भाजपा-कांग्रेस यानी सांपनाथ-नागनाथ
अंबिकापुर | याज्ञवल्क्य: पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चालानंद ने भाजपा और कांग्रेस को सांपनाथ-नागनाथ की संज्ञा दी है.अपनी तल्ख जुबान में उन्होंने कहा कि प्रमुख राजनीतिक दल दो ही हैं भाजपा और कांग्रेस बाकी सब हिस्सों में इनके अनुयायी हैं, सहयोगी हैं और यह दोनों ही नागनाथ और सांपनाथ की भूमिका में हैं. पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चालानंद, इसी तल्ख जुबान में राममंदिर मुददे पर भाजपा को कटघरे पर लाते हुए नीति और नियत पर सवाल उठाते हैं.
बकौल स्वामी निश्चलानंद देश की सीमाएं असुरक्षित हैं और चीन को अनबोला ही सही मगर यह न्यौता है कि वह हमला करे. एक सिरे से सभी राजनैतिक दलों को सत्तालोलूप करार करने वाले शंकराचार्य हालांकि यह सही-सही नहीं बता पाए कि आखिर फिर विकल्प क्या है. हालांकि उन्होंने कहा कि साधु संतों की यह जवाबदेही है कि वह जनता को जागरूक करे और फिलहाल वे यही काम कर रहे हैं.
भाजपा के एक बार फिर से राम मंदिर मुददे पर लौटाने की कवायद को शंकराचार्य ने भाजपा की धोखेबाजी करार देते हुये कहा कि भाजपा ने राम के प्रति अपने दायित्व का निवर्हन किया होता तो मार्ग प्रशस्त हो जाता, बाजपेयी काल में सीधे धोखा दिया गया है.
पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद फिलवक्त सरगुजा के अंबिकापुर में तीन दिवसीय प्रवास पर हैं, जिसके अंतिम दिन वे गंगा बचाओ अभियान के तहत विशाल रैली भी निकालेंगे, जिसकी विशाल भागीदारी को लेकर अनुयायी लगातार कवायद में जुटे हुए हैं. स्वामी निश्चुलानंद इस अभियान को राष्ट्रीय स्वुरूप देने की कोशिशों में हैं. उनके अनुसार गंगा पर बने बांध और नहर परियोजना गंगा को नष्ट कर रही हैं, इन्हें हर हाल में निरस्त करना ही होगा.
शंकराचार्य के अनुसार गंगा आस्था और समृद्व सांस्कृतिक सभ्यता की जीवंत प्रतीक है और इसे बचाना पर्यावरण, संस्कृति और धर्म का साझा काम है. स्वामी निश्च्लानंद गंगा पर उत्तराखंड में चल रहे नहर परियोजना और बांध को लेकर सरकार से खफा हैं. फिर चाहे सरकार राज्य की हो या फिर केंद्र की.
आदर्श की रक्षा के लिए विवाद भूषण है
विवाद का अर्थ क्या होता है, हम गंगा की आवाज बुलंद कर रहे हैं, तो हम विवाद कर रहे हैं? सच तो यह है कि यह सरकार की नीति शून्यता है. राम सेतू को ना तोड़े जाने की बात करूं तो मैं राष्ट्रद्रोही और जो सरकार इसे तोड़े वह देशभक्त . क्या राम सेतु ऐतिहासिक महत्व की नहीं मानी जानी चाहिए, क्या उसका संरक्षण नही होना चाहिए. वह पुल भी तो वैदिक विज्ञान का जीवंत उदाहरण है. उसे सुरक्षित रखने के बजाय तोड़ा क्यों जाए? आदर्श की रक्षा के लिए विवाद हुआ तो वह भूषण हुआ, लेकिन आदर्श को विलुप्त करते हैं तो दूषण है.
-शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती