रिबई पंडो का पोता नहीं है बीपीएल
रायपुर | आलोक प्रकाश पुतुल: छत्तीसगढ़ के बलरामपुर ज़िले में स्थित बीजाकुरा गांव में रहने वाले रामसाय पंडो के घर के पिछवाड़े में बड़ा-सा पहाड़ है और रामसाय के घर में पहाड़ जैसा दुख. सबसे बड़ा दुख तो भूख है, जो तीन पीढ़ियों से उनका पीछा कर रही है और उनके परिवार के बारे में सुन कर तब के प्रधानमंत्री पी वी नरसिंहा राव उनके इलाक़े में आ गए थे.
इलाके के लोगों को याद है कि मई 1992 में यहां पहुंचे प्रधानमंत्री नरसिंहा राव ने एक ऐसी खाद्य नीति की घोषणा की थी, जिससे गोदामों से निकलने वाले अनाज का ग़रीबों तक पहुंचना सुनिश्चित हो सकेगा.
ये और बात है कि रामसाय पंडो के दादा रिबई पंडो के ज़माने में की गई यह घोषणा आज तक अमल में नहीं आ सकी.
केंद्र सरकार द्वारा विशेष संरक्षित पंडो आदिवासी रामसाय अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी मुश्किल से जुटा पाते हैं. लेकिन सरकार उन्हें ग़रीबी रेखा से ऊपर मानती है. क्यों, इसका जवाब कोई नहीं देना चाहता.
रामसाय पंडो की मां जकली बाई और भाई की भूख से मौत की ख़बर सबसे पहले 29 फ़रवरी 1992 को एक स्थानीय अख़बार ‘देशबंधु’ के पत्रकार कौशल मिश्रा ने जब सामने लाई तो मध्यप्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया. रामसाय पंडो के दादा रिबई पंडो के हवाले से यह ख़बर सामने आई थी. उसके बाद तो देसी-विदेशी मीडिया रिबई पंडो के घर टूट पड़ी.
हालत ये हुई कि रिबई पंडो की बहु जकली बाई और पोते की मौत को लेकर मध्यप्रदेश विधानसभा में विपक्ष ने पूरे विधानसभा सत्र का ही बहिष्कार कर दिया. पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल और पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा रिबई पंडो के गांव जा पहुंचे.
भूख से हुई इस मौत पर लोकसभा में चर्चा हुई और अंततः तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव ने रिबई पंडो के गांव आने का फ़ैसला किया.
रिबई पंडो और भूख से मौत इस तरह पर्यायवाची बने कि मीडिया में आज भी रिबई पंडो के ही भूख से मर जाने का उल्लेख होता है. यहां तक कि कई किताबों में भी रिबई पंडो के ही भूख से मर जाने का उल्लेख है. ये और बात है कि बहु और पोते की भूख से मौत के समय लगभग 80 साल के रिबई पंडो कई सालों तक ज़िंदा रहे. हां, उनके बेटे रामविचार भी कुपोषण के शिकार हो कर जल्दी ही काल के गाल में समा गए.
रामसाय बताते हैं, “मेरे दादा की मौत के समय मैं बहुत छोटा था. घर में कोई बचा नहीं था तो मुझे दूर के बाबा ने ही पाला पोसा.”
गांव के लोगों ने ही रामसाय की शादी कराई और अब उनकी चार और पांच साल की दो बेटियां हैं. रामसाय के पास 4-5 एकड़ खेत हैं और यही उनकी आजीविका का साधन भी है. ज़ाहिर है, चार लोगों का परिवार इतनी खेती से चलने से रहा.
अकेला रामसाय
लेकिन सरकार दो कमरे वाले खपरैल घर में रहने वाले रामसाय को अमीर मानती है और उन्हें ग़रीबी रेखा से ऊपर का राशन कार्ड दिया गया है.
जिस दिन हम रामसाय के घर पहुंचे थे, उस दिन घर में सुबह पास के बाज़ार से ख़रीदा गया टुकड़ों वाला चावल बना था. परिवार ने नमक और चावल खाया था और इसके बाद सीधे रात को भोजन पकना था. ज़ाहिर है, फिर से टुकड़ों वाला चावल और नमक.
रामसाय की पत्नी सीताकुंवर पिछले डेढ़ महीने से बीमार हैं और पिछले महीने एक नीम-हकीम ने उनका इलाज किया था. लेकिन हालत आज तक नहीं सुधरी. स्वास्थ्य योजनाओं और मितानीन का दूर-दूर तक पता नहीं है.
रामसाय का कहना है कि इलाज कराने के लिए और अस्पताल आने-जाने के लिए भी तो पैसे लगेंगे. इस साल फ़सल ठीक हो गई तो फिर पत्नी का इलाज कराएंगे.
गांव के भगवान सिंह गौड़ कहते हैं, “यहां गांव में कोई खोज ख़बर नहीं लेता. हम सब आदिवासियों के पास अमीरी रेखा वाला राशन कार्ड है. मेरे हिस्से बंटवारे में ढाई एकड़ ज़मीन आएगी लेकिन सरकार ने हमें ग़रीबी रेखा से नीचे वाला राशन कार्ड नहीं दिया.”
स्थानीय पत्रकार श्रवण कुमार पटेल का कहना है कि जब तक नेता और प्रधानमंत्री का दौरा इस इलाक़े में हुआ, तब तक तो रिबई पंडो समेत दूसरे आदिवासियों की अफ़सरों ने जम कर ख़ातिरदारी की. लेकिन उसके बाद सबने आंख फेर ली.
वाड्रफ़नगर इलाक़े के एसडीएम एसपी उपाध्याय इस बात से अनजान हैं कि बीजाकुरा गांव में विशेष संरक्षित पंडो आदिवासियों के पास ग़रीबी रेखा से ऊपर के राशन कार्ड हैं. उन्हें रिबई पंडो के पोते की भी कोई जानकारी नहीं है. वे कहते हैं, “मेरी जानकारी में यह बात पहली बार सामने आ रही है. इस मामले में जांच करवा ली जाएगी.”
(बीबीसी से साभार)