सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की चिट्ठी से हड़कंप
नई दिल्ली। डेस्क: भारत के इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने शुक्रवार को मीडिया के सामने आकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की प्रशासनिक कार्यशैली पर सवाल उठाए. सुप्रीम कोर्ट के चार न्यायधीशों ने शुक्रवार को कहा कि देश के सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन सुचारू रूप से काम नहीं कर रहा है.
वरिष्ठता के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में दूसरे नंबर के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर के आवास में बुलाई संवाददाता सम्मेलन में न्यायाधीशों ने कहा, जिस बात से वे दुखी हैं. उसकी जानकारी सार्वजनिक करने में उन्हें कोई खुशी नहीं हो रही है. प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद चारों जजों ने एक चिट्ठी जारी की, जिसमें गंभीर आरोप लगाए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित 7 पन्नों के पत्र में जजों ने कुछ मामलों के असाइनमेंट को लेकर नाराजगी जताई है.
चिट्ठी में जजों ने क्या लिखा?
चिट्ठी में जजों ने लिखा कि हम बेहद कष्ट के साथ आपके समक्ष यह मुद्दा उठाना चाहते हैं कि अदालत की ओर से दिए गए कुछ फैसलों से न्यायपालिका की पूरी व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है. इसके अलावा उच्च न्यायालयों की स्वतंत्रता भी प्रभावित हुई है. इसके अलावा भारत के मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय के कामकाज पर भी असर पड़ा है. जजों ने लिखा, स्थापना के समय से ही कोलकाता, बॉम्बे और मद्रास हाई कोर्ट में प्रशासन के नियम और परंपरा तय थे. इन अदालतों के कामकाज पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने विपरीत प्रभाव डाला है, जबकि शीर्ष अदालत की स्थापना तो खुद इन उच्च न्यायालयों के एक सदी के बाद हुई थी.
सामान्य सिद्धांत है कि चीफ जस्टिस के पास रोस्टर तैयार करने का अधिकार होता है और वह तय करते हैं कि कौन सी बेंच और जज किस मामले की सुनवाई करेगी. हालांकि यह देश का न्यायशास्त्र है कि चीफ जस्टिस सभी बराबर के जजों में प्रथम होता है, न ही वह किसी से बड़ा और न ही छोटा होता है. चिट्ठी के मुताबिक ऐसे भी कई मामले हैं , जो देश के लिए बहुत ही जरूरी हैं. लेकिन, चीफ जस्टिस ने उन मामलों को तार्किक आधार पर देने की बजाय अपनी पसंद वाली बैंच को सौंप दिया.इसे किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए.
कहा- प्रशासनिक कार्य ठीक से नहीं हो रहा
ऐसा पहली बार हुआ है जब सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. चारों जजों ने कहा कि किसी भी देश के कानून के इतिहास का ये बहुत बड़ा दिन है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का प्रशासनिक कार्य ठीक से नहीं हो रहा है. जजों के मुताबिक उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया गया इसलिए मीडिया के सामने आना पड़ा.” जस्टिस जस्ती चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल हुए.
जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा हम देश के लिए अपना फर्ज अदा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि न्यायिक अनियमितताओं पर हमने चीफ जस्टिस से बात की थी. लेकिन उस पर कुछ नहीं हुआ. मीडिया के सामने आने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा.
प्रधानमंत्री ने की कानून मंत्री से बात
चारों जजों के इस बहुत बड़े खुलासे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद को बुलाया गया, जिसके बाद ये बयान आया कि सरकार इसमें दखल नहीं देगी. ये सुप्रीम कोर्ट का अंदरुनी मामला है.
जजों के प्रेस कांफ्रेंस के बाद प्रतिक्रिया
इस मुद्दे पर बोलते हुए बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा, “ये चारों जज ईमानदार जज हैं, अगर ये चारों कोई बात कह रहे हैं तो वो सुनी जानी चाहिए. और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इसका संज्ञान लेना चाहिए.”
रिटायर्ड जस्टिस आर एस सोढ़ी ने कहा, “मुझे लगता है कि इन चारों जजों को अब वहां बैठने का अधिकार नहीं है. लोकतंत्र खतरे में है तो संसद है, पुलिस प्रशासन है. यह उनका काम नहीं है.
वरिष्ठ वकील उज्जवल निकम ने इस पूरे मामले पर निराशा जताई. उन्होंने कहा, आज न्यायपालिका का काला दिन है. इसके खराब नतीजे होंगे. अब से हर आम आदमी न्यायपालिका के फैसले को संदेह की नजरों से देखेगा. हर फैसले पर सवाल उठाए जाएंगे.
सुप्रीम कोर्ट के जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी ने कहा, “इस तरीके को अपनाने के पीछे जजों की बड़ी मजबूरी रही होगी. जब वो बोल रहे थे तब उनके चेहरे पर दर्द स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता था.”
कांग्रेस के नेता और वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि ये सब सुनकर दुख और चिंता होती है. यूपीए सरकार में देश के कानून मंत्री रह चुके अश्विनी कुमार ने कहा कि ये न्यायपालिका की इमेज के लिए सही नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अटॉर्नी जनरल से की मुलाकात
सुप्रीम कोर्ट और इसके कार्यों से जुड़े मामलों पर चर्चा के लिए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल से मुलाकात की है. इसी बीच ये ये खबर आई थी कि देश के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा मीडिया से बात करेंगे. इस दौरान अटॉर्नी जनरल भी उनके साथ होंगे. लेकिन अब बताया जा रहै है कि सीजेआई का प्रेस कॉन्फ्रेंस का कोई कार्यक्रम नहीं है.
जानिए कौन हैं वो 4 जज, जिनकी एक प्रेस कांफ्रेंस से हिल गई सरकार
सुप्रीम कोर्ट के चार जजों द्वारा की गई प्रेस कांफ्रेंस ने न सिर्फ देश को हिला दिया बल्कि मोदी सरकार में भी इसको लेकर हड़कंप मच गया. जजों के मीडिया के सामने आने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को तलब किया. आजाद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब देश की शीर्ष अदालत के वरिष्ठ जज ऐसे मीडिया के सामने आए हैं और कोर्ट प्रशासन के कामकाज पर आरोप लगाया है. इन जजों ने न्यायपालिका में जारी भ्रष्टाचार पर अपनी बात रखी और देश के प्रति अपने फर्ज के लिए भी अपनी निष्ठा जाहिर की.
जस्टिस चेलमेश्वर
प्रेस कॉन्फ्रेंस जस्टिस चेलमेश्वर के घर में हुई, बाकि के तीनों जज इनके ही घर पर इकट्ठे हुए. आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में जन्मे जस्टिस चेलमेश्वर केरल और गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं. वकालत उनको विरासत में मिली है. 1976 में उन्होंने आंध्र यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री हासिल की. अक्तूबर, 2011 में वे सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे. चेलमेश्वर और रोहिंगटन फली नरीमन की 2 सदस्यीय बेंच ने उस विवादित कानून को खारिज किया जिसमें पुलिस के पास किसी के खिलाफ आपत्तिजनक मेल करने या इलेक्ट्रॉनिक मैसेज करने के आरोप में गिरफ्तार करने का अधिकार था. उनके इस फैसले की देशभर में जमकर तारीफ हुई और बोलने की आजादी को कायम रखा. जजों की नियुक्ति को लेकर नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइन्ट्मन्ट्स कमीशन (NJAC) का समर्थन भी इन्होंने किया था. इतना ही नहीं वे पहले से चली आ रही कोलेजियम व्यवस्था की आलोचना भी कर चुके हैं.
जस्टिस रंजन गोगोई
जस्टिस रंजन गोगोई असम से के हैं और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जजों में उनकी गिनती होती है. उनके पिता केशब चंद्र गोगोई असम के मुख्यमंत्री रहे हैं. जस्टिस दीपक मिश्रा अक्तूबर, 2018 में रिटायर होने वाले हैं और गोगोई चीफ जस्टिस बनने की कतार में हैं. अगर वे चीफ जस्टिस चुने जाते हैं तो भारत के पूर्वोत्तर राज्य से इस शीर्ष पद पर काबिज होने वाले वे पहले जस्टिस होंगे. गोगोई ने गुवाहाटी हाईकोर्ट से करियर की शुरुआत की और फरवरी, 2011 में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने. अप्रैल, 2012 में वे सुप्रीम कोर्ट के जज बने.
जस्टिस मदन भीमराव लोकुर
जस्टिस मदन भीमराव लोकुर की स्कूली शिक्षा से लेकर कानून शिक्षा तक दिल्ली से ही पूर्ण हुई. 1977 में उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की और सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में वकालत की. 2010 में वह फरवरी से मई तक दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रहे. इसके बाद जून, 2010 में वह गुवाहाटी हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश पद पर चुने गए. वे आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के भी मुख्य न्यायधीश रह चुके हैं.
जस्टिस कुरियन जोसेफ
1979 में अपनी वकालत करियर की शुरुआत करने वाले जस्टिस कुरियन जोसेफ साल 2000 में केरलहाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश चुने गए. फरवरी, 2010 में उन्होंने हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली और 8 मार्च, 2013 को वह सुप्रीम कोर्ट में जज बने.