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जस्टिस संजीव खन्ना बने भारत के मुख्य न्यायाधीश

नई दिल्ली | डेस्क: जस्टिस संजीव खन्ना भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं. जस्टिस संजीव खन्ना ने सोमवार की सुबह राष्ट्रपति भवन में भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली.

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के नए मुख्य न्यायाधीश को शपथ दिलाई. शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद रहे.

रविवार को जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर अपना कार्यकाल ख़त्म किया था. वे दो साल से भी लंबे समय तक इस पद पर थे.

जस्टिस संजीव खन्ना को 24 अक्तूबर को ही भारत का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया था.

उन्होंने अपना करियर 1983 में शुरू किया था. सुप्रीम कोर्ट से पहले वो दिल्ली के तीस हजारी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, दिल्ली हाई कोर्ट समेत कई अदालतों में प्रैक्टिस कर चुके हैं.

वकालत विरासत में मिली

जस्टिस संजीव खन्ना को वकालत विरासत में मिली है.

उनके पिता देवराज खन्ना दिल्ली हाईकोर्ट के जज थे. वहीं चाचा हंसराज खन्ना सुप्रीम कोर्ट के मशहूर जज थे.

उन्होंने इंदिरा सरकार के समय इमरजेंसी लगाने का विरोध किया था. साथ ही राजनीतिक विरोधियों को बिना सुनवाई जेल में डालने पर भी नाराजगी जताई थी.

1977 में वरिष्ठता के आधार पर उनका चीफ जस्टिस बनना तय माना जा रहा था, लेकिन जस्टिस एमएच बेग को सीजीआई बनाया गया.

इसके विरोध में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा दे दिया था.

चाचा से प्रभावित होकर वकालत में आए

जस्टिस संजीव खन्ना अपने चाचा से काफी प्रभावित थे. इसीलिए उन्होंने वकालत को अपना कैरियर चुना.

उन्होंने 1983 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के कैंपस लॉ सेंटर से वकालत की पढ़ाई की.

1983 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल करने के बाद, न्यायमूर्ति खन्ना ने 2005 में अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत होने से पहले लगभग 23 वर्षों तक दिल्ली उच्च न्यायालय में वकालत की. फरवरी 2006 में उन्हें स्थायी न्यायाधीश बनाया गया.

उल्लेखनीय रूप से, वह उन मुट्ठी भर न्यायाधीशों में से हैं, जिन्हें देश के किसी भी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले शीर्ष अदालत में पदोन्नत किया गया था.

उन्होंने जिन पहले बड़े मामलों पर फैसला सुनाया, उनमें से एक यह था कि क्या सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) सीजेआई के कार्यालय पर लागू होता है. न्यायमूर्ति खन्ना ने इसके पक्ष में फैसला सुनाया और बहुमत का फैसला लिखा, जिसमें कहा गया कि न्यायिक स्वतंत्रता अनिवार्य रूप से सूचना के अधिकार का विरोध नहीं करती है.

2021 में, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने असहमति जताते हुए फैसला लिखा कि सेंट्रल विस्टा परियोजना के लिए अपेक्षित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया. इस परियोजना में भारत के पावर कॉरिडोर लुटियंस दिल्ली में प्रशासनिक क्षेत्र का पुनर्विकास शामिल है.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रहते हुए उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे.

अपने 6 साल के करियर में उन्होंने 450 बेंचों का हिस्सा रहे. इस दौरान 115 फैसले लिखे.

जस्टिस खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 26 अप्रैल को ईवीएम में हेरफेर के संदेह को निराधार करार दिया और पुरानी पेपर बैलेट प्रणाली पर वापस लौटने की मांग को खारिज कर दिया था.

जस्टिस खन्ना पांच न्यायाधीशों की उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के 2019 के फैसले को बरकरार रखा.

जस्टिस खन्ना की पीठ ने ही पहली बार तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल को आबकारी नीति घोटाले के मामलों में लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए 1 जून तक अंतरिम जमानत दी थी.

इसके अलावा भारत के नए मुख्य न्यायाधीश, चर्चित इलेक्टोरल बॉन्ड केस और अनुच्छेद 370 केस की सुनवाई और फ़ैसलों में भी शामिल रहे थे.

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