे और सेंसरशीप के कारण उनकी कड़ी आलोचना हुई थी. ‘किस्सा कुर्सी का’ जैसी फिल्मों के प्रिंट जलवाने से लेकर किशोर कुमार के गानों को रेडियो टीवी में बंद करवाने के कारण भी वे आलोचना के केंद्र में रहे थे.