कलारचना

निराला को प्रिय था वसंत

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: वसंत पंचमी आते ही याद आ जाते हैं सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और वसंत को समर्पित उनकी ये पंक्तियां-

सखि, वसंत आया,
भरा हर्ष वन के
मन नवोत्कर्ष छाया.

वसंत ऋतु में जिस तरह प्रकृति अपने अनुपम सौंदर्य से सबको सम्मोहित करती है, उसी प्रकार वसंत पंचमी के दिन जन्मे निराला ने अपनी अनुपम काव्य कृतियों से हिंदी साहित्य में वसंत का अहसास कराया था. उन्होंने अपनी अतुलनीय कविताओं, कहानियों, उपन्यासों और छंदों से साहित्य को समृद्ध बनाया.

उनका जन्म 1896 की वसंत पंचमी के दिन बंगाल के मेदनीपुर जिले में हुआ था. हाईस्कूल पास करने के बाद उन्होंने घर पर ही संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया. नामानुरूप उनका व्यक्तित्व भी निराला था.

हिंदी जगत को अपने आलोक से प्रकाशवान करने वाले हिंदी साहित्य के ‘सूर्य’ पर मां सरस्वती का विशेष आशीर्वाद था.

उनके साहित्य से प्रेम करने वाले पाठकों को जानकार आश्चर्य होगा कि आज छायावाद की उत्कृष्ट कविताओं में गिनी जाने वाली उनकी पहली कविता ‘जूही की कली’ को तत्कालीन प्रमुख साहित्यिक पत्रिका ‘सरस्वती’ में प्रकाशन योग्य न मानकर संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी ने लौटा दिया था.

इस कविता में निराला ने छंदों की के बंधन को तोड़कर अपनी अभिव्यक्ति को छंदविहीन कविता के रूप में पेश किया, जो आज भी लोगों के जेहन में बसी है.

वह खड़ी बोली के कवि थे, लेकिन ब्रजभाषा व अवधी भाषा में भी उन्होंने अपने मनोभावों को बखूाबी प्रकट किया.

‘अनामिका,’ ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘द्वितीय अनामिका’, ‘तुलसीदास’, ‘अणिमा’, ‘बेला’, ‘नए पत्ते’, ‘गीत कुंज, ‘आराधना’, ‘सांध्य काकली’, ‘अपरा’ जैसे काव्य-संग्रहों में निराला ने साहित्य के नए सोपान रचे हैं.

‘अप्सरा’, ‘अलका’, ‘प्रभावती’, ‘निरूपमा’, ‘कुल्ली भाट’ और ‘बिल्लेसुर’ ‘बकरिहा’ शीर्षक से उपन्यासों, ‘लिली’, ‘चतुरी चमार’, ‘सुकुल की बीवी’, ‘सखी’ और ‘देवी’ नामक कहानी संग्रह भी उनकी साहित्यिक यात्रा की बानगी पेश करते हैं.

निराला ने कलकत्ता से ‘मतवाला’ व ‘समन्वय’ पत्रिकाओं का संपादन भी किया.

हिंदी कविता में छायावाद के चार महत्वपूर्ण स्तंभों जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ अपनी सशक्त गिनती कराने वाले निराला की रचनाओं में एकरसता का पुट नहीं है.

स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से प्रभावित निराला की रचनाओं में कहीं आध्यात्म की खोज है तो कहीं प्रेम की सघनता है, कहीं असहायों के प्रति संवेदना हिलोर लेती उनके कोमल मन को दर्शाती है, तो कहीं देश-प्रेम का जज्बा दिखाई देता है, कहीं वह सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने को आतुर दिखाई देते हैं तो कहीं प्रकृति के प्रति उनका असीम प्रेम प्रस्फुटित होती है.

सन् 1920 के आस-पास अपनी साहित्यिक यात्रा शुरू करने वाले निराला ने 1961 तक अबाध गति से लिखते हुए अनेक कालजयी रचनाएं कीं और उनकी लोकप्रियता के साथ फक्कड़पन को कोई दूसरा कवि छू तक न सका.

‘मतवाला’ पत्रिका में ‘वाणी’ शीर्षक से उनके कई गीत प्रकाशित हुए. गीतों के साथ ही उन्होंने लंबी कविताएं लिखना भी आरंभ किया.

सौ पदों में लिखी गई तुलसीदास निराला की सबसे बड़ी कविता है, जिसे 1934 में उन्होंने कलमबद्ध किया और 1935 में सुधा के पांच अंकों में किस्तवार इसका प्रकाशन हुआ.

साहित्य को अपना महत्वूपर्ण योगदान देने वाले निराला की लेखनी अंत तक नित नई रचनाएं रचती रहीं.

22 वर्ष की अल्पायु में पत्नी से बिछोह के बाद जीवन का वसंत भी उनके लिए पतझड़ बन गया और उसके बाद अपनी पुत्री सरोज के असामायिक निधन से शोक संतप्त निराला अपने जीवन के अंतिम वर्षो में मनोविक्षिप्त-से हो गए थे.

लौकिक जगत को अपनी अविस्मरणीय रचनाओं के रूप में अपनी यादें सौंपकर 15 अक्टूबर, 1961 को महाप्राण अपने प्राण त्यागकर इस लोक को अलविदा कह गए, लेकिन अपनी रचनात्मकता को साहित्य प्रेमियों के जेहन में अंकित कर निराला काव्यरूप में आज भी हमारे बीच हैं.

उनके ये शब्द भी मानो साहित्य प्रेमियों को यही दिलासा देते रहेंगे-

अभी न होगा मेरा अंत,
अभी-अभी तो आया है,
मेरे वन मृदुल वसंत,
अभी न होगा मेरा अंत.

error: Content is protected !!