प्रसंगवश

सिटी तो बन गई पर सिस्टम?

सुरेश महापात्र | दंतेवाड़ा
गीदम में निर्मित जावांगा एजुकेशन सिटी को जितनी प्रसिद्धि मिली है. इसे अपयश मिलने का खतरा भी मंडराने लगा है. वजह इस सिटी का निर्माण तो कर लिया गया पर इसके संचालन के लिए अब तक सिस्टम की तैयारी नहीं की गई है. प्रशासन भी यह बताने की स्थिति में नहीं है कि किसी सिस्टम के तहत इसका संचालन किया जाएगा? अब इस गंभीर मसले को लेकर शासन ने भी चिंता जताई है.

स्कूल शिक्षा मंत्री कह रहे हैं कि शिक्षा सचिव को नोडल अफसर नियुक्त किया गया है. वे योजना बनाकर प्रस्तुत करें ऐसा निर्देशित किया गया है. जिला प्रशासन पसोपेश मे हैं कि करोड़ों की लागत से निर्मित इंफ्रास्टक्चर की जिम्मेदारी किसे सौंपी जाए? बड़ी बात यह है कि यहां शुरू किए गए आस्था गुरूकुल की जिम्मेदारी ईसाई मिशनरी द्वारा संचालित प्रकाश विद्यालय को सौंपी गई है. यानी सरकार के पास इस शिक्षा परिसर के लिए ना तो सेटअप है और ना ही उसकी कोई तैयारी.

राज्य के शिक्षा मंत्री केदार कश्यप कहते हैं कि उन्होंने इस संबंध में प्रशासन जानकारी मांगी थी. जवाब संतोषजनक नहीं होने पर शिक्षा सचिव को नोडल अफसर नियुक्त किया है. उन्हें निर्देशित किया है कि वे एजुकेशन सिटी को लेकर विस्तृत प्लान तैयार कर प्रस्तुत करें.

दंतेवाड़ा पूर्व कलेक्टर ओमप्रकाश चौधरी के कार्यकाल में दंतेवाड़ा जिले में करीब डेढ़ सौ करोड़ की लागत से एजुकेशन सिटी का निर्माण किया गया. इसे देश विदेश में बड़ी ख्याति मिली है. इस अभिनव निर्माण योजना को विश्व के 100 आधारभूत संरचनाओं के विकास के रूप में शामिल किया गया. दक्षिण बस्तर में शिक्षा के माध्यम से क्रांति के नए स्वरूप के सूत्रपात के बाद कई राज्यों के प्रतिनिधिमंडल ने इसका अवलोकन किया है. अविकसित क्षेत्रों में ऐसे आधारभूत शैक्षणिक परिसर के निर्माण के लिए कार्ययोजनाओं काम किया जा रहा है.

इतना ही नहीं एजुकेशन सिटी कान्सेप्ट पर अब संभाग के सभी जिलों में काम चल रहा है. बड़ी बात यह है कि सरकार ने एजुकेशन सिटी कान्सेप्ट को स्वीकार तो कर लिया पर इसके लिए अब यह तय करना कठिन हो गया है कि इसे किसे संधारण और संचालन के लिए सौंपा जाए?

इस एजुकेशन सिटी में सबसे पहले आस्था गुरूकुल का निर्माण किया गया. करीब 22 करोड़ की लागत से तैयार इस बिल्डिंग में नक्सल प्रभावित बच्चों को शिक्षा देने की योजना थी. इस भवन के साथ शिक्षक आवास भी बनाए गए. बाद में इसके संचालन को लेकर बड़ी कवायद की गई.

पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी के कार्यकाल में नारायणपुर में स्थित रामकृष्ण आश्रम के लिए प्रशासन ने कई दौर के प्रयास किए. रामकृष्ण आश्रम द्वारा इसके संचालन की जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया. इसके बाद बड़ी मुसीबत इस बात को लेकर हो गई कि अब इसे किसे सौंपा जाए?

प्रकाश विद्यालय मूलत: ईसाई मिशनरीज द्वारा संचालित है. जिसका मुख्यालय जगदलपुर है. प्रारंभ से ही भाजपा की स्थानीय इकाई इसका विरोध करती रही. भाजपा संगठन के दबाव में मंत्री ने भी अन्य विकल्पों पर ध्यान देने के लिए निर्देशित किया था. जिसे दरकिनार करते हुए कलेक्टर केसी देव सेनापति ने प्रकाश विद्यालय प्रबंधन को शाला संचालन और संधारण की जिम्मेदारी सौंप दी.

अब भी प्रकाश विद्यालय द्वारा एजुकेशन सिटी में सीबीएसई कोर्स आधारित शिक्षा व्यवस्था संचालित किए जाने को लेकर भीतर ही भीतर विवाद की स्थिति है. इधर प्रकाश विद्यालय को जिम्मेदारी से मुक्त किए जाने के अंदेशे पर ही जावांगा पंचायत ने अपना विरोध जता दिया है.

भाजपा शासित राज्य में किसी ईसाई मिशनरी को स्वयं सरकार शाला संचालन की जिम्मेदारी कैसे सौंप सकती है? जिसके विरोध की बुनियाद पर ही पार्टी खड़ी है. इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रवास के बाद एजुकेशन सिटी जिला प्रशासन के लिए अतिरिक्त जिम्मेदारी बन चुकी है. राज्य सरकार को भी लग रहा है कि अगर समय रहते माकूल व्यवस्था नहीं की गई तो आने वाले समय में दंतेवाड़ा का शिक्षा परिसर पूरे राज्य की छवि को बिगाडऩे का काम करेगा. मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी से इस तथ्य को प्रशासन ने छिपा दिया था. नहीं तो पीएम के दौरे के पहले ही इस व्यवस्था को बदल दिया जाता.

बड़ी बात यह है कि दंतेवाड़ा में शिक्षा विभाग भी पूरी तरह से डांवाडोल स्थिति में है. निर्माण और विकास जैसी योजनाओं में दंतेवाड़ा की शिक्षा व्यवस्था उलझी हुई है. सरकार के नीतिगत फैसलों को धता बताते हुए कनिष्ठ को जिला शिक्षा अधिकारी का प्रभार सौंपा गया है. इसके लेकर भी बड़ी बहस है. केंद्र सरकार से आई राशि से निर्माण कार्यों में इस विभाग का अमला उलझा हुआ है. इस शिक्षा सत्र में भी ड्रापआउट की समस्या है. जिससे निपटने के लिए ठोस प्रयास का नितांत अभाव है.

अब यही सवाल उठ रहा है कि इंफ्रास्ट्रक्चर डवलप करने के बाद उठे इस यक्ष प्रश्न का जवाब कौन दे? दंतेवाड़ा जिले में एनएमडीसी और एस्सार के सीएसआर के पैसों से निर्मित यह करोड़ों की नगरी अब समस्याओं की गगरी बन सकती है.

इसी सीएसआर के पैसे से नई योजनाओं को लेकर अपना आधार ढूंढते प्रशासन के लिए पीएम का आना भी परेशानी का सबब बन गया है. यह भी सही है कि जिस पैमाने में एजुकेशन सिटी को ख्याति प्राप्त हुई है अगर कुछ भी गड़बड़ी होगी तो सीधे तौर पर सरकार पर उंगली उठेगी. भले ही इसका श्रेय लेने के लिए प्रशासन आगे दिखता है.
*लेखक दंतेवाड़ा से प्रकाशित ‘बस्तर इंपैक्ट’ अखबार के संपादक हैं.

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