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अस्पताल बीमार कैसे हो मरीजों का उपचार

रतनपुर | उस्मान कुरैशी चपोरा क्षेत्र में भी मलेरिया ने पैर पसार लिए है. इस क्षेत्र में मरीजों से ज्यादा अस्पतालों की स्थिति गंभीर है. भवन तो है पर डाक्टर नही है. मितानिनों के पास दवाएं नहीं है. इन सब अभावों के बाद भी स्वास्थ्य प्रशासन आल इज वेल के फलसफे गढ़ रहा हैै.

कोटा विकासखंड के खैरा चपोरा सेमरा सेमरी बिरगहनी बानानेल बासाझाल पचरा उमरिया दादर कोइलारीपारा सेकर टेन्दूभाटा रिगवार पुडु बंगलाभाटा कुम्हड़ाखोल आदिवासी बाहुल्य इलाके है. इन क्षेत्रों में बसे लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने चपोरा व पुडु में सरकारी एलोपैथिक व आयुर्वेदिक अस्पताल है.

चपोरा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र का प्रभार ग्रामीण चिकित्सा सहायक राधेष्याम तिवारी के पास है. जिसकी गैरमौजूदगी ज्यादातर बनी रहती है. आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी के रूप में श्रीमती किरण नायक पदस्थ है. जिनके जिम्मे ही अघोशित रूप से अस्पताल के दायित्व है. अस्पताल परिसर में मुफत मिलने वाली दवाओं की सूची है. इस सूची से उपलब्ध दवाओं के विवरण गायब है. अस्पताल में मौजूद प्रभारी के पास भी इसका माकूल जवाब नही है. सारा क्षेत्र माह भर से मलेरिया के प्रकोप का शिकार है.

अस्पताल से मिले बीते पखवाड़े भर के अधिकारिक आंकड़ो के मुताबिक 105 बुखार पीड़ितों में 31 मलेरिया रोगी मिले. चपोरा के ही समीप के ग्राम पंचायत उमरिया दादर के कोइलारीपारा सप्ताह भर से पूरी तरह मलेरया व मौसमी बुखार से प्रभावित है. खैरा के सामाजिक कार्यकर्ता उत्तम सिंह कहते है कि कोइलारी पारा के काफी लोग पीड़ित है. स्वास्थ्य अमले के कोई भी कर्मचारी ग्रामीणों के बीच जांच के लिए नही पहुंचा है.

कुछ आगे बढ़े तो ग्राम पंचायत रिगवार के पीपरपारा में एमपीआर जनक कुमार पटेल ग्रामीणों के स्वास्थ्य की जांच करते मिले. बीते माह से यहां मलेरिया प्रभावित मरीज मिल रहे है. वे अब स्थिति नियंत्रण में होने की बात कहते है. कुछ दिनों पहले यहां बुखार से एक वुद्व की मौत हुई थी जिसे वे बुढ़ापे की वजह से स्वाभाविक मौत होना बताते है.

इसी गांव की सरस्वती बाई और उसकी तीन साल की बेटी सुमन को तीन दिन से बुखार है. जांच के लिए स्वास्थ्य कर्मियों के आने की खबर पर वे घर के बाहर ही उनका इंतजार करते मिली. 55 साल की गनेशिया बाई भी घर के बाहर इनके इन्तजार में थी. प्राथमिक उपचार के लिए षासन से गांव के मितानिनों को दवाएं भी मिलती है.

इस इलाके कि मितानीन फटकन बाई को मिली दवाएं माह भर पहले ही खत्म हो गई है. फटकन बाई कहती है कि गांव में फैली मौसमी बिमारियों की वजह से सारी दवाएं खत्म हो गई. इसके बाद दवाएं उपलब्ध नही कराई गई है. गांव में बुखार से पीड़ितों के नए मामले आ ही रहे हैं जो ठंड के साथ बढ़ते ही जाएंगे. ऐसे में हालात की गंभीरता का अंदाजा सहजता से लगाया आ सकता है.

आगे के गांव पुडु में 20 वर्शीय आदिवासी युवती सुनीता पैकरा की मौत बीते 20 नवम्बर को मलेरिया से हो गई है. उसे गंभीर अवस्था में उपचार के लिए रतनपुर के निजी चिकित्सालय में भर्ती कराया गया था. उपचार के दौरान उसने यहा दम तोड़ दिया . पुडु में उप स्वास्थ्य केन्द्र का भवन साल भर से बनकर तैयार है. पर अब तक वहां स्वस्थ्य अमले की नियुक्ति नही की जा सकी है आयुर्वेद अस्पताल भी है जहां तीन माह पहले ही आयुर्वेद चिकित्सक अजय कुमार भारतीय ने पदभार संभाला है.

श्री भारतीय 50 किमी दूर बिलासपुर से अपनी सुविधा के अनुरूप ग्रामीणों के उपचार के लिए पहुचंते है. बहुत से गा्रमीणों को तो यहां डाक्टर के पदस्थ होने की जानकारी तक नहीं है. आयुर्वेद औषधालय के कंपाउंडर मेलउराम लासकर अस्पताल के बाजू के ही सरकारी भवन में रहते है. मेलउराम ही अस्पताल पहंुचने वाले मरीजों का उपचार करते है.

अधिकारिक तौर पर मेलउराम डाक्टर के नही आने की बात से इंकार करते है. औषधालय में लटकते ताले से सारा सच जाहिर होने लगता है. वनांचल के इन ग्रामीणों को एमबीबीएस डाक्टर से स्वास्थ्य सेवाएं लेने 30 किमी दूर रतनपुर की यात्रा करनी पड़ती है. दिन में तो एक दो परिवहन के साधन उपलब्ध हो जाते है. रात कि समय तबियत बिगड़ने पर तो सबकुछ भगवान भरोसे ही रहता है.

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