टीबी की दवा की कमी से जूझ रहा है छत्तीसगढ़
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में टीबी यानी ट्यूबरक्लोसिस के हज़ारों मरीजों की जान खतरे में है. उन्हें नियमित टीबी की दवा नहीं मिल पा रही है.
राज्यों में यक्ष्मा, तपेदिक, क्षयरोग या टीबी की दवा केंद्र सरकार उपलब्ध कराती है. पिछले कई महीनों से ट्यूबरक्लोसिस की दवा की कमी से छत्तीसगढ़ जूझ रहा है. अब पिछले महीने भर से ट्यूबरक्लोसिस की दवा की आपूर्ति ही नहीं की जा रही है.
संकट ये है कि राज्य के कई शहरों में, खुले बाज़ार में भी ट्यूबरक्लोसिस की दवा उपलब्ध नहीं है.
यह तब है, जब केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ को दिसंबर 2023 तक ट्यूबरक्लोसिस मुक्त करने का लक्ष्य रखा था. राज्य टीबी से तो मुक्त नहीं हो पाया लेकिन ट्यूबरक्लोसिस की दवा नहीं मिलने से राज्य के 50 हज़ार से भी अधिक मरीजों की जान खतरे में है.
इन मरीजों में ड्रग रेसिस्टेंट ट्यूबरक्लोसिस के बढ़ने का ख़तरा पैदा हो गया है.
इधर कई शहरों में सरकारी अस्पतालों को राज्य सरकार ने खुले बाज़ार से ट्यूबरक्लोसिस की दवा खरीद कर उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं. लेकिन खुले बाज़ार में भी ट्यूबरक्लोसिस की दवा मांग के अनुरुप उपलब्ध नहीं है.
हालांकि रायपुर के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी दवाओं की कमी को स्वीकार नहीं करना चाहते. उनका तर्क है कि ज़िला स्तर के अधिकारी दवाओं को मुख्यालय से नहीं ले जा रहे हैं.
लेकिन कोई भी अधिकारी ऑन रिकार्ड यह बात नहीं करना चाहता.
राज्य में कुल टीबी मरीजों की संख्या 2018 में 43,436 थी. यह 2020 में घट कर 34,749 और 2021 में 30,405 रह गई.
अगले साल यानी 2022 में टीबी के मरीजों की संख्या महज 26,062 रह गई और 2023 में तो यह संख्या घट कर 21,718 रह गई.
टीबी के मरीजों को हर दिन या सप्ताह में नियत दिन दवा खाना होता है. अगर दवा की एक डोज़ भी चूक जाए तो इसे बड़ी लापरवाही माना जाता है. अब जबकि केंद्र सरकार ही दवाओं को उपलब्ध नहीं करा पा रही है तो टीबी मरीजों के सामने एक बड़ा संकट पैदा हो गया है.