ख़रीद लो, फंसा दो, हटा दो
रायपुर | बीबीसी: पर्यावरण के सबसे बड़े पुरस्कार गोल्डमैन प्राइज़ से सम्मानित छत्तीसगढ़ के रमेश अग्रवाल का कहना है कि औद्योगिक घराने ‘ख़रीद लो, फंसा लो और हटा दो’ की नीति पर काम करते हैं और व्यवस्था का बड़ा हिस्सा उन्हीं औद्योगिक घरानों के साथ खड़ा होता है. ऐसे में जनता की लड़ाई लड़ पाना मुश्किल है.
भारत के रमेश अग्रवाल उन छह लोगों में शामिल हैं जिन्हें पर्यावरण के सबसे बड़े पुरस्कार गोल्डमैन प्राइज़ से नवाज़ा गया है. सैन फ्रांसिस्को स्थित गोल्डमैन एनवायरमेंट फाउंडेशन यह पुरस्कार देता है.
रमेश अग्रवाल छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में पिछले दो दशकों से औद्योगिकरण के ख़िलाफ़ और पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम रहे हैं. रमेश अग्रवाल और उनके साथियों के आंदोलन के कारण कम से कम तीन बड़े औद्योगिक घरानों को रायगढ़ में अपना उद्योग शुरू करने या उसका विस्तार करने की अनुमति नहीं मिली.
अपने आंदोलन के दौरान रमेश अग्रवाल को कई बार जेल जाना पड़ा है. यहां तक कि इन पर जानलेवा हमले भी हुए हैं. लेकिन रमेश अग्रवाल की जल, जंगल और ज़मीन की लड़ाई ज़ारी है.
रमेश अग्रवाल गोल्डमैन प्राइज़ के समारोह में शामिल होने के लिए इन दिनों सैन फ्रांसिस्को में हैं.
बीबीसी से बातचीत करते हुए रमेश अग्रवाल ने कहा कि यह पुरस्कार असल में छत्तीसगढ़ के उन सभी लोगों का सम्मान है, जो हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं.
रमेश कहते हैं, “इस अवार्ड से हमारा जो अभियान है, उसे बल मिलेगा. इस तरह की लड़ाई में जो भी साथी, जहां भी हैं, उन्हें लड़ने की प्रेरणा मिलेगी.”
अपने शहर रायगढ़ और छत्तीसगढ़ को लेकर रमेश अग्रवाल कहते हैं, “हमने जिस तेज़ी से सब कुछ नष्ट करना शुरू किया है, उसमें एक समय ऐसा आएगा, जब मनुष्य के सामने मनुष्य को ही नष्ट करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होगा. ऐसे में हमें इस धरती को बचाने के लिए लड़ना ही होगा.”
अपनी लड़ाई को लेकर रमेश अग्रवाल का कहना है कि जेल जाने और गोली खाने के बाद भी उनके मन में कभी भी अपनी लड़ाई से पीछे हटने का मन नहीं हुआ. उल्टे इस तरह के दमन के बाद हर बार और मज़बूती से लड़ने का बल मिला है.
वह कहते हैं, “औद्योगिक घराने ‘ख़रीद लो, फंसा लो और हटा दो’ की नीति पर काम करते हैं. पहले वह प्रलोभन देते हैं, पैसे से ख़रीदने की कोशिश करते हैं. इसके बाद वे सरकार के साथ मिल कर मुक़दमों में फंसाने की कोशिश करते हैं. इसके बाद भी अगर कोई नहीं माने तो वे उसे रास्ते से हटाने यानी उसकी हत्या करने से भी नहीं हिचकते.”
रमेश अग्रवाल और उनके जैसे लोगों के आंदोलनों के बाद भी छत्तीसगढ़ का रायगढ़ शहर अंधाधुंध औद्योगिकरण के कारण दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में शुमार हो गया है. रमेश अग्रवाल भी मानते हैं कि वे औद्योगिक घरानों के ख़िलाफ़ लड़ने वाली अधिकांश लड़ाइयां हारते रहे हैं. लेकिन वे हर लड़ाई को ज़रूरी मानते हैं.
अपनी लड़ाइयों को लेकर वे कहते हैं, “एकदम से जीत हासिल नहीं होगी. बड़ी लड़ाई है ये. औद्योगिक घरानों के साथ पूरी व्यवस्था होती है, सरकार साथ होती है जबकि आंदोलन करने वाले सिर्फ़ आंदोलन के नैतिक बल के साथ लड़ रहे होते हैं. उनके पास कोई साधन नहीं होता. हम लड़ाई हारते हैं, लेकिन हिम्मत नहीं.”
लड़ाइयों की हारजीत के मुद्दे पर रमेश अग्रवाल का कहना है कि अब से पहले रायगढ़ की जनता अपने ख़िलाफ़ होने वाले शोषण और दमन को बर्दाश्त कर लेती थी. इन लड़ाइयों का ही असर है कि जनता ने अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाना शुरु किया.
रमेश अग्रवाल कहते हैं, “आदिवासी पंचायत अधिकार से जुड़े क़ानून, पर्यावरण के क़ानून और उद्योगों के क़ानून जान गए हैं. वे अब अपनी लड़ाई के लिए खड़े हैं. मैं इसे ही अपनी उपलब्धि मानता हूं.”