प्रसंगवश

दिल्ली में ट्रैफिक तानाशाही

रायपुर | जेके कर: दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण का हल ट्रैफिक तानाशाही के रूप में सामने आया है. केजरीवाल सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट की इस टिप्पणी के बाद कि दिल्ली में रहना गैस चेंबर में रहने के समान है, के बाद फैसला लिया है कि निजी वाहन अब सड़को पर माह में 15 दिन ही चलेंगे. इसके लिये फॉर्मूला निकाला गया है कि जिन वाहनों के नंबर का आखिरी अंक सम है वह सम तारीख को चला करेगा. ठीक उसी तरह से जिन गाड़ियों का आखिरी नंबर विषम संख्या है वे विषम संख्या वाली तारीखों को ही चला करेंगे.

उदाहरण के तौर पर जिन गाड़ियों का अंतिम नंबर 1, 3, 5, 7, 9 है वे इन्ही तारीखों को चला करेंगी तथा जिन वाहनों का नंबर 2, 4, 6, 8, 10 है वे इन्ही तारीखों को चला करेंगी. इस बंधन से सार्वजनिक परिवहन जैसे टैक्सी, ऑटो, बस तथा सरकारी व आपातकालीन सेवा वाले गाड़ियों को राहत दी गई है.

यह 1 जनवरी 2016 से लागू किया जायेगा.

बेशक, केजरीवाल सरकार के कैबिनेट का फैसला दिल्ली के सड़को से गाड़ियों के हुजूम तथा प्रदूषण को कम करेगा तथा लोगों को सार्वजनिक परिवहन के साधनों का उपयोग करने के लिये प्रेरित करेगा.

उल्लेखनीय है कि यह निर्णय दो पहिया वाहनों पर भी लागू होगा तथा उन्हें माह में केवल 15 दिन ही सड़कों पर चलने की इजाजत दी गई है. जाहिर है कि दो पहिया वाहनों के मालिक को इन दिनों सार्वजनिक परिवहन के भरोसे या लिफ्ट लेकर चलना पड़ेगा. कारों के मालिक भी अपने पड़ोसी या सहकर्मियों के साथ कोई जुगाड़ जमा लेंगे इससे इंकार नहीं किया जा सकता है.

केजरीवाल कैबिनेट का फैसला पर्यावरण के अनुकूल होते हुये भी तानाशाहीपूर्ण ही माना जायेगा क्योंकि इससे दिल्लीवासियों को प्रदूषण से मुक्ति तो जरूर मिलेगी परन्तु वे अपने घर में कोई आवश्यक काम निकल आने पर भी चार पहिया या दो पहिया वाहन का उपयोग नहीं कर सकेंगे.

उस वक्त क्या होगा जब कोई कर्मचारी ऑफिस से लौटने पर पायेगा कि उसके बच्चे की तबियत खराब है तथा उसे जल्द डॉक्टर के पास ले जाना है. ऐसे में घर में स्कूटर होते हुये भी उसे टैक्सी का सहारा लेना पड़ंगा. इस व्यक्तिगत परेशानी को दिल्ली सरकार का यह निर्णय और परेशान करेगा.

उन माताओं का क्या होगा जो रोज अपने बच्चों को स्कूटी में स्कूल या ट्यूशन छोड़ने जाती हैं. अब उन्हें अधिक पैसे खर्च करके ऑटो या टैक्सी का सहारा लेना पड़ेगा.

सरकारी अफसरों, कर्मचारियों तथा मंत्रियों के गाड़ी पर यह लागू नहीं होगा इसलिये उन्हें परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा. हम उन लोगों की बात कर रहें हैं जो बड़े अरमानों के साथ एक अदद दो पहिया या सस्ती कार अपने जीवनकाल में एक बार ही खरीद पाते हैं.

माना कि चीन के बीजिंग में इस तरह की या इससे मिलती-जुलती प्रणाली का उपयोग वायु प्रदूषण को कम करने के लिये किया जाता है परन्तु वहां की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था भिन्न है. दुनिया में चीन की सड़कों पर सबसे ज्यादा साइकिले पहले से ही चलती हैं. वहां पर तेजी से बढ़ते नवधनवानों के लिये दो गाड़िया रखना जिनका नंबर सम तथा विषम संख्या वाला हो कोई बड़ी बात नहीं है.

ऐसा मैक्सिको के नागरिकों ने किया था. तो क्या दिल्ली वासी भी अपने लिये दो वाहन रखने लगेंगे. इसका सबसे बुरा प्रभाव मध्यवर्ग तथा कमजोर तबके के लोगों को होगा. जिनके पास दो गाड़ियों का विकल्प नहीं होगा.

हालांकि, दिल्ली सरकार के इस निर्णय की तुलना उस अराजकतावादी दृष्टिकोण से नहीं किया जा सकता जिसमें कहा गया था कि, “आंदोलन ही सब कुछ है अंतिम लक्ष्य कुछ नहीं.” गौर करने वाली बात है कि दिल्ली सरकार का उद्देश्य एकदम साफ तथा सटीक है जिसे अराजकतावादी नहीं कहा जा सकता. पर इतना तय है कि इसे ट्रैफिक तानाशाही का नाम दिया जा सकता है.

उल्लेखनीय है कि यह फैसला दिल्ली में पंजीकृत करीब 90 लाख वाहनों पर लागू होगा. शहर में हर रोज करीब डेढ़ हजार नए वाहन पंजीकृत होते हैं.

इन वाहनों में कारों की संख्या करीब 27 लाख है.

दिल्ली सरकार ने बदरपुर के कोयला आधारित एनटीपीसी के बिजली घर को भी बंद करने का फैसला किया है.

सरकार एक एप भी लांच करेगी, जिसके माध्यम से आम जनता, प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की शिकायत दर्ज करा सकेगी.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, दिल्ली के वायु की गुणवत्ता बहुत बुरी है. इसका वायु गुणवत्ता सूचकांक 331 है.

301 से 400 के बीच के वायु गुणवत्ता सूचकांक का मतलब यह है कि इस हवा में यदि अधिक समय तक रहा जाए, तो श्वास संबंधी रोग पैदा हो सकता है.

इससे पहले उठाए गए कदमों से दिल्ली में प्रदूषण के स्तर में विशेष सुधार नहीं हुआ है.

अक्टूबर में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने शहर में प्रवेश करने वाले वाणिज्यिक वाहनों पर पर्यावरण कर की घोषणा की थी.

इसके बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने सभी निजी रेडियो टैक्सी को एक मार्च, 2016 से पहले सीएनजी अपनाने का आदेश दिया था.

गैर सरकारी संगठन ग्रीनपीस ने हाल ही में कहा था कि दिल्ली में घरों के अंदर की वायु में प्रदूषण का स्तर भारतीय मानक के मुताबिक खुली हवा के मुकाबले पांच गुना अधिक है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हालांकि कहा है कि यह निर्धारित स्तर से 11 गुना अधिक है.(एजेसी इनपुट के साथ)

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