सिलगेर में आंदोलन जारी रहने का दावा
रायपुर | संवाददाता: क्या बस्तर के सिलगेर में कलेक्टर ने दबाव बना कर आंदोलन खत्म करवाने की कोशिश की और बस्तर के कुछ आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता भी सरकार के इस काम में साथ थे? कम से कम सिलगेर से जो खबरें आ रही हैं, उससे तो ऐसा ही लग रहा है.
आरोप है कि बस्तर के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने श्रेय लेने की कोशिश करते हुए 8 जून को ही आंदोलन को खत्म करवाने और कथित रुप से उसे सुकमा में चलाने का दावा करते हुए पूरे आंदोलन की दिशा ही बदल दी. अब ये सामाजिक कार्यकर्ता चुप्पी साध कर बैठ गये हैं.
सिलगेर के आदिवासियों ने आरोप लगाया कि इन नेताओं नें भ्रामक तरीके से बिना किसी रणनीति और मांग पूरे हुए, आंदोलन के खत्म होने की घोषणा कर दी. आंदोलन को अगले दिन समाप्त करने की घोषणा उसी समय की गई, जब रायपुर में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के सदस्य आदिवासियों की मांग पत्र को लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मिलने पहुंचे थे.
Bastar: सिलगेर में 28 दिनों से सुरक्षा बलों के नए कैम्प के विरोध में चल रहा आंदोलन 9 जून को समाप्त हो सकता है। आंदोलनकारियों ने इसके संकेत दिए हैं। इस कैम्प के विरोध में अब तक 4 आदिवासियों की मौत हो चुकी है। आज समाजसेवियों का एक दल CM भूपेश बघेल से भी मिला था।@MukeshChandrak9 pic.twitter.com/gbrTr5Tim1
— Bastar Junction (@BastarJunction) June 8, 2021
यहां तक कि 8 जून को राज्य की राज्यपाल अनुसुइया उइके और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ग्रामीणों से मुलाकात की इच्छा जताई थी, उसकी प्रतीक्षा किए बिना आंदोलन को खत्म करने की घोषणा कर दी गई. आंदोलन खत्म होने के बाद यही सामाजिक कार्यकर्ता मुख्यमंत्री के ऑनलाइन मुलाकात किये जाने पर दुख जता रहे हैं और कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने मिलने की ज़रुरत नहीं समझी.
सिलगेर के एक आदिवासी नौजवान ने कहा कि 28 दिनों तक आंदोलन चलने के बाद जब आदिवासी गोली, लाठी से नहीं हटे तो बाहरी लोगों ने किस आधार पर आंदोलन को खत्म करने की घोषणा की थी? आंदोलन को खत्म करने की घोषणा की गई और फिर आदिवासियों में भ्रम की स्थिति बनाई गई.
आंदोलन जारी है
इस बीच मूलवासी बचाओ मंच ने सिलगेर आंदोलन के नहीं खत्म होने का दावा किया है. इस संगठन ने रविवार को एक पोस्टर जारी करते हुए कहा है कि आंदोलन के खत्म होने की झूठी खबर फैलाई जा रही है. पोस्टर में आंदोलन को 27 जून तक चलने और सारकेगुड़ा में 28 जून को जनसभा करने की बात कही गई है.
पोस्टर में कहा गया है कि सिलगेर कैंप विरोधी जनआंदोलन जारी है. आंदोलन के समर्थन करने वाले लोगों से अपील है कि समर्थन जारी रखें। हर संभव मदद करें. आंदोलन को खत्म करने की झूठी खबर फैलाई जा रही है. पोस्टर में कहा गया है कि कोरोना सावधानियों के साथ ही 27 तक सिलगेर में धरना को सफल बनाएं और 28 जून को सारकेगुड़ा जनसभा में शामिल हों.
सिलगेर के सवाल
गौतरलब है कि पिछले महीने की 14 तारीख़ से बीजापुर और सुकमा ज़िले की सीमा पर स्थित सिलगेर में पुलिस कैंप खोले जाने का आदिवासी विरोध कर रहे थे. ग्रामीणों का कहना था कि कैंप खुलने के बाद आदिवासियों की खेती बाड़ी, वनोपज संग्रहण और कहीं आना-जाना भी प्रतिबंधित हो जाता है.
ग्रामीणों का आरोप था कि सुरक्षाबल के जवान कभी भी गांवों में घुस कर ग्रामीणों के साथ मारपीट करते हैं, लूटपाट करते हैं और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करते हैं.
ग्रामीणों ने आरोप लगाया था कि पूरा इलाका पेसा कानून के तहत आता है. ऐसे में ग्राम सभा की मंजूरी के बिना इस तरह का कोई काम नहीं किया जा सकता. इसके अलावा जहां कैंप लगाया जा रहा है, वह ज़मीन एक आदिवासी की निजी ज़मीन है.
ग्रामीण इसी बात को लेकर 14 मई से सिलगेर कैंप के सामने प्रदर्शन कर रहे थे. 17 मई को दोनों पक्षों के बीच विवाद शुरु हुआ और पुलिस की गोलीबारी में 3 आदिवासी मारे गये थे. इस गोलीबारी में घायल एक गर्भवती महिला की बाद में मौत हो गई थी.
पुलिस का आरोप
इधर एक अधिकारी ने दावा किया है कि सिलगेर में अब सड़क निर्माण का काम चालू है और आंदोलन जैसी कोई स्थिति नहीं है.
अधिकारी ने कहा कि जिस दिन आंदोलन खत्म करने की घोषणा की गई, उस दिन तर्रेम थाने में बीजापुर ज़िले के कलेक्टर, डीआईजी सीआरपीएफ, एसपी के साथ ग्रामीणों के बीच चर्चा की गई थी.
पुलिस का आरोप है कि प्रदर्शन माओवादियों के इशारे पर हो रहा था और मारे गये तीनों आदिवासी भी माओवादी थे. हालांकि सर्व आदिवासी समाज, आदिवासी महासभा जैसे संगठनों नें जांच के बाद पुलिस के आरोप को झूठा बताया है.
इसके अलावा प्रशासन ने भी मृतकों को 10-10 हज़ार रुपये का मुआवजा दिया था, जिसके कारण पुलिस के दावे पर सवाल उठ रहे हैं.
इलाके के आईजी सुंदरराज पी का कहना है कि कैंप का निर्माण अस्थाई तौर पर किया जा रहा है और इसका उद्देश्य यही है कि इलाके में सड़क बने और विकास की दूसरी गतिविधियां शुरु हों. लेकिन माओवादियों को इस बात का डर सताता है कि विकास की प्रक्रिया शुरु होने से माओवादियों की पकड़ कमज़ोर होगी. यही कारण है कि वे ग्रामीणों को उकसा कर इस तरह के सुरक्षाबलों के कैंप का विरोध करवाते हैं.