कलारचना

लौट आया 90 के दशक का संगीत

नई दिल्ली | मनोरंजन डेस्क: हाल में रिलीज हुई आयुष्मान खुराना और भूमि पेडणेकर की फिल्म ‘दम लगाके हईशा’ के संगीत ने वह कर दिखाया, जो हिंदी सिनेजगत में अर्से से नहीं हुआ था. इसने 1990 के दशक के रूमानी, सुरीले और अर्थपूर्ण गीतों को जिला दिया है. उस दशक के गायकों और संगीतकारों को उम्मीद है कि वह ‘सुरीला दौर’ एक दिन फिल्मोद्योग में लौटेगा.

1990 के दशक में संगीतकारों ने संगीत प्रेमियों को ‘मुझे नींद ना आए’, ‘तू मेरी जिदगी है’, ‘देखा है पहली बार’ और ‘मैंने प्यार तुम्हीं से किया है’ जैसे कुछ यादगार रूमानी गीत दिए थे.

वर्तमान समय में रैप गीतों और द्विअर्थी बोल वाले गानों का बोलबाला है. ऐसे समय में ‘दम लगाके हईशा’ का संगीत ‘अव्यवस्था ब्रेकर’ के रूप में अवतरित हुआ है.

90 के दशक में रूमानी गीतों को अपनी आवाज से अमर बनाने वाले और ‘दम लगाके हईशा’ में ‘दर्द करारा’ गाना गाने वाले मशहूर गायक कुमार सानू को लगता है कि यह श्रोताओं को अच्छा संगीत देने का वक्त है.

सानू ने कहा, “हमें इन दिनों अर्थपूर्ण और सुरीले गानों की कमी खल रही है. इस कमी की कई वजहें हैं और उनमें से एक है आत्मविश्वास की कमी. फिल्म निर्माताओं को निर्देशकों पर, निर्देशकों को संगीत निर्देशकों और संगीत निर्देशकों को गायकों पर कतई भरोसा नहीं है. यही वजह है कि हम संगीत के क्षेत्र में इतने बुरे दौर से गुजर रहे हैं.”

उन्होंने कहा, “सभी किशोरों को 90 के दशक का संगीत पसंद आ रहा है. दर्शक इतने बेवकूफ नहीं हैं, जो ‘चार बोतल वोडका’ जैसे गाने सुनेंगे. हम लोगों को ऐसे गाने सुनने के लिए मजबूर करते हैं और जब लोग इन्हें गुनगुनाते हैं, तो हम कहते हैं कि यह हिट है. समय यह सोचने का है कि हम इस तरह के निर्थक गानों से समाज को क्या दे रहे हैं.”

‘तुम तो ठहरे परदेसी’ अलबम से रातोंरात शोहरत पाने वाले गायक अल्ताफ राजा ने आईएएनएस से कहा, “परिवर्तन एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है और हर 15 साल बाद गानों की रिसाइकिलिंग होती है..मेरा मानना है कि अगर हमारे पास शायरी और अन्य मामलों में दुनिया को देने के लिए इतना कुछ है, तो हम इसका फायदा क्यों नहीं उठाते?”

वहीं मशहूर गायक-संगीतकार बप्पी लाहिड़ी कहते हैं कि सुरीले गानों को हमेशा सराहा गया है.

उन्होंने कहा, “मधुर संगीत अच्छा होता है. यह ताजगी लाता है. मुझे लगता है कि आज गीतों के शब्दों को बदलने की जरूरत है, क्योंकि युवा पीढ़ी को पुराने गानों की शैली भा गई है.”

संगीतकार जोड़ी सलीम-सुलेमान के सलीम मर्चेट ने कहा, “उन्हें भारतीय संगीत अच्छा लगता है, फिर चाहे यह बॉलीवुड हो या शास्त्रीय संगीत. वे इसके ज्यादा आदी हैं. मुझे नहीं लगता कि भारतीय शास्त्रीय संगीत कभी संगीत जगत से विलुप्त हो सकता है.”

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