ऐसा है लोकपाल विधेयक 2011
नई दिल्ली | संवाददाता:लोकसभा तथा राज्यसभा द्वारा पारित लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक 2011 की मुख्य बाते हैं कि केन्द्र में लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त होंगे. लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य होंगे, जिनमें से 50 प्रतिशत न्यायिक सदस्य होंगे.लोकपाल के 50 प्रतिशत सदस्य अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और महिलाओं में से होंगे.
लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन एक चयन समिति द्वारा किया जाएगा, जिसके सदस्य होंगे- प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत के प्रधान न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित उच्चतम न्यायालय का वर्तमान न्यायाधीश, चयन समिति के पहले चार सदस्यों द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामित प्रख्यात विधिवेत्ता
इसके द्वार प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया गया है. सभी श्रेणियों के सरकारी कर्मचारी लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में आएंगे. विदेशी अनुदान नियमन अधिनियम के संदर्भ में विदेशी स्रोत से 10 लाख रूपए वार्षिक से अधिक का अनुदान प्राप्त करने वाले सभी संगठन लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में होंगे. ईमानदार और सच्चे सरकारी कर्मचारियों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की गई है.
सीबीआई सहित किसी भी जांच एजेंसी को लोकपाल द्वारा भेजे गए मामलों की निगरानी करने और निर्देश देने का लोकपाल को अधिकार होगा. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक उच्च अधिकारप्राप्त समिति सीबीआई के निदेशक के चयन की सिफारिश करेगी. अभियोजन निदेशक की अध्यक्षता में अभियोजन निदेशालय होगा, जो पूरी तरह से निदेशक के अधीन होगा. सीबीआई के अभियोजन निदेशक की नियुक्ति केन्द्रीय सतर्कता आयोग की सिफारिश पर की जाएगी. लोकपाल द्वारा सीबीआई को सौंपे गए मामलों की जांच कर रहे अधिकारियों का तबादला लोकपाल की मंजूरी से होगा.
विधेयक में भ्रष्टाचार के जरिए अर्जित संपत्ति की कुर्की करने और उसे जब्त करने के प्रावधान शामिल किए गए हैं, चाहे अभियोजन की प्रक्रिया अभी चल रही हो. विधेयक में प्रारंभिक पूछताछ, जांच और मुकदमें के लिए स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित की गई है और इसके लिए विधेयक में विशेष न्यायालयों के गठन का भी प्रावधान है.
गौरतलब है कि अधिनियम के लागू होने के 365 दिनों के अंदर राज्य विधानसभाओं द्वारा कानून के माध्यम से लोकायुक्तों की नियुक्ति की जानी अनिवार्य होगी.