UP: सपा-कांग्रेस गठजोड़ से संभावना
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन के आसार नज़र आ रहे हैं. एक दिन पहले दिल्ली में समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव तथा कांग्रेस के रणनीतिकार एवं प्रचार का जिम्मा संभाले प्रशांत किशोर की मुलाकात से इसके कयास लगाये जा रहे हैं. राजनीति में कोई भी स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता है. इसलिये जहां कुनबे में कलह के बाद मुलायम सिंह को एक मजबूत साथी की जरूरत है वहीं कांग्रेस भी जानती है कि वह अपने दम पर यूपी का समर नहीं जीत सकती है. इसलिये आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है वाले सिद्धांत के अनुसार यदि दोनों पार्टियों के बीच चुनावी गठबंधन होता है तो कोई आश्चर्य न होगा.
मुलायम सिंह की समादवादी पार्टी की स्थिति डावांडोल है तो कांग्रेस को भी लोकसभा चुनाव के पहले यूपी में नैय्या पार कराने के लिये बिहार के समान किसी करिश्मे की आवश्यकता है. उल्लेखनीय है कि बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल युनाइटेड तथा कांग्रेस के महागठबंधन को 243 विधानसभा में से 178 सीटे मिल गई थी. जबकि भाजपा को मात्र 53 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस के लिये अगले लोकसभा चुनाव के पहले अपने आप को इस स्थिति में लाने की चुनौती है जहां से खड़े होकर भाजपा को ललकारा जा सके. जाहिर है कि इसके लिये कांग्रेस के पास मौजूदा हालात में गठबंधन करने के अलावा कोई चारा नहीं है.
अब जरा उत्तरप्रदेश विधानसभा के 2012 के आकड़े तथा लोकसभा चुनाव 2014 के आकड़ों पर गौर कर लें.
उत्तरप्रदेश विधानसभा में कुल 403 सीटें हैं जिनमें से 318 सामान्य तथा 85 एससी के लिये आरक्षित है. 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को विधानसभा की 224 सीटे तथा 29.13 फीसदी मत मिले थे. वहीं कांग्रेस को 28 विधानसभा सीटें तथा 11.65 फीसदी मत मिले थे. जबकि भाजपा को 47 विधानसभा सीटों के साथ 15 फीसदी मत तथा बसपा को 80 सीटों के साथ 25.91 फीसदी मत मिले थे.
इस तरह से यदि 2012 की यथास्थिति में सपा-कांग्रेस गठजोड़ के खाते में 37.56 फीसदी मत तथा 252 विधानसभा की सीटें जाती दिख रही है. परन्तु 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अप्रत्याशित ढ़ंग से बढ़त हासिल की थी.
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तरप्रदेश में 71 सीटें तथा 42.63 फीसदी मत मिले थे. जबकि सपा को 5 सीट तथा 22.35 फीसदी मत तथा कांग्रेस को 2 सीट तथा 7.53 फीसदी मत मिले थे. इस तरह से 2014 की यथास्थिति में सपा-कांग्रेस गठजोड़ के खाते में 29.88 फीसदी मत एवं 7 सीटें जाती दिख रही है.
पार्टियां लाख दावा करे परन्तु न तो 2012 की यथास्थिति बरकरार है और न ही 2014 की. इस बीच उत्तरप्रदेश की जनता ने समाजवादी परिवार की कलह ही नहीं अखिलेश यादव के दावों तथा जमीनी हकीकत के बीच के फर्क को बखूबी महसूस किया है. वहीं मई 2014 से केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने लोगों को बखूबी बुलेट ट्रेन, स्वच्छता अभियान का ख्वाब तो दिखाया है परन्तु महंगाई के मोर्चे पर वह कोई कामयाबी नहीं दिखा सकी है. न ही वह देश के बेरोजगारों के लिये कोई धमाकेदार योजना ला सकी है.
उलट, राष्ट्रवाद के नाम पर चलाई जा रही मुहिम से एक बड़ा तबका जिसमें धर्म निरपेक्ष, दलित, पिछड़े तथा मुस्लिम शामिल हैं सतर्क हो गये हैं. इन सब का रणनीति वोट उत्तरप्रदेश में भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है. खासकर तब जब यह माना जाता है कि मुस्लिम रणनीतिक तौर पर वोटिंग करते हैं.
सपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ यदि बसपा भी जुड़ जाये तो उत्तरप्रदेश में भाजपा की नैय्या का पार लगना मुश्किल है. 2012 के विधानसभा चुनाव के नतीजे के अनुसार फिर भाजपा के विरोध में 66.69 फीसदी मतो के साथ 332 विधानसभा की सीटें जाती दिख रहीं हैं.
उसी तरह से सपा-बसपा-कांग्रेस के महागठबंधन को 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजे के अनुसार 42.12 फीसदी मत मिलते दिख रहें हैं.
उत्तरप्रदेश में भी बसपा इन दोनों पार्टियों के साथ आ जाये इसकी संभावना दूर-दूर तक नहीं दिख रही है. मायावती निश्चित तौर पर अकेले चुनाव लड़ने जा रही है. हां, बसपा का इतिहास रहा है कि उसने भाजपा के साथ गठबंधन बनाने से कोई परहेज नहीं है.
हालांकि, राजनीति में गणितीय फार्मूले हमेशा लागू नहीं होते हैं. जनता इससे अलग हटकर भी फैसला सुनाती है. बहरहाल, जहां तक मामला सपा-कांग्रेस का है एक मजबूत विकल्प की स्थिति में आखिरी समय पर इसे उनका वोट रणनीतिक तौर पर मिल सकता है जो भाजपा का उत्तरप्रदेश में मात देना चाहते हैं. जरा ठहरिये, पहले सपा-कांग्रेस का गठबंधन बन भी पाता है कि नहीं उसे देख लीजिये.