छत्तीसगढ़ विशेष

छत्तीसगढ़ के 20 फ़ीसदी गोंड आदिवासी सिकलसेल के शिकार

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में सिकलसेल की समस्या कम होने का नाम नहीं ले रही है.कुछ वर्ष पहले तक यह मान्यता थी कि सिकलसेल से पीड़ित अधिकांश लोग कुर्मी, तेली और साहू समाज से आते हैं लेकिन पिछले कुछ सालों के अध्ययन ने इस धारणा को बदल दिया है.

ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि आदिवासियों में यह समस्या तेज़ी से बढ़ी है.

अकेले गोंड आदिवासी समाज की लगभग 20 फ़ीसदी आबादी सिकलसेल से ग्रस्त है.

केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार आदिवासियों की 8.75 फ़ीसदी से अधिक आबादी सिकलसेल की बीमारी से ग्रस्त है.

देश भर में आदिवासियों के बीच 2016-2018 के बीच राष्ट्रव्यापी स्क्रीनिंग में 1,13,83,664 लोगों के नमूने एकत्र किए गए थे.

इनमें से 9,96,368 लोग सिकलसेल की बीमारी से ग्रस्त पाए गए.

क्या है सिकलसेल

प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति के रक्त में लाल रक्त कोशिकाएं होती हैं जो आकार में गोल, नर्म और लचीली होती हैं. यह लाल रक्त कोशिकाएं जब स्वयं के आकार से भी सूक्ष्म धमनियों में से प्रवाह करती हैं तब वह अंडाकार आकार की हो जाती है.

धमनियों से बाहर निकलने के बाद कोशिकाओं के लचीलेपन के कारण वे पुनः अपना मूल स्वरूप ले लेती हैं.

लाल रक्त कोशिकाओं का लाल रंग उसमें रहने वाले हीमोग्लोबिन नामक तत्व के कारण होता है. स्वस्थ रक्तकण में हीमोग्लोबिन सामान्य प्रकार का होता है.

लेकिन हीमोग्लोबिन का आकार सामान्य के बदले असामान्य भी देखने को मिलता है.

जब लाल रक्त कोशिकाओं में इस प्रकार का बदलाव होता है तब लाल रक्त कोशिकाएं, जो सामान्य रूप से आकार में गोल तथा लचीली होती हैं, यह गुण परिवर्तित कर अर्ध गोलाकार एवं सख्त कड़क हो जाती हैं, जिसे सिकलसेल कहा जाता है.

इसके कारण यह धमनियों में अवरोध उत्पन्न होता है, जिससे शरीर में हीमोग्लोबिन व खून की कमी होने लगती है. इसे सिकल सेल एनीमिया कहा जाता है.

इससे पीड़ित व्यक्ति के हाथ पैरों में दर्द होना, कमर के जोड़ों में दर्द होना, अस्थिरोग, बार- बार पीलिया होना, लीवर पर सूजन आना, मूत्राशय में रूकावट, दर्द होना, पित्ताशय में पथरी होना जैसी समस्या सामने आती है.

अनुवांशिक बीमारी

यदि माता और पिता में सिकल सेल के गुण अथवा सिकल सेल का रोग नहीं है तो उनके बच्चों को यह रोग नहीं होता है. यानी जिन माता-पिता के हीमोग्लोबिन सामान्य हैं, उनके बच्चों को यह रोग नहीं होता है.

यदि माता अथवा पिता दोनों में से कोई भी एक व्यक्ति सिकल वाहक होगा तो 50% बच्चों को सिकल वाहक होने का और 50% बच्चे में सामान्य गुण वाले होने की सम्भावना होती है.

लेकिन इसमें से किसी भी बच्चे को सिकल रोग नहीं होती है.

यदि माता पिता दोनों ही सिकल वाहक होंगे तो उनके 25% बच्चों को सिकल रोग, 50% बच्चे सिकल वाहक और मात्र 25% सामान्य बच्चे होने की सम्भावना रहती है.

यदि माता-पिता में से कोई भी एक व्यक्ति सिकल रोग वाला है और दूसरा व्यक्ति सामान्य है तो 100% यानी की सभी बच्चे सिकल वाहक हो सकते है परन्तु उनमें सिकल रोग नहीं होगा.

यदि माता-पिता दोनों में से एक व्यक्ति सिकल रोग वाला और एक व्यक्ति सिकल वाहक वाला होगा तो उनके 50% बच्चे सिकल रोग वाले होंगे और 50% बच्चे सिकल वाहक वाले होंगे.

यदि माता पिता दोनों सिकल रोग वाले होंगे तो 100% यानी की सभी बच्चे सिकल रोग वाले ही जन्म लेंगे.

उपाय

चिकित्सकों का कहना है कि विवाह करते समय ख़ून की जांच ज़रुर कराई जानी चाहिए.

विवाह के समय यह देखा जाना चाहिए कि दोनों व्यक्तियों में सिकल वाहक अथवा सिकल रोग नहीं हो.

यदि दोनों व्यक्तियों में से कोई एक सिकल सेल वाहक है, या किसी एक को सिकल सेल रोग हो तो बच्चों को सिकल रोग नहीं हो सकता.

हालांकि ऐसा होने पर भी सिकल सेल वाहक होने की सम्भावना रहती है.

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