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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, छत्तीसगढ़ को मिलेंगे कई लाख करोड़

रायपुर | संवाददाता: सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को एक अप्रैल 2005 के बाद से केंद्र सरकार, खनन कंपनियों से खनिज संपन्न भूमि पर रॉयल्टी का पिछला बकाया वसूलने की अनुमति दे दी है.

बुधवार को संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि राज्य पिछले कर का दावा कर सकते हैं.

माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद छत्तीसगढ़ को कई लाख करोड़ रुपये मिलेंगे.

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि केंद्र, खनन कपंनियों द्वारा खनिज संपन्न राज्यों को बकाये का भुगतान अगले 12 वर्ष में क्रमबद्ध तरीके से किया जा सकता है. इसके साथ ही खनिज संपन्न राज्यों को रॉयल्टी के बकाया भुगतान पर किसी तरह का जुर्माना न लगाने का निर्देश दिया है.

संविधान पीठ ने 25 जुलाई के अपने फैसले को आगामी प्रभाव से लागू करने की केंद्र की याचिका बुधवार को खारिज कर दी, जिसमें राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने के विधायी अधिकार को बरकरार रखा गया था.

पीठ ने कहा कि 25 जुलाई के आदेश को आगामी प्रभाव से लागू करने की दलील खारिज की जाती है.

कर की मांग के भुगतान का समय एक अप्रैल 2026 से शुरू होकर 12 वर्षों में किस्तों में बांटा जाएगा.

केंद्र ने खनिज संपन्न राज्यों को 1989 से खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर लगाई गई रॉयल्टी उन्हें वापस करने की मांग का विरोध करते हुए कहा था कि इसका असर नागरिकों पर पड़ेगा.

प्रारंभिक अनुमान के अनुसार, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को अपने खजाने से 70,000 करोड़ रुपये निकालने पड़ेंगे.

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि इस फैसले पर पीठ के आठ न्यायाधीश हस्ताक्षर करेंगे, जिन्होंने बहुमत से 25 जुलाई को फैसला दिया था, जिसमें राज्यों को खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार दिया गया था.

उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति नागरत्ना बुधवार के फैसले पर हस्ताक्षर नहीं करेंगी, क्योंकि उन्होंने 25 जुलाई को अलग फैसला दिया था.

इससे पहले  रॉयल्टी पर क्या कहा था अदालत ने

संविधान पीठ ने 25 जुलाई को 8:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है और खनिजों पर दी जाने वाली रॉयल्टी कोई कर नहीं है.

इस फैसले ने 1989 के उस निर्णय को पलट दिया था जिसमें कहा गया था कि केवल केंद्र के पास खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर रॉयल्टी लगाने का अधिकार है.

इसके बाद कुछ विपक्षी दल शासित खनिज संपन्न राज्यों ने 1989 के फैसले के बाद से केंद्र द्वारा लगाई गई रॉयल्टी और खनन कंपनियों से लिए गए करों की वापसी की मांग की थी.

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