सरदार पटेल के बेटे और बेटी की राजनीति
राजेंद्र तिवारी | फेसबुक
झूठ है यह कहना कि सरदार पटेल का परिवार राजनीति से दूर रहा. मणिबेन पटेल कांग्रेस से दो बार लोस सदस्य और एक बार रास सदस्य रहीं, बाद में भारतीय लोक दल में शामिल हुईं, 1977 में जनता पार्टी से लोस पहुंचीं.
दयाभाई पटेल कांग्रेस से तीन बार राज्यसभा गये.मैं सरदार पटेल के परिवार के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं रखता हूं, लिहाजा जब प्रणब मुखर्जी की किताब ‘द कोलीशन ईयर्स’ के पहले अध्याय के दूसरे पैरा में लिखा मिला कि 1971 में जब प्रणब दा राज्यसभा के सदस्य बने उस समय राज्यसभा में सरदार पटेल के पुत्र दयाभाई पटेल व पुत्री मणिबेन पटेल भी थीं, आश्चर्य हुआ.
इस समय सरदार पटेल को लेकर तमाम तरह की बातें कही जा रही हैं और उन बातों को सुनकर यह सहज ही विश्वास हो जाता है कि 1950 में सरदार पटेल की मृत्यु के बाद उनकी संतानों का राजनीति से कोई ताल्लुक नहीं रहा होगा. सरदार पटेल की दो संतानें थीं, एक बेटी और एक बेटा. बेटी मणिबेन पटेल तीन बार लोकसभा सदस्य और एक बार राज्यसभा सदस्य रहीं. बेटा दयाभाई पटेल तीन बार राज्यसभा सदस्य रहे.
सरदार पटेल की मृत्यु के बाद हुए पहले आम चुनाव में उनकी पुत्री मणिबेन पटेल कैरा साउथ से और दूसरे आम चुनाव में आणंद से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा सदस्य चुनी गईं. तीसरे आम चुनाव में मणिबेन पटेल स्वतंत्र पार्टी के कुमार नरेंद्र सिंह रंजीत सिंह महिदा से आणंद सीट पर 22729 वोटों से चुनाव हार गईं. चुनाव हारने पर कांग्रेस ने 1964 में उन्हें राज्यसभा भेजा जहां वह 1970 तक रहीं.
कांग्रेस के विभाजन के समय वे कांग्रेस संगठन में आईं. मणिबेन बाद में भारतीय लोकदल में शामिल हो गईं. 1977 के आम चुनाव में वह मेहसाणा से जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतीं. इसके बाद वह चुनावी राजनीति से दूर रहकर गुजरात विद्यापीठ, वल्लभ विद्यानगर, बारदलोई स्वराज आश्रम, नवजीवन ट्रस्ट आदि से जुड़ी रहीं. 1990 में उनकी मृत्यु हुई.
यही नहीं, सरदार पटेल के पुत्र दयाभाई वल्लभभाई पटेल 1958 से तीन बार राज्यसभा सदस्य रहे. पहली बार 1958 से 1964 तक, दूसरी बार 1964 से 1970 तक और तीसरी बार 1970 से 1973 (मृत्यु) तक वे राज्यसभा में रहे.