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छत्तीसगढ़ में सिकलसेल मरीजों को ख़राब दवा

रायपुर|संवाददाताः छत्तीसगढ़ के कई सरकारी अस्पतालों में सिकलसेल के मरीजों को नकली, ख़राब या गुणवत्ताहीन दवाइयां दी जा रही हैं.

सिकलसेल मरीजों को दी जा रही ‘पा’ टेबलेट की गुणवत्ता इतनी खराब है कि दवा का रेपर खोलते ही टेबलेट पाउडर की तरह उड़ रहा है. कई रेपर तो पहले से खुले और फटे हुए हैं. इसकी पैकिंग भी ठीक से नहीं की गई है. जबकि इस टेबलेट के वितरण और उपयोग पर पूरी तरह से रोक लगाने का दावा अधिकारी कर रहे हैं. इसके बाद भी इसे मरीजों को बांटा जा रहा है.

इस दवा की छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन यानी सीजीएमएससी रायपुर द्वारा छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों में सप्लाई की गई है.

एफएटी 1120 बैच के पांच लाख से अधिक स्तरहीन टेबलेट सरकारी अस्पतालों में भेजी जा चुकी है.

इस टेबलेट की गुणवत्ता में खराबी की शिकायत बिलासपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, और राजधानी रायपुर सहित कई जिलों के सरकारी अस्पतालों से लगातार मिलती रही है.

इसकी जानकारी मिलते ही आनन-फानन में सीजीएमएससी की एमडी पद्मिनी भोई ने इस टेबलेट्स के वितरण और उपयोग पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है. साथ ही इसे अस्पतालों से वापस मंगाने के लिए भी कहा है.

लेकिन राज्य के कई अस्पतालों में इस गुणवत्ताहीन दवा को बांटने का सिलसिला जारी है.

बिलासपुर में बरती गई लापरवाही

बिलासपुर के सिम्स, जिला अस्पताल और सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को इस दवा पर रोक की कोई जानकारी नहीं है. ना ही इन अस्पतालों से दवाइयां वापस मंगवाई है. जिसके चलते बिलासपुर से सरकारी अस्पतालों में अभी भी यही दवा दी जा रही है.

दूसरी ओर बिलासपुर के जिला सर्विलेंस अधिकारी को इस बात की जानकारी भी नहीं है कि इस टेबलेट का वितरण जिले में कहां-कहां किया गया है.

हालांकि सीजीएमएससी की एमडी पद्मिनी भोई का कहना है कि सिकलसेल के मरीजों के लिए भेजी गई दवाई के वितरण और उपयोग पर रोक लगाने के निर्देश दिए गए हैं.

सिकलसेल संस्थान समेत प्रदेश में जहां-जहां इसका वितरण किया गया है, उसे तत्काल वापस मंगवाने के लिए कहा गया है. साथ ही एफएटी 1120 बैच की दवा का दोबारा लेबोरेटरी टेस्ट कराया जाएगा.

क्या है सिकलसेल

प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में लाल रक्त कोशिकाएं होती हैं जो आकार में गोल, नर्म और लचीली होती हैं . यह लाल रक्त कोशिकाएं जब स्वयं के आकार से भी सूक्ष्म धमनियों में से प्रवाह करती हैं तब वह अंडाकार हो जाती है.

सूक्ष्म धमनियों से बाहर निकलने के पश्चात कोशिकाओं के लचीलेपन के कारण वे पुनः अपना मूल स्वरूप ले लेती हैं.

लाल रक्त कोशिकाओं का लाल रंग उसमे रहने वाले हीमोग्लोबिन नामक तत्व के कारण होता है. स्वस्थ रक्तकण में हीमोग्लोबिन नॉर्मल अर्थात सामान्य प्रकार का होता है. हीमोग्लोबिन का आकार सामान्य के बदले असामान्य भी देखने को मिलता है.

जब लाल रक्त कोशिकाओं में इस प्रकार का बदलाव होता है तब लाल रक्त कोशिकाएं जो सामान्य रूप से आकार में गोल तथा लचीली होती हैं, गुण परिवर्तित कर अर्ध गोलाकार एवं सख्त/कड़क हो जाती हैं जिसे सिकलसेल कहा जाता है (लेटिन भाषा में सिकल का अर्थ हंसिया होता है).

यह धमनियों में अवरोध उत्पन्न करती हैं, जिससे शरीर में हीमोग्लोबिन व खून की कमी होने लगती है इसलिए इसे सिकल सेल एनीमिया कहा जाता है. लाल रक्त कोशिकाओं का यह विकार हमारे अंदर रहने वाले जीन की विकृति के कारण होता है.

जब लाल रक्त कोशिकाओं में इस प्रकार का विकार पैदा होता है तब व्यक्ति के शरीर में अलग-अलग प्रकार की शारीरिक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जैसे कि हाथ पैरों में दर्द होना, कमर के जोड़ों में दर्द होना, अस्थिरोग, बार- बार पीलिया होना, लीवर पर सूजन आना, मूत्राशय में रूकावट/दर्द होना, पित्ताशय में पथरी होना. जब किसी भी व्यक्ति को यह समस्याएँ होने लगें तो उसे रक्त की सिकल सेल एनीमिया के लिए जांच करवाना आवश्यक होता है.

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