यूपी चुनाव: RSS का सुझाव
लखनऊ | समाचार डेस्क: बिहार में हार के बाद आरएसएस नहीं चाहता कि भाजपा यूपी में 2017 का चुनाव हारे. इसी तारतम्य में आरएसएस ने अपने सर्वे रिपोर्ट तथा सुझाव सीधे प्रधानमंत्री मोदी को सौंप दी है. इस रिपोर्ट में मोदी को सुझाव दिया गया है कि यूपी चुनाव में सामाजिक समीकरणों पर खास ध्यान दें. उत्तर प्रदेश में मिशन- 2017 फतह करने के लिए हिंदूवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अभियान का खाका तैयार कर लिया है और अपने पूर्व प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी सर्वे रिपोर्ट सौंप दी है.
संघ ने अपनी रिपोर्ट में यूपी में सत्ता वापसी के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि उसे यदि यूपी में की सत्ता में वापस आना है तो अभियान की कमान किसी एक नेता को न सौंपकर एक मजबूत टीम को यूपी में उतारन होगा. केंद्र से किसी ताकतवर नेता को भी यूपी में लगाना पड़े तो लगाया जाए.
सर्वे में लगे लोगों के मुताबिक, भाजपा किसी भी कीमत पर 2017 में यूपी की सत्ता हासिल करना चाहती है. इस लक्ष्य को पाने के लिए उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ गुप-चुप तरीके से अपने वरिष्ठ प्रचारकों और महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली के युवाओं की सर्वे एजेंसियों की सहायता से अध्यन कराया है. उसी रिपोर्ट के आधार पर पार्टी यहां अगले विधानसभा चुनाव की रणनीति तैयार करेगी.
क्षेत्रवार तिकड़ी बनाने की सलाह:
आरएसएस की रिपोर्ट में यूपी में भाजपा की पुन: वापसी के लिए नेताओं के नाम भी सुझाए गए हैं, जिसमें अलग-अलग जातियों के सवर्ण-पिछड़ा-दलित नेताओं को क्षेत्रवार तिकड़ी बनाने की सलाह दी गई है. साथ ही उसके पीछे प्रदेश नेतृत्व के जुझारू नेताओं की युगलवंदी या तिकड़ी को टीम के रूप में खड़ा करना होगा.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अच्छा होगा कि जातियों के नेताओं की जगह जमात के नेताओं की टीम विकसित की जाए. इसके लिए पार्टी को यूपी में बड़ी सर्जरी का सुझाव दिया गया है.
संगठन महामंत्री के लिए सुझाव:
सामाजिक समीकरण बिठाते हुए प्रदेश अध्यक्ष, संगठन महामंत्री, विधानमंडल के दोनों सदनों के नेताओं को नए सिरे से गठित करने को कहा गया है. प्रदेश महामंत्री संगठन (जो संघ का प्रचारक होता है) के पद पर भी ऐसे नेताओं को बैठाने की सिफारिस की गई है जो राज्य के सामाजिक जातीय समीकरण को वोट बैंक में बदलवा सकता हो.
ऐसे नेताओं को संगठन व चुनावी रणनीति का हिस्सा बनाने से मना किया गया है, जिनका रुख यूपी में सत्ता प्रतिष्ठान के प्रति एजेंट जैसी हो तथा जो आर्थिक आक्षेप के लगातार आरोपी रहे हों.
बाहरी को प्रत्याशी न बनाएं:
रिपोर्ट में कहा गया है कि सांसदों के सुझाव पर किसी भी बाहरी व्यक्ति को पार्टी प्रत्याशी न बनाएं, यदि किसी दशा में ऐसा करना उचित लगता हो तो स्थानीय संगठन के लोगों द्वारा उसका प्रस्ताव लाया जाए.
अधिकांश सांसदों के प्रति क्षेत्र में विरोध का स्वर तेज है, इसलिए ऐसे सांसदों समेत उन सभी को जनता के बीच रह कर स्थानीय संगठन के सुझाव पर सार्वजानिक गतिविधियों को संचालित करने का सुझाव दिया गया है.
वरिष्ठ नेताओं के सुझावों पर लिया जाए संज्ञान:
केंद्रीय मंत्रियों को कहा गया है कि वे अपने-अपने क्षेत्र में अपने विभाग से संबंधित ऐसी योजनाओं को साकार मूर्ति दें जो क्षेत्रीय विकास के साथ-साथ गरीबोन्मुख हो. नेपथ्य में भेज दिए गए वरिष्ठ नेताओं के साथ प्रदेश मुख्यालय पर ससम्मान मासिक बैठक कर उनकी टिप्पणी का गंभीरता से संज्ञान लिया जाए. ऐसा जिले स्तर तक व्यवहार में लाया जाए.
मोदी के नेतृत्व में इसी माह होगी महत्वपूर्ण बैठक:
सूत्रो का दावा है कि इसके लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, संघ की ओर से भाजपा के साथ समन्वय का कार्य देख रहे संघ के सहसर कार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, राष्ट्रीय महामंत्री संगठन रामलाल, प्रदेश प्रभारी ओम माथुर तथा सर्वे में लगी टीम दिसंबर माह में ही दिल्ली में कहीं एक दिवसीय चिंतन कार्यक्रम करने का खाका खींच चुकी है.
सामाजिक समीकरण ठीक कर पाई तो विजय तय:
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यदि भाजपा अपने मूल वोट बैंक को संभालते हुए सामाजिक समीकरण के संतुलन के बेड़े के साथ यूपी विधानसभा के 2017 चुनाव में उतरी तो उसका विजय रथ रोक पाना विरोधी पार्टियों के लिए मुश्किल होगा. किसी कारण से यदि यूपी में पार्टी मजबूत होकर नहीं उभरी तो प्रधानमंत्री मोदी अपने जिस मूल मुद्दे को गुप्त तरीके से इस्तेमाल कर 2014 में केंद्र की सत्ता में आए थे, उसी एजेंडे पर 2019 में मुखर हों, वरना नैया पार लगना कठिन हो जाएगा.