त्रिपुरा चुनाव और वाम चिंता
तरुण भारतीय | फेसबुक : त्रिपुरा के बारे में मेरे कई भारतीय वाम मार्गी मित्र चिंतित हैं. उन्हें मैं क्या बताउँ. क्योंकि मेरा वामपन भारतीय साम्राज्य के उत्तर पूर्वी औपनिवेशिक रास्तों में भुतियाया सा रहता है, इसीलिए उन्हें मैं बहलाने के लिए भी यह नहीं कह सकता कि त्विप्रा या तिप्पेरा में लाल झंडे का होना कोई माने रखता है.
जब भी कोई त्विप्रा में सीपीएम के बांग्ला स्तालिन सिक्त राज की प्रगतिशीलता के बुलेट प्वाइंट सामने रखता है तो मैं चंद्रकांत मुड़ा सिंह की ये कॉकबरक कविता उन्हें भेजना चाहता हूँ. मुड़ा सिंह की कविताएँ त्रिपुरा के वाम आंदोलन के बिना समझा नहीं जा सकता. उनकी कविताओं में इस सामंतवाद विरोधी जनजातीय आंदोलन का एक हिंदू बंगाली भारतीय राज्य बनने का इतिहास है. जनजातीय स्वायत्तता के हजारों सालों के इतिहास को तथाकथित वर्ग आधारित भारतीय साम्यवादी निरंकुशता से नकारना, त्रिपुरा का समकालीन इतिहास है. ऐसी पार्टी जो दशरथ देव को सालों तक मुख्यमंत्री तक बनने नहीं देता, उस पार्टी को क्या कहें.
छोड़िए कविता पर चलते हैं. कवि अनिल सरकार सीपीएम के नेता, संस्कृति मंत्री थे और चंद्रकांत मुड़ा सिंह के दोस्त. लेकिन दोस्ती पीछे एक मैदानी सांस्कृतिक घमंड हमेशा मंडराता रहता था. चंद्रकांत मुड़ा सिंह ने अनिल सरकार को कहा कि सुनो मैं महाभारत का घटोत्कच नहीं हूँ. मुझे पांडवों के लिए नहीं लड़ना.
मैं
(मंत्री और अग्रज कवि अनिल सरकार के लिए)
तुम गीत सुनना चाहते हो
मैं गा सकता हूँ
ठुमक–ठुमक नाच सकता हूँ
लेकिन नाच दल बनाने के लिए
कृपया मांगना मत पैसे
उस पैसे से मैं मोल लूंगा घोड़ा
घोड़ा और मैं, हम एक जोड़ा
कूदेंगे नाचेंगे और कभी–कभी युद्ध में चले जाएँगे
जहाँ तुम्हारी गाड़ी नहीं जा सकती
तुम हो पारखी कविता के
जो कि मैं लिख सकता हूँ, थोड़ा वक्त चाहिए
नायलॉन की रस्सी से बांध दूँगा शब्द
कोई यह नहीं कह सकता कि कविता का कोई माई–बाप नहीं.
किंतु कविता छपाने के बहाने
कृपया मांगना मत पैसे.
इस पैसे से मोल लूंगा इश्क
और तब इश्क और मैं
बहेंगे बयार में
फूल फुलाएँगे,
कभी–कभी ख़ून टपकाएँगे
इस ख़ून से रंगना नहीं अपना झंडा.
तुम ‘हीरा सिंह’ को जगा सकते हो
मुझ पर दुख करोगे तो कर लो
किन्तु ‘पूर्णश्री त्रिपुरा’ के लिए मांगना मत पैसे
इस पैसे से मैं मोल लूंगा मृत्यु
मृत्यु में ही मेरा महत्व है
मैं हिडिंबा का दूसरा पुत्र हूँ.
-अनुवाद : Tarun Bhartiya चंद्रकांत मुड़ा सिंह के साथ २००२ में अगरतला में दारू पीते हुए