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यूपी: वोटरों को टटोलने संघ की ‘अलाव सभा’

लखनऊ | समाचार डेस्क: यूपी चुनाव के पूर्व राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ मतदाताओं का मन टटोलने ‘अलाव सभायें’ करने जा रहा है. इसकी शुरुआत 4 जनवरी 2017 से शुरू होगी तथा 13 जनवरी तक चलेगी. इस ‘अलाव सभा’ में संघ गांव के मजदूर-किसान के मन को टटोलने की कोशिश करेगा. सूत्रों का कहना है कि संघ नोटबंदी के असर को भांपने का प्रयास कर रहा है ताकि उसके आधार पर चुनावी रणनीति बनाई जा सके. माना जा रहा है कि संघ की ‘अलाव सभा’ कुछ-कुछ लोकसभा चुनाव के पहले नरेन्द्र मोदी द्वारा आयोजित किये गये ‘चाय पे चर्चा’ के समान होगी. हां, इस बार लगाम संघ के हाथों में होगी ऐसा सूत्रों का मानना है.

खुले रूप में इस ‘अलाव सभा’ के माध्यम से यूपी सरकार की नाकामियों को मजदूर-किसानों के बीच ले जाया जायेगा परन्तु इसका सूत्रों के अनुसार इसका उद्देश्य नोटबंदी के असर को भांपना ही है. यूपी के सभी 75 जिलों में इसका आयोजन किया जायेगा.

8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा की गई थी. उसके बाद नगदी की कमी के कारण सबसे ज्यादा किसान तथा मजदूरों को परेशानी का सामना करना पड़ा है. रोज कमाने खाने वाले इस नोटबंदी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुये हैं. निर्माण कार्य ठप्प पड़ गये तथा किसानों को उऩके उत्पादों का वाजिब मूल्य न मिल सका. ऐसे में कयास लगाये जा रहें हैं यूपी चुनाव में इसका सामना भाजपा को करना पड़ सकता है.

जानकारों का मानना है कि केन्द्र सरकार के एक और फैसले हालिया फैसले का यूपी चुनाव में विपरीत असर पड़ सकता है. वह है केन्द्र सरकार द्वारा गेहूं के आयात को शुल्क मुक्त कर देना. सितंबर माह में ही केन्द्र सरकार ने गेहूं पर लगने वाले आयात शुल्क को 25 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी कर दिया था. उसके बाद हाल ही में गेहूं पर लगने वाले 10 फीसदी आयात शुल्क को भी हटा दिया गया है.

गौरतलब है कि सितंबर माह में गेहूं पर से आयात शुल्क 25 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी किये जाने के बाद देश के बड़े कारोबारियों ने 5 लाख टन गेहूं का बाहर के मुल्कों से आयात किया था. अब गेहूं पर से आयात शुल्क को पूरी तरह से हटा देने के बाद माना जा रहा है कि इस मैदान के बड़े खिलाड़ी जैसे कारगिल, लुइस ड्रेयफस और ग्लेनकोर बड़े पैमाने पर विदेशों से गेहूं का आयात करेंगे तथा भारतीय बाजार में कम दामों में बेचेंगे.

उल्लेखनीय है कि देश में सबसे ज्यादा गेहूं का उत्पादन उत्तर प्रदेश तथा पंजाब में होता है. इसमें उत्तर प्रदेश गेहूं के उत्पादन के मामले में पहले नंबर पर है तथा पंजाब दूसरे नंबर पर है. उत्तर प्रदेश की 76 फीसदी आबादी तथा पंजाब की 63 फीसदी आबादी खेती पर ही निर्भर है.

इस कारण से सबसे ज्यादा नुकसान इन्हीं दोनों राज्यों के गेहूं उत्पादक बड़े, छोटे एवं मध्यम किसानों पर पड़ेगा. यहां के किसानों को अपने गेहूं को कम कीमत पर बेचना पड़ेगा. जिससे उन्हें नुकसान होगा. इससे गेहूं उत्पादक किसानों में केन्द्र सरकार के खिलाफ माहौल बनेगा.

जाहिर है कि संघ अपने ‘अलाव सभाओं’ में केन्द्र सरकार के इन दोनों फैसलों का गांवों में पड़ने वाले असर का आकलन करेगा. संघ तथा भाजपा के लिये यूपी का रण इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी के आधार पर भाजपा का राजनैतिक भविष्य तय होगा.

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