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छत्तीसगढ़िया को ग्रीन नोबल

रायगढ़ | संवाददाता: रायगढ़ के रमेश अग्रवाल को पर्यावरण का सबसे बड़े पुरस्कार गोल्डमैन प्राइज़ दिया गया है. इसे पर्यावरण का नोबल पुरस्कार भी कहा जाता है.

भारत के रमेश अग्रवाल उन छह लोगों में शामिल हैं जिन्हें पर्यावरण के सबसे बड़े पुरस्कार गोल्डमैन प्राइज़ से नवाज़ा गया है. उनके साथ इस पुरस्कार को पाने वाले अन्य लोगों में पेरु, रूस, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया और अमरीका के पर्यावरण कार्यकर्ता शामिल हैं.

रमेश अग्रवाल ने रायगढ़ में अंधाधुंध कोयला खनन से निपटने में ग्रामीणों मदद की और जिंदल की एक बड़ी कोयला परियोजना को बंद कराया.

सैन फ्रांसिस्को स्थित गोल्डमैन एनवार्नमेंट फाउंडेशन की तरफ से सोमवार को जारी विज्ञप्ति में कहा गया है, “रमेश अग्रवाल का मुख्यालय सिर्फ एक छोटा सा इंटरनेट केफे था. इसकी मदद से उन्होंने गांव वालों को जागरुक किया और विकास परियोजनाओं के बारे में जानकारी हासिल की और वो छत्तीसगढ़ में कोयला खनन की बड़ी परियोजना को बंद कराने में कामयाब रहे.”

अग्रवाल के इस काम की वजह से कई लोग उनके दुश्मन भी बने और जब कोयला खनन परियोजना रद्द हो गया, तो उन पर हमला भी किया. उन पर गोली चलाई गईं और उनकी हड्डियां भी टूटीं.

विज्ञप्ति ने कहा गया है, “सीमित गतिशीलता के बावजूद अग्रवाल उन लोगों को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक कर रहे हैं जो कोयले से संपन्न ज़मीन के मालिक हैं.”

फाउंडेशन का कहना है कि पेरु की रुथ बुएंदा को अमेज़न में दो बांध रुकवाने और रूस के जीव विज्ञानी सुरेन गाज़ारयान को सोची में ओलंपिक के लिए हुए निर्माण से संरक्षित इलाकों को बचाने के लिए सम्मानित किया गया है.

विज्ञप्ति के अनुसार दक्षिण अफ्रीका के डेसमंड डी’सा ने डरबन में ज़हरीले कचरे के एक केंद्र को बंद कराया जबकि इंडोनेशिया के वनस्पतिशास्त्री रूडी पुत्रा ने सुमात्रा में ताड़ के पेड़ों की ग़ैरक़ानूनी खेती को रुकवाया. पुरस्कार पाने वालों में अमरीकी वकील हेलेन स्लोट्ये भी शामिल हैं जो भूमि संरक्षण के लिए सक्रिय हैं.

इधर रमेश अग्रवाल को गोल्डमैन प्राइज मिलने के बाद रायगढ़ में उनके मित्रों के बीच हर्ष व्याप्त है. हालांकि रमेश अग्रवाल इन दिनों इस पुरस्कार के लिये आयोजित कार्यक्रम के लिये अमरीका में हैं लेकिन उनकी वापसी के बाद रायगढ़ में किसी बड़े आयोजन की उम्मीद की जा रही है.

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