ख़बर ख़ासछत्तीसगढ़ विशेषविविध

…तो चावल, गेहूं का उत्पादन 40-47 फ़ीसदी घट सकता है

नई दिल्ली | संवाददाता: लगातार पेड़ों की कटाई और कार्बन गैसों के कारण अगले 25 सालों में वर्षा आधारित चावल की पैदावार में कम से कम 20 प्रतिशत की कमी आ सकती है. इसके बाद के सालों में उत्पादन में 47 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी.

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 में वर्षा आधारित चावल की पैदावार में 20 प्रतिशत और 2080 में 47 प्रतिशत की कमी आ सकती है.

उन्होंने कहा कि सिंचित चावल की पैदावार 2050 में 3.5 प्रतिशत और 2080 में 5 प्रतिशत, गेहूं की पैदावार 2050 में 19.3 प्रतिशत और 2080 में 40 प्रतिशत, खरीफ मक्का की पैदावार 2050 और 2080 में क्रमशः 18 से 23 प्रतिशत तक घटने की संभावना है. सोयाबीन की पैदावार 2030 में 3-10 प्रतिशत और 2080 में 14 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है.

शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने एक आकलन किया है. जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल आईपीसीसी के प्रोटोकॉल के अनुरूप 651 मुख्य रूप से कृषि प्रधान जिलों में से 573 के जोखिम और असुरक्षा का आकलन किया गया. इनमें से 109 जिलों को ‘अत्यधिक’ और 201 जिलों को ‘काफी अधिक’ संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया.

उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने के लिए 151 जलवायु संवेदनशील जिलों के 448 गांवों में अनुकूलन उपाय किए गए हैं.

शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि इनमें जलवायु अनुकूल किस्में, सीधे बीज वाले चावल डीएसआर, कुशल सिंचाई प्रणाली, मृदा स्वास्थ्य कार्ड और पत्ती रंग चार्ट के अनुसार नाइट्रोजन का उपयोग, फसल अवशेषों को जलाने से बचना, फसल अवशेषों को मिट्टी में पुनर्चक्रित करना, जीवाश्म ईंधन की जगह बायोगैस और वर्मीकंपोस्टिंग, बेहतर चारा प्रबंधन प्रणालियों और सामुदायिक चारा बैंक के माध्यम से पशुओं से मीथेन उत्सर्जन को कम करना, कार्बन सिंक के रूप में कृषि वानिकी प्रणाली और टर्मिनल हीट स्ट्रेस से बचने के लिए जीरो टिल ड्रिल गेहूं का उपयोग करना शामिल हैं.

कृषि मंत्री के अनुसार देश के 651 कृषि महत्वपूर्ण जिलों में जिला कृषि आकस्मिक योजना डीएसीपी तैयार की गई और उसे लागू किया गया.

उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि पर पड़ने वाले प्रभावों से निपटने के लिए सरकार किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल कृषि पद्धतियाँ अपनाने में सहायता करने के लिए राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन एनएमएसए लागू कर रही है.

इस मिशन के तीन प्रमुख घटक हैं- वर्षा आधारित क्षेत्र विकास आरएडी, खेत पर जल प्रबंधन ओएफडब्ल्यूएम; और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन एसएचएम.

हालांकि कृषि मंत्री ने कार्बन उत्सर्जन कम करने और पेड़ों की कटाई रोकने, नये पौधे लगाने जैसे उपायों को लेकर कोई चर्चा नहीं की. कृषि विभाग की पूरी तैयारी, जलवायु परिवर्तन की स्थिति में खेती के उपाय तक सीमित रही.

error: Content is protected !!