वर्षा डोंगरे मामले की जांच जल्दी करने के निर्देश
रायपुर | संवाददाता: वर्षा डोंगरे मामले की जांच जल्दी करने के निर्देश जेल विभाग ने जारी किये हैं. जेल विभाग के सूत्रों के अनुसार दुर्ग के जेल अधीक्षक को ही मामले की जांच करने के लिये कहा गया है.
इससे पहले रायपुर सेंट्रल जेल की डिप्टी जेलर रही वर्षा डोंगरे ने अपने मामले की जांच जेल विभाग के बजाए किसी अन्य विभाग से करवाने का अनुरोध किया था. माना जा रहा था कि जेल के कई बड़े अधिकारियों के खिलाफ गंभीर आरोप के मद्देनजर जेल प्रशासन मामले की जांच किसी अन्य विभाग के अधिकारी से करवा सकता है. लेकिन जेल प्रशासन ने उनकी मांग को ठुकरा दिया. जेल प्रशासन ने अब दुर्ग के जेल अधीक्षक को पत्र लिख कर इस प्रकरण की जांच शीघ्र करने के निर्देश जारी किये हैं.
गौरतलब है कि आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार को लेकर वर्षा डोंगरे ने फेसबुक पर गंभीर टिप्पणियां की थीं. इसके बाद राज्य सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया था. निलंबन के बाद उनका मुख्यालय अंबिकापुर बना दिया गया है.
वर्षा डोंगरे पहले भी राज्य सरकार के लिये परेशानी का कारण बनी हुई थीं. उन्होंने राज्य सेवा आयोग में हुई गड़बड़ी की लंबी अदालती लड़ाई लड़ी थी, जिसके बाद राज्य सरकार मुश्किल में आ गई थी. इस मामले में वर्षा डोंगरे के पक्ष में फैसला आया था और राज्य के 52 डिप्टी कलेक्टर, एसडीएम जैसों की नौकरी पर बन आई थी. फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है.
इस बीच वर्षा डोंगरे ने राज्य में आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार को लेकर फेसबुक पर जो कुछ लिखा, उसमें सरकार को कटघरे में रखा गया था. वर्षा ने इस पोस्ट के बाद छुट्टी ली लेकिन जेल प्रशासन ने उनकी छुट्टी के आवेदन को अस्वीकार किया और इसके बाद आनन-फानन में जेल प्रशासन ने वर्षा डोंगरे को निलंबित कर दिया.
वर्षा डोंगरे ने अपने फेसबुक वॉल पर लिखा था- मुझे लगता है कि एक बार हम सभी को अपना गिरेबान झांकना चाहिए, सच्चाई खुद ब खुद सामने आ जाएगी. घटना में दोनों तरफ मरने वाले अपने देशवासी हैं…भारतीय हैं. इसलिए कोई भी मरे तकलीफ हम सबको होती है. लेकिन पूँजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में जबरदस्ती लागू करवाना… उनकी जल जंगल जमीन से बेदखल करने के लिए गांव का गांव जलवा देना, आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, आदिवासी महिलाएं नक्सली हैं या नहीं, इसका प्रमाण पत्र देने के लिए उनका स्तन निचोड़कर दुध निकालकर देखा जाता है. टाईगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों को जल जंगल जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है, जबकि संविधान अनुसार 5 वीं अनुसूची में शामिल होने के कारण सैनिक सरकार को कोई हक नहीं बनता आदिवासियों के जल जंगल और जमीन को हड़पने का….आखिर ये सबकुछ क्यों हो रहा है. नक्सलवाद खत्म करने के लिए… लगता नहीं.
वर्षा के अनुसार- सच तो यह है कि सारे प्राकृतिक खनिज संसाधन इन्हीं जंगलों में हैं, जिसे उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है. आदिवासी जल जंगल जमींन खाली नहीं करेंगे क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है. वो नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं, उन्हे फर्जी केशों में चारदीवारी में सड़ने भेजा जा रहा है. तो आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जायें. ये सब मैं नहीं कह रही सीबीआई रिपोर्ट कहती है, सुप्रीम कोर्ट कहती है, जमीनी हकीकत कहती है. जो भी आदिवासियों की समस्या समाधान का प्रयत्न करने की कोशिश करते हैं, चाहे वह मानव अधिकार कार्यकर्ता हों, चाहे पत्रकार… उन्हें फर्जी नक्सली केसों में जेल में ठूंस दिया जाता है. अगर आदिवासी क्षेत्रों में सबकुछ ठीक हो रहा है तो सरकार इतना डरती क्यों है. ऐसा क्या कारण है कि वहां किसी को भी सच्चाई जानने के लिए जाने नहीं दिया जाता.
मैंने स्वयं बस्तर में 14 से 16 वर्ष की मुड़िया माड़िया आदिवासी बच्चियों को देखा था, जिनको थाने में महिला पुलिस को बाहर कर पूरा नग्न कर प्रताड़ित किया गया था. उनके दोनों हाथों की कलाईयों और स्तनों पर करेंट लगाया गया था, जिसके निशान मैंने स्वयं देखे. मैं भीतर तक सिहर उठी थी कि इन छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टार्चर किस लिए. मैंने डाक्टर से उचित उपचार व आवश्यक कार्यवाही के लिए कहा.
वर्षा डोंगरे ने सोशल मीडिया में लिखा- हमारे देश का संविधान और कानून यह कतई हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें. इसलिए सभी को जागना होगा. राज्य में 5 वीं अनुसूची लागू होनी चाहिए. आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए. उन पर जबरदस्ती विकास ना थोपा जाये. आदिवासी प्रकृति के संरक्षक हैं. हमें भी प्रकृति का संरक्षक बनना चाहिए ना कि संहारक… पूँजीपतियों के दलालों की दोगली नीति को समझें …किसान जवान सब भाई-भाई हैं. अतः एक दूसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और ना ही विकास होगा. संविधान में न्याय सबके लिए है, इसलिए न्याय सबके साथ हो.
अपने अनुभवों को साझा करते हुये वर्षा डोंगरे ने लिखा- हम भी इसी सिस्टम के शिकार हुए लेकिन अन्याय के खिलाफ जंग लड़े, षडयंत्र रचकर तोड़ने की कोशिश की गई, प्रलोभन रिश्वत का ऑफर भी दिया गया, वह भी माननीय मुख्य न्यायाधीश बिलासपुर छ.ग. के समक्ष निर्णय दिनांक 26.08.2016 का पैरा 69 स्वयं देख सकते हैं. लेकिन हमने इनके सारे इरादे नाकाम कर दिए और सत्य की विजय हुई… आगे भी होगी.
वर्षा ने लिखा- अब भी समय है, सच्चाई को समझे नहीं तो शतरंज की मोहरों की भांति इस्तेमाल कर पूंजीपतियों के दलाल इस देश से इन्सानियत ही खत्म कर देंगे. ना हम अन्याय करेंगे और ना सहेंगे. जय संविधान, जय भारत.