प्रसंगवश

बलात्कार का नगदीकरण

छत्तीसगढ़ में अब आबरु का मोल तय किया जाने लगा है.जशपुर के एक गांव में बलात्कार के बदले पंचायत ने पीड़िता को 400 रुपये का मुआवजा दे कर छुट्टी पा ली.
मामला जशपुर के बगीता का है, जहां पंचायत ने दुष्कर्मियों को 4000 रुपये का अर्थदंड देकर छोड़ दिया है. जिसमें से 3600 रुपये पंचायत ने स्वयं रख लिये तथा पीड़ित छात्रा को 400 रुपये का हर्जाना अदा किया है. साथ ही दुष्कर्मियों को चेतावनी दी गई है कि भविष्य में ऐसी हरकत दुहराये जाने पर 50,000 रुपये का अर्थदंड दिया जायेगा.

घटना 27 मार्च यानी होली के दिन की है, जब सरकारी छात्रावास में रहने वाली 11 वर्षीय छात्रा को गांव के 4 युवकों ने एक कमरे में बंद कर दिया तथा आबरु लूटने की कोशिश की. छात्रा किसी तरह भागकर घर पहुचीं. उसने अपने परिजनों को घटना की जानकारी दी. परिजनों द्वारा पंचायत से शिकायत की गई. इसके बाद ही पंचायत ने यह पाषाणकालीन निर्णय सुनाया.

कई बार लगता है कि हमारी पंचायतें भले लोकतांत्रिक ढांचे का ही सबसे मजबूत हिस्सा हों लेकिन कई अवसरों पर इसकी जड़ें कहीं न कहीं सामंती संस्कारों में ही धंसी हुई हैं. बगीचा के मामले में तो पंचायत ने पीड़िता के परिजनों को चेतावनी भी दी कि यदि पुलिस के पास शिकायत दर्ज करवाई गई तो उनका बहिष्कार कर दिया जायेगा. इसी डर से परिजन इतने दिन चुप रहे थे. 10 अप्रैल को जाकर पुलिस में सूचना दी गई. उपसरपंच डमरू पैकरा ने यह कह कर पूरे मामले में पंचायत को पाक साफ बताने की कोशिश की कि बलात्कार नहीं हुआ है, केवल बलात्कार की कोशिश की गई थी. डमरू पैकरा जब अपनी पंचायत की चमड़ी बचा रहे होते हैं तो कहीं न कहीं वे भारतीय कानून को भी ठेंगे पर रखने का काम करते हैं.

लेकिन डमरू पैकरा अकेले नहीं हैं और बगीचा की पंचायत भी. देश के सभी हिस्सों में इसी तरह के सामंती संस्कारों में रचे-पगे पंच-सरपंच और पंचायतें फैसले सुना रही हैं. कहीं सरकारी तरीके से चुनी गई पंचायत तो कहीं धर्म और जाति की पंचायत. उस पर तुर्रा ये कि यह हमारी परंपरा है, हमारी संस्कृति है और इसमें किसी को भी हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है. संकट ये है कि वोट को ही लोकतंत्र मान बैठी बेशर्म राज्य सरकारें भी कई बार ऐसे मामलों को ‘समाज’ का मामला कह कर पल्ला झाड़ लेती हैं.

संवेदनहीनता से भरे इस समय में अगर प्रेमचंद होते तो शायद उन्हें पंच परमेश्वर का कोई नया संस्करण लिखना पड़ता- खाप पंचायत संस्करण या बगीचा संस्करण.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!