सभ्यता का स्पीड ब्रेकर
पूनम वासम | फेसबुक
[एक]
उनके पैरों की जूतियाँ मीलों चलने के बाद भी मुँह फुला कर नहीं बैठ जाती
बल्कि उनके तलवों की कठोरता के भीतर से छालों की तरह उफ़न आई कोमलता पर
थोड़ी देर इतरा लेती हैं
दो जोड़ी हरी वर्दी, एक जोड़ी जूता, एक जोड़ी चप्पल
एक शीशी तेल, एक नहाने का साबुन, एक कपड़ा धोने का साबुन, दो सर्फ़ पैकेट,
एक किलो फल्लीदाना का बोझ उठाते उनके कंधे उचक कर मुस्कुरा देते हैं
पहाड़ी नदियाँ दो-चार दिनों में एक बार उनकी
देह की गंध पा कर बौरा जाती हैं
चार बंदूकों की आड़ में वह बहाती हैं अपने शरीर का कसैलापन, कपड़ों पर लगे दाग डिटर्जेंट पाउडर के साथ उड़ा देती हैं जंगल में
धोती सुखाती
फिर बनाती हैं बीत्ते भर लूंगी के कपड़े से
उन दिनों के लिए सुरक्षाकवच
वो सीख गई है अच्छी तरह हिसाब लगाना
एक लूंगी की लंबाई-चौड़ाई समझने लगी हैं अब
उनकी उंगलियाँ साड़ी के प्लेट्स
उतनी तेजी से नहीं बना पाती हैं
जितनी तेजी से दबाती हैं वह बंदूक की लिबलिबी (घोड़ा)
धनुष-बाण, गुलेल उनके इशारों पर दौड़ते हैं
उनकी हँसी जंगल को बचाती है ठूँठ होने से.
[दो]
उनके भीतर भरा जाता है गुस्से का सिलेंडर
उन्हें सिखाया जाता है लड़ना
व्यवस्था के खिलाफ’ सामाजिक अन्याय के खिलाफ
वे लड़ती हैं जी जान से
ऊँच-नीच की परवाह किये बिना
पर उन्हें कभी नहीं पढ़ाया गया
कामरेड अनुराधा गांधी की जीवनी वाला पाठ
किसी साजिश के तहत उन्हें बंजर बनाया जा रहा है
वह भूल चुकी है सृष्टि के प्रारंभ की कथा.
उनकी सतर्क भाषा के भीतर वर्जित है
प्रेम, शादी बच्चा जैसे शब्द!
उनकी देह उन लोगों के लिए उत्सव की तरह है
जिनकी पाँच उंगलियों के बीच वे फँसा देना चाहती हैं अपनी पाँच उंगलियाँ
किसी सुरक्षित खाँचे का भरम समझ कर.
उन्हें तो यह भी याद नहीं कि उनके कंधे पर जो बंदूक टंगी है उनमें असली बारूद है.
शक होता है देवताओं की नीयत पर
कोई ईश्वर इतना पक्षपाती कैसे हो सकता है?
[तीन]
उनके नाम से काँपता है जंगल के बाहर का आदमी
उनके नाम से दर्ज होते हैं
थानों में कई-कई खूंखार अपराध
वसूली से लेकर, हत्या तक का मामला
झीरम घाटी जैसे नर संहार में भी उनकी बंदूक बिना रुके धाँय-धाँय चलती रहती है.
उनका पता बताने वालों के लिए
ईनाम घोषित है.
जन-अदालत हो
छापामार या जनमलेशिया
उनके बाजूओं के शौर्य से जगमगाता है
उन्हें देखकर सोचती होंगी गाँव की सारी औरतें
औरतों को उनके जैसा ही होना चाहिए
उन जैसी औरतों के लिए बेहद जरूरी होता है इन जैसी औरतों का संग
वह जो भी बन जाएँ- जो भी हो जाए
उनकी उपेक्षा की पीड़ा पर कोई पुरुष नहीं धरेगा नर्म, मुलायम, ठंडा हाथ
वह चाहे जितनी हिंसक हो जाएँ चाहे
जितनी स्वार्थी, नहीं तोड़ पायेंगी लिंग से बने हुए ब्रेकर
संसार की सारी भाषाएँ
एक होकर भी व्यक्त नहीं कर सकती उनका दर्द
उनकी चुप्पी गंभीर विषय के विमर्श का हिस्सा नहीं बन सकती
उनके पास ऐसी कोई भाषा ही नहीं
कि लिखित में दर्ज करवा सकें अपनी शिकायत.
उनकी गुलेल की कच्ची गोटियों से कुछ नया नहीं होने वाला
जरूरत है
एक दूसरे के सीने में उतनी आग इकठ्ठा करने की
कि जितनी काफी हो एक लिंग जला कर राख करने के लिए.