राज कपूर के बाद सबसे बड़े शो मैन, सुभाष घई
नई दिल्ली | मनोरंजन डेस्क: सुभाष घई को बालीवुड में राज कपूर के बाद सबसे बड़ा शो मैन माना जाता है. सुभाष घई कई बार अपने फिल्मों में अपनी झलक दिकाने के लिये कोई न कोई बहाना जरूर ढ़ूढ़ लेते थे कभी राहगीर के रूप में तो कभी किसी और रूप में. सुभाष घई के फिल्मों में माना जाता है कि उनके दर्शन जरूर होंगे भले ही पल भर के लिये. ‘बॉलीवुड के शो-मैन’ नाम से मशहूर फिल्म निर्माता-निर्देशक सुभाष घई का जन्म पंजाबी पृष्ठभूमि वाले परिवार में 24 जनवरी, 1945 को हुआ. उनके पिता राजधानी दिल्ली में एक दंत चिकित्सक थे. घई ने अपनी शुरुआती पढ़ाई दिल्ली में की. बाद में ‘हरियाणा का दिल’ कहे जाने वाले रोहतक से वाणिज्य में स्नातक की शिक्षा ली.
घई बाद पुणे शहर में स्थित भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान चले गए. वहां से डिप्लोमा लेने के बाद उन्होंने 1970 में हिंदी सिनेजगत में काम करना शुरू किया.
घई ने हिंदी सिनेमा में अपने करियर की शुरुआत ‘तकदीर’ 1967 व ‘आराधना’ 1971 फिल्म में छोटी भूमिकाओं से बतौर अभिनेता की. ‘उमंग’ 1970 और ‘गुमराह’ 1976 फिल्म में उन्होंने मुख्य अभिनेता की भूमिका निभाई.
बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म ‘कालीचरण’ 1976 थी, जिसमें अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा, रीना रॉय, अजीत और डैनी मुख्य भूमिका में थे. यह फिल्म उस समय की एक बड़ी हिट साबित हुई. वर्ष 1982 में उन्होंने अपनी पत्नी के नाम पर मुक्ता आर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक फिल्म प्रोडक्शन कंपनी शुरू की.
1980 व 1990 के दशक के दौरान उन्होंने बॉलीवुड के नामचीन अभिनेता दिलीप कुमार के साथ मिलकर ‘कर्मा’ 1986, ‘सौदागर’ 1991 और ‘विधाता’ 1982 सरीखी फिल्मों का निर्देशन किया. घई ने ‘झकास’ अभिनेता अनिल कपूर और जैकी श्रॉफ के फिल्मी करियर को स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह ‘हीरो’ 1983 फिल्म के जरिए जैकी श्रॉफ को बतौर अभिनेता सबके सामने लाए.
‘म’ की लगाई नैया पार :
घई की ‘म’ वर्ण वाली अभिनेत्रियों पर विशेष कृपादृष्टि रही है. माधुरी दीक्षित, मीनाक्षी शेषाद्रि, मनीषा कोईराला व महिमा चौधरी का उनकी कई फिल्मों में होना यह साबित करता है. उन्होंने हाल में अपनी फिल्म ‘कांची’ के जरिए इसी वर्ण के नाम वाली एक और अभिनेत्री को लांच किया, जिसका नाम मिष्ठी है.
फिल्मों में दिखा देश प्रेम :
कभी बॉक्स ऑफिस को अपने इशारों पर नचाने वाले घई की कई फिल्मों में देश के प्रति उनका प्रेम झलकता है. फिर चाहे यह उनकी फिल्में ‘कर्मा’, ‘परदेस’, ‘यादें’ और कोई और क्यों न हो. उनके इसी देश प्रेम के बारे में ऑस्कर विजेता संगीतकार ए.आर. रहमान ने एक साक्षात्कार में कहा था कि घई ने ही उन्हें एक गाने में ‘जय हो’ शब्द का इस्तेमाल करने के लिए कहा था.
झोली में कई पुरस्कार :
घई को वर्ष 1992 में ‘सौदागर’ फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के पुरस्कार से नवाजा गया. उन्होंने 1998 में ‘परदेस’ के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा का पुरस्कार जीता. ‘इकबाल’ के लिए अन्य सामाजिक मुद्दों पर सर्वश्रेष्ठ फिल्म बनाने के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता.
घई को लेखन से प्यार :
उन्होंने बिग एफएम रेडियो पर एक साक्षात्कार में कहा, “दरअसल, एक लेखक के रूप में मैंने फिल्म ‘यादें’ की कहानी, पटकथा और संवाद लिखे थे. जब एक संवाद लेखक कहानी लिखता है, तो संवादों से कविता की पंक्तियां भी अपने आप ही आती हैं. शब्दों के जाल बुनकर आप संवादों से कविता भी लिख सकते हैं.” घई ने साल 2003 में आई फिल्म ‘जॉगर्स पार्क’ के लिए न सिर्फ संवाद लिखे थे, बल्कि कुछ गीत भी लखे थे. लेकिन वह खुद को एक पेशेवर लेखक नहीं मानते हैं.
उन्होंने बताया, “फिल्म ‘जॉगर्स पार्क’ का गीत ‘कभी पा लिया तो कभी खो दिया’ और ‘इकबाल’ का गीत ‘खेलेंगे खेलेंगे’ मैंने लिखा था.”