ताज़ा खबर

बदहाल हैं टाइगर रिजर्व से विस्थापित आदिवासी

बिलासपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व से विस्थापित 6 गांवों के आदिवासी अब भी परेशान हैं.उनके विस्थापन के 11 साल हो गये. लेकिन वे अब भी अपनी आजीविका के लिए जंगल और शराब बिक्री पर ही निर्भर हैं.

बोकराकछार से विस्थापित 30 साल के भागबलि का कहना है कि जब वे जंगल में थे तो वहां बांस आसानी से मिल जाता था. जिसका सामान बना कर वे अपनी आजीविका चलाते थे. लेकिन अब उनके घर का खर्चा अवैध तरीके से शराब निर्माण और बिक्री से ही चलता है.

जल्दा गांव की जोहनिया बाई बताती हैं कि अब भी वे पड़ोस के जंगल से हर दिन लकड़ी काट कर लाती हैं और उसे बेच कर हर दिन 100 रुपये कमाती हैं. यह कमाई ही उनकी आजीविका का साधन है.

अचानकमार टाइगर रिजर्व के कोर ज़ोन में कुल 25 गांवों में से 6 गांवों, जल्दा, कूबा, बहाउड़, बांकल, बोकराकछार और सांभरधसान को विस्थापित करने के लिए 10 दिसंबर 2008 को केंद्र सरकार ने अनुमति दी थी.

हालांकि गांव के आदिवासी अपने पुनर्वास को लेकर आशंकित थे, इसलिए उन्होंने अपना घर नहीं छोड़ने का निर्णय लिया. लेकिन रातों-रात जंगल में हाथी और बाघ छोड़े जाने का भय दिखा कर इन आदिवासियों को पुनर्वास की व्यवस्था किए बिना ही मुंगेली ज़िले के उस वन क्षेत्र में ला कर छोड़ दिया गया, जो मूलतः अचानकमार-कान्हा टाइगर रिज़र्व के बाघों का आवागमन पथ था.

इन 6 गांवों से कुल 249 परिवारों को विस्थापित किया गया था, जिसमें 238 आदिवासी परिवार थे. जबकि 11 परिवार अन्य पिछड़ा वर्ग से थे.

लेकिन इन परिवारों को न तो अनुकूल खेती मिली और ना ही आजीविका के साधन. जो खेत मिले, उनमें सिंचाई के साधन नहीं थे और कथित पुनर्वास के बाद कोई अधिकारी झांकने नहीं आया. राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ भी इन आदिवासियों को नहीं मिलता.

हालत ये है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भी इन विस्थापित गांवों के अधिकांश लोग बैगा-ओझा के पास अपनी बीमारी का इलाज करवाते हैं.

विस्थापन की मुश्किल राह

राज्य सरकार पिछले 10 सालों से अचानकमार के कोर इलाके में बसे 19 गांवों का विस्थापन करना चाहती है लेकिन इन गांवों का विस्थापन मुश्किल नज़र आता है.

कोर इलाके के तीन गांवों तिलाईडबरा, बिर्रापानी और छिरहट्टा के विस्थापन की प्रक्रिया शुरु भी की गई थी.

इन गांवों के विस्थापन हेतु केंद्र सरकार से 2017-18 में 1330 लाख रुपये मिले थे. इनमें से 0.50 लाख रुपये खर्च भी हो गये. लेकिन विस्थापन का काम एक सुत भी आगे नहीं बढ़ पाया.

राज्य के वन मंत्री मोहम्मद अक़बर का कहना है कि राज्य सरकार इन आदिवासियों का बेहतर पुनर्वास करना चाहती है.

लेकिन आदिवासियों को सरकार के दावे पर भरोसा नहीं है. इसके लिए आदिवासी पहले से विस्थापित गांवों की दुर्दशा का हवाला दे रहे हैं. जाहिर है, सरकार के लिए इन गांवों से विस्थापन आसान नहीं होगा.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!