साराहा : पखानों के भीतर लिखने जैसी सुविधा?
सुनील कुमार
अभी एक नई मैसेंजर सर्विस शुरू हुई है, जिसका नाम है साराहा. इस शब्द का मतलब अरबी भाषा में ईमानदारी से या दिल खोलकर सच-सच कह देना होता है. इस नाम के मुताबिक ही इस मोबाइल एप्लीकेशन को गढ़ा गया है, इससे आप लोगों को संदेश भेज सकते हैं, लेकिन उन्हें आपका नाम पता नहीं चलेगा. भेजने वाले के नाम के बिना जाने वाले संदेशों का कोई जवाब भी नहीं दिया जा सकेगा. और आज की दुनिया में जब लोगों को एक-दूसरे तक संदेश भेजने के बावलेपन का दौर चल रहा है, लोग इसका इस्तेमाल करने पर टूट पड़े हैं. लेकिन इससे जुड़ी हुई कुछ बातों पर पहले सोच लेना बेहतर होगा, बजाय बिना सोचे इसका इस्तेमाल करने के.
पहली बात तो यह है कि कई बरस पहले जब फेसबुक जैसा एक सोशल मीडिया शुरू हुआ, तब भी लोगों को यह शक था कि यह अमरीकी खुफिया एजेंसी सीआईए का एक औजार है, और इससे लोग अपनी निजी और गोपनीय बातों को भी संदेश के बक्से में, या अधिक दुस्साहसी लोग इन्हें खुले रूप में भी लिखने लगे हैं. यह लतीफा भी चल निकला था कि फेसबुक आने के बाद अमरीकी सरकार ने सीआईए का खुफिया बजट घटा दिया है क्योंकि अब उसे मेहनत की जरूरत नहीं रहती, लोग ही अपने आने-जाने, खाने-पीने, जान-पहचान के बारे में लिख देते हैं, और तस्वीरें पोस्ट कर देते हैं.
कुछ लोगों का अब भी यह शक है कि दुनिया की खुफिया एजेंसियां फेसबुक पर निजी संदेश को भी देखने की ताकत रखती हैं, और कुछ भी सुरक्षित नहीं रहता. इसके बाद वॉट्सऐप नाम का एक दूसरा मैसेंजर लोकप्रिय हुआ, और दुनिया की सरकारें इसके संदेशों पर निगरानी रखने का कानूनी हक पाने के लिए अदालतों में पहुंची हुई हैं.
अभी जो लोग यह मानकर चलते हैं कि निजी संदेश गोपनीय रहते हैं, और मिटा देने पर वे हमेशा के लिए मिट जाते हैं, वे गलती पर हैं. कम्प्यूटर, फोन या इंटरनेट पर एक बार का भेजा हुआ कुछ भी कभी नहीं मिटता, और आगे-पीछे ऐसी तकनीक विकसित हो जाएगी जो मिटाई गई तमाम बातों को भी दुबारा सुबूत की शक्ल में खड़ा कर देगी. अब ऐसी नौबत में यह एक नया संदेशवाहक आया है जो कि भेजने वाले के नाम-नंबर के बिना एक गुमनाम संदेश पहुंचा देता है.
हो सकता है कि जो लोग आधुनिक तकनीक को ताबीज की तरह मान लेते हैं, वे लोग इस बात पर भी भरोसा कर लें कि ये संदेश सचमुच ही गोपनीय रहेंगे, और हमेशा के लिए गोपनीय रहेंगे. लेकिन ऐसे लोगों को यह याद रखना चाहिए कि दुनिया की सबसे ताकतवर अमरीकी सरकार के राजदूत अपनी सरकार को जो खुफिया ई-मेल भेजते थे, उन्हें विकीलीक्स ने करोड़ों की संख्या में चारों तरफ उजागर कर दिया था. इसके पहले और इसके बाद भी दुनिया की कुछ सबसे गोपनीय जानकारी उजागर हो गई थी, और कारोबार की दुनिया में बैंकों के कम्प्यूटरों को हैक करके सेंधमार अरबों-खरबों की चोरी करते ही रहते हैं.
ऐसे में अरब दुनिया से ईमानदारी के एक खिलौने की शक्ल में सामने आए इस मैसेंजर साराहा के बारे में सोचें, तो इसे इंसानी सोच के साथ जोड़कर देखना होगा. जब लोगों को गुमनाम कुछ करने की सहूलियत होती है, तो उनके भीतर की सबसे बुरी बातें निकलकर सामने आती हैं. किसी भी सार्वजनिक जगह पर पखानों के दरवाजों के भीतर लोगों की सारी भड़ास लिखी हुई दिखती है, और मौका मिलने पर खुली दीवारों और पेड़ों पर भी लोग अपनी हसरतों को गोद डालते हैं. ऐसे में जब लोगों को यह कहा जा रहा है कि उनके संदेश उनके नाम के बिना जाएंगे, तो लोगों के भीतर की हिंसा, उनकी भड़ास, उनकी अपूरित इच्छाएं, वे सब सामने आने लगेंगी. और देर रात अपने बिस्तर पर बैठे या लेटे हुए लोगों को बाकी दुनिया को परेशान करना कुछ वैसा ही सूझने लगेगा जैसा कि कुछ सार्वजनिक जगहों पर लोग अपने कपड़े हटाकर औरों को अपना बदन दिखाकर करने लगते हैं.
गुमनाम संदेश, यह सुनने में तो एक अच्छी सहूलियत है, लेकिन दूसरी तरफ जिन लोगों को ऐसे संदेश मिलेंगे, उनका दिमागी सुख-चैन हो सकता है कि बहुत से संदेशों से गायब होने लगे. लोग यही सोचते हैरान हो जाएंगे कि कौन उनसे मिलने की हसरत जाहिर कर रहे हैं, कौन उनके खुफिया राज जानते हैं, और कौन ऐसे लोग हैं जो कि उनसे इतनी नफरत करते हैं, या कि धमकी भेज रहे हैं. यह अपने आप में एक कानूनी दिक्कत की बात भी हो सकती है कि किसी को धमकी मिले, और वह उसके खिलाफ शिकायत भी न कर पाए.
यह देश के कानून के खिलाफ भी हो सकता है कि ऐसा कोई मैसेंजर हो जो गुमनाम काम करे, और जिसे जांच एजेंसियां भी पकड़ न पाएं, रोक न पाएं. इसलिए यह लोगों के दिमागी सुख-चैन से लेकर देश के कानून तक के लिए परेशानी का मैसेंजर हो सकता है. दुनिया में टेक्नालॉजी बनती तो है लोगों की जिंदगी में सहूलियतें बढ़ाने के लिए, लेकिन धीरे-धीरे तकनीक के सारे औजारों का बेजा इस्तेमाल भी होने लगता है, और जब यह इस्तेमाल बढ़ते-बढ़ते गुमनाम इस्तेमाल तक पहुंचने लगे, तो उसके कुछ अलग खतरे होने लगते हैं.
लोगों को याद होगा कि जब विकीलीक्स ने अमरीकी सरकार और उसके राजदूतों के बीच के करोड़ों ई-मेल उजागर किए, तो दुनिया भर के देशों को, वहां के नेताओं को, और वहां के प्रमुख लोगों को यह देखकर सदमा लगा था कि अमरीकी लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं. अब यह सोचें कि साराहा जैसे मैसेंजर कल के दिन कानूनी रूप से या तकनीकी सेंधमारी से यह उजागर करने को बेबस हो जाएगा, या कि उसका भांडा फूट जाएगा, और सारे संदेशों के साथ यह बात इंटरनेट पर तैरने लगेगी कि किसने किसको क्या लिख भेजा था, तो उस वक्त क्या होगा? यह कुछ उसी तरह का रहेगा कि पखाने के भीतर कैमरा फिट करके यह रिकॉर्ड कर लिया जाए कि दरवाजे के पीछे कौन सी गाली कौन लिख रहे हैं.
लोगों को अलग-अलग तरह की गोपनीयता देने वाले कुछ और मैसेंजर भी बाजार में है. सिग्नल नाम का एक मैसेंजर ऐसा माना जाता है कि उसे खुफिया एजेंसियां आसानी से हैक नहीं कर पातीं. यह मैसेंजर यह सुविधा भी देता है कि लोग अपने भेजे संदेशों के साथ यह तय कर सकें कि वे कितने सेकेंड बाद अपने आप मिट जाएंगे. अब ऐसी सुविधा के साथ लोग अधिक गोपनीय बातें, अधिक खतरनाक बातें लिखने को भी महफूज मान बैठने का खतरा उठा लेते हैं. लेकिन कल के दिन यह साबित हो जाए कि फोन की स्क्रीन से कुछ सेकेंड में गायब हो जाने वाले संदेश विकीलीक्स जैसे किसी भांडाफोड़ू ने इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिए हैं, तो क्या होगा?
इसलिए यह समझ लेना चाहिए कि टेक्नालॉजी कोई तिलस्म नहीं है, और दुनिया में सौ फीसदी गोपनीयता किसी चीज की नहीं होती. आज तो लोगों के दिल-दिमाग में जो सोच है, वह जरूर गोपनीय है, लेकिन इसके बारे में भी लोगों को यह मालूम रहना चाहिए कि दुनिया की कुछ सबसे आधुनिक प्रयोगशालाएं इसी बात का प्रयोग कर रही हैं कि लोगों के दिमाग को कैसे पढ़ा जा सके. जैसे-जैसे इसके लिए औजार बनते चलेंगे, वैसे-वैसे लोग अपनी सोच के साथ भी बिना कपड़ों की तरह हो जाएंगे, और मशीनें यह बताने लगेंगी कि किसके दिमाग में क्या चल रहा है.
ऐसे में किसी भी टेक्नालॉजी, किसी भी मैसेंजर सर्विस पर एक अंधविश्वास करना ठीक नहीं है. साराहा नाम का यह नया मैसेंजर आने के कुछ दिनों के भीतर ही कई ऐसी फर्जी वेबसाइटें आ गई हैं जो यह दावा कर रही हैं कि वे आपके पास आए इस गुमनाम संदेश को भेजने वाले के नाम-नंबर बता सकती हैं. अभी तो ऐसे दावे फर्जी दिख रहे हैं, लेकिन असली दावे अधिक दूर भी नहीं होंगे. इसलिए टेक्नालॉजी के बजाय अपनी सोच, अपनी नीयत, और अपने चाल-चलन पर अधिक भरोसा करना बेहतर है.
* लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शाम के अखबार छत्तीसगढ़ के संपादक हैं.