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सुप्रीम कोर्ट ने दी कांग्रेस को संजीवनी

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: सर्वोच्य न्यायालय के एक सवाल ने मानो कांग्रेस को संजीवनी दे दी है. गौरतलब है कि लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन ने संख्याबल कम होने के कारण कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का पद देने से इंकार कर दिया था. शुक्रवार को लोकपाल पर याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वोच्य न्यायालय ने केन्द्र सरकार से सवाल किया है कि नेता प्रतिपक्ष के बिना लोकपाल का चयन कैसे होगा क्योंकि लोकपाल कानून के अनुसार चयन समिति में लोकसभा का नेता प्रतिपक्ष भी शामिल है.

सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति के मुद्दे पर सवाल पूछा है और कहा है कि यदि सरकार इस मुद्दे का समाधान करने में विफल रहती है तो वह विपक्ष के नेता के सिद्धांत पर विस्तृत व्याख्या देगा.

लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन द्वारा यह व्यवस्था दिए जाने के बाद कि कांग्रेस को विपक्ष की हैसियत नहीं दी जा सकती के एक दिन बाद प्रधान न्यायाधीश आर. एम. लोढ़ा, न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और न्यायमूर्ति रोहिंटन फाली नारिमन ने इस पद की महत्ता को रेखांकित किया.

अदालत ने संसद के निचले सदन में विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति पर उठ रहे सवालों को स्वीकारते हुए कहा कि विपक्ष का नेता सरकार के इतर लोगों की आवाज को उठाता है.

महाजन ने कहा था कि कांग्रेस को मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती क्योंकि पार्टी को केवल 44 सीटें ही मिली हैं जो 543 निर्वाचित सदस्यों वाले सदन में 10 प्रतिशत से कम है.

न्यायाधीशों ने कहा कि वे लोकपाल कानून की भी पड़ताल करेंगे जिसमें चयन समिति में नेता प्रतिपक्ष के शामिल होने को अनिवार्य किया गया है.

अदालत ने कहा कि संसद की कार्यवाही में नेता प्रतिपक्ष एक महत्वपूर्ण अवयव होता है.

कांग्रेस ने शुक्रवार को कहा कि सरकार को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष को लेकर अपने रुख पर पुनर्विचार करना चाहिए, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने नरेंद्र मोदी सरकार से इस मुद्दे पर सवाल किया है.

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा, “नेता प्रतिपक्ष लोकतंत्र का एक अनिवार्य हिस्सा होता है..सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है और सरकार को अपने रुख पर पुनर्विचार करना चाहिए और लोकसभा अध्यक्ष को इस मामाले पर फिर से विचार करना चाहिए.”

उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि सरकार विपक्ष को नहीं देखना चाहती.”

सरकार ने हालांकि इसके बावजूद यही कहा है कि कांग्रेस इस पद के लिए योग्य नहीं है.

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, “संविधान के मुताबिक, नेता प्रतिपक्ष की हैसियत के लिए पार्टी के पास 10 प्रतिशत सीटें होना अनिवार्य है.”

उन्होंने कहा, “लेकिन दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हुआ. इसलिए उन्हें इसे स्वीकार करना चाहिए.”

शीर्ष अदालत ने इस बीच यह भी कहा कि नेता प्रतिपक्ष का नहीं होना सिर्फ लोकपाल के चुनाव से ही संबद्ध नहीं है बल्कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और केंद्रीय निगरानी आयोग से भी जुड़ा है.

अदालत ने महान्यायवादी मुकुल रोहतगी को दो बिंदुओं पर स्पष्ट करने के लिए कहा कि सरकार किस तरह लोकपाल अधिनियम को कार्यशील बनाएगी और दूसरा कि यदि मान्य नेता प्रतिपक्ष के अभाव में वह कैसे आगे बढ़ेगी.

प्रधान न्यायाधीश लोढ़ा ने कहा कि यदि सरकार इस मुद्दे का समाधान करने में विफल रहती है तो अदालत इस बारे में वृहद परिभाषा दे सकती है ताकि इसमें विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को शामिल किया जा सके.

अदालत ने यह टिप्पणी कॉमन कॉज एनजीओ पीआईएल पर सुनवाई के दौरान की. कॉमन कॉज ने लोकपाल की चयन समिति प्रक्रिया को चुनौती दी है.

मौजूदा प्रावधान के अनुसार लोकपाल का अध्यक्ष या सदस्य बनने की इच्छा रखने वाले को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के सामने अर्जी पेश करनी होगी. इस प्रक्रिया का लोगों के एक हिस्से और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तीव्र विरोध किया है. बहरहाल, लोकपाल के चयन के बरास्ते कांग्रेस को लोकसभा का नेता प्रतिपक्ष का पद मिलने की उम्मीद जागी है. इसे कांग्रेस के लिये संजीवनी के समान माना जा रहा है.

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