राजनीति, ट्यूलिप और क्षेत्रीयतावाद
बिनोद रिंगानिया
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की एक बहन लंदन में रहती हैं. उनका नाम है शेख रेहाना. जब मुजीबुर्रहमान की हत्या हुई थी तब वे जर्मनी में थीं. उसके बाद उनका जीवन काफी कष्ट और संघर्ष से होकर गुजरा. वे बाद में लंदन आ गईं और वहां किल्बर्न नामक इलाके में दो जून के खाने तक का इंतजाम करने के लिए काफी कष्ट किया. बाद में उनका वहीं के एक डाक्टर सिद्दिक से विवाह हो गया. उनके एक बेटी ट्यूलिप सिद्दकी हैं.
ट्यूलिप उच्च शिक्षित और आत्मविश्वास से लबरेज युवती है. लेबर पार्टी ने 2015 में होने वाले हाउस आफ कामन्स के चुनाव के लिए किल्बर्न इलाके से ट्यूलिप को मनोनीत किया है. किल्बर्न में बांग्लादेशी मूल के लोगों की अच्छी आबादी है और ट्यूलिप को अपनी जीत का पूरा विश्वास है. वह अपनी मां के साथ अभी से जनसंपर्क अभियान पर निकल पड़ी है.
जिस बात की ओर हम ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं वह यह है कि ब्रिटेन में किस तरह राजनीतिक दल दो साल पहले ही अपने उम्मीदवार तय कर देते हैं ताकि वे अपने चुनाव क्षेत्र में जीत हासिल करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम कर सकें. हमारे यहां अक्सर शिकायत सुनाई देती है कि राजनीति में अच्छे लोग नहीं आते. इसके जायज कारण हैं.
हमारे यहां किस चुनाव क्षेत्र से कौन चुनाव लड़ेगा इसका फैसला ऐन वक्त पर किया जाता है. इसमें कोई निर्धारित तरीका नहीं होता. पार्टी के नेता अक्सर मनमानी करते हैं. कम्युनिस्टों को छोड़कर यह बात हर पार्टी पर लागू होती है. ऐन चुनाव के वक्त पर कुछ लोग थैली लेकर मैदान में कूद पड़ते हैं और जो बेचारा कार्यकर्ता टिकट की आस में पांच साल से काम कर रहा था उसे परे धकेल कर खुद टिकट झटक ले जाते हैं.
ऐसे अनिश्चित माहौल में अपवादस्वरूप ही अच्छे लोग राजनीति में आएंगे. अनिश्चित परिस्थितियों में वही लोग संघर्ष करना स्वीकार करते हैं जिनका और कहीं कुछ हो नहीं पाता है. अपने स्तर से नीचे उतर कर चमचागिरी भी ऐसे ही लोग कर पाते हैं. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने लीक से हटकर कुछ करने का वादा किया था. लेकिन उसने भी लोकसभा चुनावों के लिए अपने उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं. यानी वहां भी फैसला अंतिम समय में होने वाला है.
लंदन में ट्यूलिप बड़े आत्मविश्वास से कहती है कि मैंने अपने दम पर आज लेबर पार्टी का मनोनयन हासिल किया है. आज बांग्लादेश में मुझे पार्टी का उम्मीदवार का बनाया जाता तो लोग सोचते कि उनकी प्रधानमंत्री मौसी परिवार राज चला रही हैं. लेकिन अच्छा है कि यहां लंदन में ऐसा आरोप नहीं लग पाएगा.