परसा कोयला खदान के ख़िलाफ़ आदिवासी धरने पर
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में परसा कोयला खदान में खनन आदेश के ख़िलाफ़ आदिवासियों ने अनिश्चितकालीन धरना शुरु किया है. राजस्थान सरकार को आवंटित इस कोयला खदान को एमडीओ के तहत अडानी समूह को दिया गया है.
आदिवासियों का आरोप है कि इस कोयला खदान की स्वीकृति के लिए फर्जी ग्रामसभा के दस्तावेजों का सहारा लिया गया है.
इसके अलावा पिछले साल ही हसदेव अरण्य वन्य क्षेत्र की जैव विविधता का अध्ययन करने वाली देश की दो प्रमुख संस्थान ICFRE और भारतीय वन्य जीव संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में भी इस क्षेत्र को पर्यावरणीय दृष्टि से अति संवेदनशील माना है.
भारतीय वन्य जीव संस्थान ने तो हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन से गंभीर दुष्प्रभाव एवं मानव हाथी द्वन्द के विकराल होने की चेतावनी के साथ सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को खनन से मुक्त रखने की सिफारिश की है.
इसके बाद भी राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कोयले की कथित कमी का हवाला दे कर खनन के लिए दबाव बना रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में राजस्थान और अडानी
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में हसदेव अरण्य वन क्षेत्र में राजस्थान सरकार के संयुक्त उपक्रम राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड को 4 कोल ब्लॉक आवंटित है. परसा ईस्ट, केते बासेन इन दोनों कोल ब्लाक में खनन योग्य कुल कोयला 452.46 मिलियन टन है, जिसमे वर्ष 2013 – 2014 से 10 मिलियन टन एवं क्षमता विस्तार के बाद वर्ष 2018 – 2019 से 15 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन हो रहा है.
इस कोल ब्लॉक के विकास और संचालन के लिए अडानी समूह के साथ MDO (माइंस डेवलपर कम आपरेटर) अनुबंध है.
अडानी समूह की वेबसाइट में MDO कंपनी के कार्यो की व्याख्या के अनुरूप परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण से लेकर समस्त स्वीकृतियां हासिल करना, खदान का संचालन करना और कोयले की आपूर्ति करना शामिल है.
कुल 2700 हेक्टेयर की इस परियोजना में दो चरणों में खनन होना था.
जिसे इसी वर्ष राज्य व केंद्र सरकार की सहमति के उपरांत न सिर्फ बदल दिया गया बल्कि इसकी उत्पादन क्षमताभी बढ़कर 15 से 18 मिलियन टन वार्षिक कर दी गई है.
तीसरा कोल ब्लॉक परसा है जिसमे कुल खनन योग्य कुल रिजर्व 200.41मिलियन टन है और इसका भी MDO अनुबंध अडानी समूह के पास है. इस कोल ब्लॉक हेतु जारी भूमि अधिग्रहण और वन स्वीकृति में फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव बनाने के आरोप अडानी समूह पर लगे हैं.
पिछले साल अक्टूबर में इसकी जाँच के आदेश राज्यपाल ने दिए हैं.
इस कोल ब्लॉक के लिए 3 गाँव विस्थापित होंगे, जिसके खिलाफ स्थानीय आदिवासी आन्दोलनरत है और किसी भी कीमत पर अपने जंगल जमीन को छोड़ने तैयार नही हैं. चौंथा कोल ब्लाक केते एक्सटेंसन है, जिसमे कुल खनन योग्य रिजर्व 333.709 मिलियन टन है और इसकी स्वीकृति की कोई भी प्रक्रिया अभी आगे नही बढ़ी है. इस कोल ब्लाक में 97 प्रतिशत क्षेत्र जंगल है.
फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव बनाकर हासिल की गईं स्वीकृतियां
जिस परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं क्लाइमेट चेंज मंत्रालय के द्वारा 21 अक्टूबर 2021 में जारी की गई, वह खनन प्रभावित गाँव साल्ही, हरिहरपुर एवं फतेहपुर की ग्रामसभाओ के फर्जी ग्रामसभा प्रस्ताव पर आधारित है.
इन तीनो गाँव की ग्रामसभाओं द्वारा वर्ष 2014 से खनन परियोजनाओं का सतत विरोध किया गया है लेकिन कम्पनी और प्रशासन की मिलीभगत से इन गाँव की ग्रामसभाओ के फर्जी प्रस्ताव बनाए गए.
वनाधिकार मान्यता कानून 2006 लागू होने के बाद किसी भी परियोजना के लिए वन भूमि के डायवर्सन के पूर्व वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया की समाप्ति और ग्रामसभा की लिखित सहमति आवश्यक है.
परसा कोल ब्लाक के लिए कुल 614 हेक्टेयर वन भूमि भूमि के डायवर्सन हेतु कार्यालय तहसीलदार उदयपुर जिला सरगुजा ने दिनांक 5 /3 2017 को सरपंच / सचिव को पत्र भेजकर अन्नापति प्रमाण पत्र माँगा.
इस खनन से प्रभावित गाँव साल्ही, हरिहरपुर और फतेहपुर के द्वारा दो बार ग्रामसभाओं ने खनन हेतु वन भूमि के डायवर्सन के इस प्रस्ताव का विरोध किया. वाबजूद इसके कलेक्टर द्वारा बार बार ग्रामसभाएं आयोजित करवाई गईं.
आरोप है कि ग्रामसभाओ में सतत विरोध के बाद जिला प्रशासन और कम्पनी के द्वारा ग्रामसभा की कार्यवाही पूर्ण होने के बाद ग्रामीणों की जानकारी के बिना ही अतिरिक्त प्रस्ताव उदयपुर के रेस्ट हाउस में सचिव को बुलाकर जुड़वाया गया.
इसकी जानकारी होने के बाद से तीनो गाँव के ग्रामीण आदिवासी इन फर्जी प्रस्तावों को निरस्त करवाने आन्दोलनरत है.
पिछले साल अक्टूबर में आदिवासियों ने हसदेव से राजधानी रायपुर तक 300 किलोमीटर की पदयात्रा की थी. जिसके बाद राज्यपाल द्वारा इन प्रस्तावों की जाँच के लिए मुख्य सचिव को आदेशित किया गया.
अब जबकि हसदेव के आदिवासी अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन धरना शुरु कर चुके हैं तो माना जा रहा है कि परसा की राह आसान नहीं होगी.