नेताजी ने कहा था ‘राष्ट्रपिता’
नई दिल्ली | समाचार डेस्क: महात्मा गांधी को नेताजी ने 6 जुलाई 1944 को रेडियो रंगून से ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था. सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्र पिता महात्मा गांधी का नाम इतिहास के पन्नों में सदा के लिए अमर है. उन्होंने देश को आजाद कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. आज उनका नाम याद करते हुए गर्व का अनुभव होता है. महात्मा गांधी को राष्ट्र पिता के नाम नवाजा गया है. भले ही महात्मा आज हमारे बीच न हों, लेकिन वह सभी के जहन में बसे हैं. उनके विचार और आदर्श आज हम सबके बीच हैं, हमें उनके विचारों को अपने जीवन में उतारने की आवश्यकता है.
महात्मा गांधी पर कितनी ही किताबें लिखी गई हैं. भारतीय सिनेमा ने भी गांधी के सिद्धांतों को साझा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. देश के बच्चे से लेकर बड़ों तक की जुबां पर उनका नाम उनका नाम अमर है. हम जब भी आजादी की बात करते हैं तो उनका जिक्र होना लाजमी है.
महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी बातें :
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1859 को गुजरात के पोरबंदर शहर में हुआ. उनके पिता का नाम करमचंद और माता का नाम पुतलीबाई था. उनकी मां धार्मिक विचारों वाली थीं. बापू अपने परिवार में सबसे छोटे थे. उन्होंने अहिंसा के मार्ग पर चलकर देश को आजादी दिलाई, साथ ही संदेश दिया कि अहिंसा सर्वोपरि है. महात्मा गांधी को सुभाष चंद्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को रेडियो रंगून से ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था.
महात्मा गांधी ने देश को आजादी दिलाने के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किए. लेकिन उन्होंने सभी परिस्थितियों में अहिंसा और सत्य का पालन किया और सभी से इसका पालन करने की वकालत भी की. उन्होंने साबरमती आश्रम में अपना जीवन गुजारा और परंपरागत भारतीय पोशाक धोती व सूती चादर लपेटे वह खुद चरखे पर सूत काता करते थे.
वह जीवन भर शाकाहारी रहे और आत्मशुद्धि के लिए लंबे-लंबे उपवास रखे. 30 जनवरी 1948 की शाम को नई दिल्ली स्थित बिड़ला भवन जाते समय मोहनदास करमचंद गांधी की गोली मारकर हत्याकर दी गई. उन्हें गोली मारने वाला नाथूराम गोडसे वहीं झाड़ियों में छिपा था. गांधी के समीप आते ही वह झाड़ी से निकला, उन्हें प्रणाम किया और दनादन गोलियां दाग कर हमारे राष्ट्रपिता के सीने को छलनी कर दिया. महात्मा गांधी की समाधि दिल्ली के राजघाट पर बनी हुई है, जहां अखंड ज्योति हमेशा जलती रहती है.
महात्मा गांधी का जन्मदिन 2 अक्टूबर को भारत में गांधी जयंती और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है.
गांधी को कई गीत भी समर्पित किए गए हैं जो उन्हें भावपूर्ण पुष्पांजलि देते हैं, इसमें प्रमुख है संत कवि नरसी मेहता का लिखा भजन- ‘वैष्णव जन तो तेने कहिये जे, पीर परायी जाणे रे.’
बापू को सच्ची पुष्पांजलि यही होगी कि हम उनके बताई राह पर चलें. दीवारों पर गांधी की तस्वीरें लगाकर उन्हें कितना सम्मान दिया जाता है, यह सबको पता है! ऐसा करना महज दिखावा बन गया है. आज सत्य और अहिंसा पर अमल करने की जरूरत भारत ही नहीं, समूचे विश्व को है.