जाखड़ की जीत से कांग्रेस में जश्न
नई दिल्ली | संवाददाता: गुरदासपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस नेता सुनील जाखड़ की जीत ने भाजपा को साफ संकेत दे दिया है.नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक के सफर में भाजपा से नाराजगी साफ नजर आ रही है. विकास के दावों के बीच जेएनयू, डीयू और नांदेड़ से लेकर गुरदासपुर तक के नतीजे दीवार पर लिखी इबारत की तरह बिल्कुल साफ है कि अगर भाजपा नहीं संभली तो 2019 का रास्ता पार्टी के लिये मुश्किल भरा साबित होगा.
फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना गुरदासपुर सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं. तीन बार भाजपा के सांसद विनोद खन्ना को 2009 के चुनाव में कांग्रेस के प्रताप सिंह बाजवा के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा था. लेकिन 2014 में विनोद खन्ना फिर से गुरदासपुर सीट पर उतरे और कांग्रेस के बाजवा को सवा लाख वोटों के अंतर से पटकनी दी थी. उनके निधन के बाद पार्टी में विनोद खन्ना की पत्नी को टिकट देने की मांग उठी थी लेकिन पार्टी ने स्वर्ण सलारिया पर भरोसा जताया.
स्वर्ण सलारिया के बजाये विनोद खन्ना की पत्नी को इस उपचुनाव में टिकट मिलती तब क्या होता, यह सवाल अब महज इतिहास में दर्ज किये जाने वाला सवाल बन कर रह गया है. आज की तल्ख हकीकत ये है कि आम जनता ने सुनील जाखड़, कैप्टन अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धु और राहुल गांधी पर भरोसा जताया. भाजपा खारिज कर दी गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू भरभरा कर गिर गया. लगभग 1.93 लाख वोटों से सुनील जाखड़ की जीत ने सारे समीकरण बदल कर धर दिये हैं.
अबोहर में अपने परिवार के साथ जीत के जश्न में डूबने से पहले सुनील जाखड़ ने कहा कि मेरा तो केवल बस नाम है, असली जीत तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की है. जाखड़ ने कहा कि भाजपा के लोगों ने भी कांग्रेस को वोट दिया. यही सिलसिला पूरे देश में शुरू होने वाला है. यह देश में कांग्रेस की जीत की शुरूआत है. पूरे देश में इसी तरह के नतीजे सामने आएंगे और राहुल गांधी को 2019 में देश का प्रधानमंत्री बनाने की दिशा में कदम है.
जाखड़ के कहे को उत्साह माना जा सकता है लेकिन एक संदेश भाजपा के लिये तो है ही. इसके साथ-साथ अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप के लिये भी इस चुनाव परिणाम ने संकेत दे दिये हैं. केवल एक व्यक्ति को केंद्र में रख कर राजनीति करने वाली आम आदमी पार्टी के लिये भी सफलता के दौर की शुरुआत भी नहीं हुई थी कि अब मुश्किल के दौर शुरु हो गये हैं. उनकी पार्टी के सेवानिवृत्त मेजर जनरल सुरेश खजूरिया की जिस बुरी तरह से पराजय हुई है, उससे यह प्रमाणित हो गया है कि महज पार्ट टाइम राजनीति करने वालों की स्वीकरोक्ति जनता में नहीं बन पाई है. एकाध बार यह जादू चलता भी है लेकिन हर मोर्चे पर यह दांव असफल ही रहा है.