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योगी के दो फैसलों के बाद स्वामी अग्निवेश का साथ

लेकिन योगी की नीयत तो पहले से साफ है, आज जब उनके इस फैसले के बचाव में स्वामी अग्निवेश एक बयान देते हैं, तो वह बयान अपने शब्दों से परे जाकर, उनसे आगे जाकर, एक मासूमियत के मुखौटे के पीछे से योगी की साम्प्रदायिकता का बचाव भी करते दिखता है, और ऐसा करते हुए स्वामी अग्निवेश अपनी उस साख को खोते हैं जो कि हिन्दू समाज के भगवा चोले में रहते हुए भी पाखंड के खिलाफ आर्यसमाजी तेवरों से एक लड़ाई के लिए उन्होंने एक वक्त पाई थी. एक घोर साम्प्रदायिक नेता के बचाव के लिए स्वामी अग्निवेश आज अगर शाकाहार और उसके फायदों को तरह-तरह से गिना रहे हैं, तो यह किसी कातिल के कत्ल की चर्चा होने पर उस कातिल के एक अच्छा पेंटर होने, या अच्छा चित्रकार होने की चर्चा छेडऩे की तरह की बात है.

जब बहस का मुद्दा एक बुनियादी मुद्दा हो, तो उसके केन्द्र को छोड़कर उसके दूर के किनारे के आसपास के इन्द्रधनुष की चर्चा करना न तो मासूमियत की बात होती, और न ही इंसाफ की बात होती. दुनिया के इतिहास में ऐसे अनगिनत बड़े हत्यारे हुए हैं जिनमें कला या साहित्य की कोई खूबी भी थी, लेकिन जब उनके लहू सने हाथों पर चर्चा होती हो, तब उनकी लाल रंग की किसी पेंटिंग की चर्चा छेड़ देना एक साजिश भरी नीयत साबित करती है.

भारत में लोगों को खान-पान की आजादी है. अलग-अलग राज्यों में गाय या गोवंश को कटने से बचाने के लिए कई तरह के कानून बनाए हैं. उत्तरप्रदेश में भी गाय काटने पर पहले से रोक लगी हुई है. लेकिन वहां के बूचडख़ाने ऐसे जानवरों को भी काटते थे जो कि कानून के दायरे में काटे जा सकते हैं, और उनका कुसूर यह जरूर था कि वे बिना लाइसेंस के चल रहे बूचडख़ाने थे, और उनको शर्तें पूरी करके लाइसेंस के तहत यह काम करना था. लेकिन उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के राज वाले गोवा में भाजपा के ही मुख्यमंत्री साफ-साफ यह घोषणा करते आए हैं कि उनके राज्य में गोहत्या या गोमांस पर कोई रोक नहीं लगेगी.

बूचडख़ानों के अलावा जो दूसरा फैसला सीएम योगी का आया, वह पूरे प्रदेश में पुलिस के रोमियो-दस्ते बनाने का है जिन्होंने अपना काम शुरू भी कर दिया है, और बाग-बगीचों में, सार्वजनिक जगहों पर बैठे हुए लड़के-लड़कियों को पकड़कर भगाना, धमकाना, सजा देना शुरू कर दिया है. इसे लेकर पूरे देश में अलग-अलग जागरूक तबकों ने योगी के खिलाफ जमकर लिखा, और चूंकि पुलिस की कार्रवाई गैरकानूनी भी चल रही थी, इसलिए भी योगी को दो दिन के बाद यह घोषणा करनी पड़ी कि जो जोड़े सहमति से बैठे हैं, उन्हें पुलिस परेशान न करे. यह फैसला किसी को छेडख़ानी से बचाने वाला नहीं है, यह फैसला योगी की पहले की दर्जनों बार की ऐसी सार्वजनिक घोषणाओं के सिलसिले की एक कड़ी है जिसमें वे यह कहते आए हैं कि मुस्लिम नौजवान हिन्दू लड़कियों को बरगला ले जाते हैं, और शादी करके मुस्लिम बना लेते हैं.

उन्होंने अपने भाषणों में पहले यह कहा है कि ऐसी एक भी हिन्दू लड़की के मुस्लिम बनाए जाने पर उसके खिलाफ सौ-सौ मुस्लिम लड़कियों को हिन्दू बनाया जाएगा. अब मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके लिए हुए फैसले को उनके ही ऐसे बयानों की रौशनी में देखना ठीक रहेगा, और हमारा ख्याल यह था कि रोमियो-दस्तों की ऐसी कार्रवाई के खिलाफ अदालत खुद होकर दखल दे सकती है, लेकिन इसके पहले ही मुख्यमंत्री ने अपने फैसले को सुधारा.

सीएम योगी से लोगों को किसी हृदय परिवर्तन की उम्मीद नहीं है, लेकिन लोकतंत्र के भीतर इतनी उम्मीद तो हर किसी से रखनी ही चाहिए कि या तो वे देश के संविधान का सम्मान करें, या फिर देश की अदालतें संविधान को बचाने के लिए ऐसे लोगों के फैसलों में दखल दें. उत्तरप्रदेश की शक्ल में आज देश में एक ऐसा राज्य सामने आया है जो कि संविधान की शपथ लेकर काम करने वाले घोर साम्प्रदायिक नेता के काम को दर्ज करने जा रहा है. कल तक तो देश का संविधान अपने लचीलेपन के साथ योगी को साम्प्रदायिक-भड़काऊ बातें कहने देता था, और यह संविधान देश की अदालतों को ऐसे जुर्म को अनदेखा करने की छूट भी देते रहता था. लेकिन आज जब योगी के फैसले महज बयान नहीं रहेंगे, और उनकी बहुत सी बातें सरकारी कार्रवाई की शक्ल में भी सामने आएंगी, तो उत्तरप्रदेश की न्यायपालिका, और उसके बाद देश की सबसे बड़ी अदालत, इन दोनों का एक बहुत बड़ा जिम्मा यह रहेगा कि जहां कहीं मुख्यमंत्री संविधान के खिलाफ जाएं, वहां अदालतें दखल दें.

किसी पार्टी को चुनाव में बहुमत मिल जाने, और उस पार्टी की पसंद के मुख्यमंत्री बन जाने का यह मतलब नहीं रहता कि वहां पर संविधान पांच बरस निलंबित रहेगा. एक बहुमत की सरकार भी संविधान पर चलने के लिए बाध्य रहती है, और अदालतों के लिए जवाबदेह भी रहती है. योगी का अब तक का रूख देखते हुए उत्तरप्रदेश में जितना जिम्मा सरकार का है, उतने का उतना जिम्मा अदालत का भी है, और उसे बारीकी से ऐसी सरकार की निगरानी करते चलना चाहिए. हमें ऐसा दिन ज्यादा दूर नहीं दिखता है जब अदालत को दखल देनी पड़े.

आखिर में हम फिर स्वामी अग्निवेश पर लौटते हैं. और हम यह मानते हैं कि अग्निवेश बूचडख़ानों पर रोक के अलावा रोमियो-दस्तों की खबर को भी पढ़ चुके होंगे. इस देश में आर्य समाज ने हिन्दू धर्म के प्रेमी जोड़ों को मर्जी से शादी करने के लिए सबसे बड़ी सहूलियत दशकों से उपलब्ध कराई हैं. ऐसे प्रेम-विवाहों की वजह से ही देश में जाति व्यवस्था की कट्टरता कमजोर पड़ रही है. और नौजवान लड़के-लड़कियों के मिलने-जुलने पर भी पुलिसिया जुल्म लादने वाले योगी आदित्यनाथ का एक दूसरे मामले में बचाव करने के पहले स्वामी अग्निवेश को आर्य समाज में होने वाले प्रेम-विवाहों के सामाजिक योगदान के बारे में भी याद रखना चाहिए था.

* लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शाम के अखबार छत्तीसगढ़ के संपादक हैं.

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