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छत्तीसगढ़ में 1500 से भी कम बचे ये आदिवासी समुदाय

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में एक दर्जन से अधिक ऐसे आदिवासी जनजाति समुदाय हैं, जिनके लुप्त होने का खतरा है. साल दर साल इन आदिवासी समूहों की संख्या में गिरावट आ रही है.

कुछ आदिवासी समूह ऐसे भी हैं, जिनकी जनसंख्या स्थिर बनी हुई है. देश की बात करें तो देश के 18 राज्यों में ऐसे आदिवासी समूहों की संख्या 75 के आसपास है, जिन पर खतरा मंडरा रहा है.

छत्तीसगढ़ में 42 अनुसूचित जनजातियों को अधिसूचित किया गया है. इनमें से 11 जनजातियां ऐसी हैं, जिनकी जनसंख्या डेढ़ हज़ार से भी कम है.

भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में इन अनुसूचित जनजातियों में कई की जनसंख्या 2 हज़ार से भी कम है.

आंकड़ों के अनुसार अंध, भील, भिलाला, बरेला, पटेलिया, भीम मीना, डामोर, डमरिया, कारकू, कोलम, कोरकू, बोपची, मौसी, निहाल, नहूल, बौंडी, बोंडेया जैसी जनजातियों की जनसंख्या दो हजार भी नहीं है.

इसी तरह परजा जनजाति छत्तीसगढ़ में केवल बस्तर में पाई जाति है. 2011 की जनगणना में इनकी संख्या केवल 1212 थी. इनमें 595 पुरुष और 617 महिलायें शामिल थीं. यह जनजाति ओडिशा से लगे हुये बकावंट के जैतगिरी, संघकरमरी, लालागुड़ा जैसे गांवों में सिमट कर रह गई है.

राज्य में सहरिया, सहारिया, सोसिया, सोर, सौर और सोनर जनजाति की संख्या भी धीरे-धीरे कम हो रही है.

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