मोरारी बापू के राम
संदीप पांडेय
राम मंदिर आंदोलन के पहले राम जी का जो चित्र प्रायः देखने को मिलता थाउसमें राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान सभी होते थे-यानी राम दरबार का दृश्य. अकेले राम का न तो कोई चित्र होता था और न ही मूर्ति. सामान्य अभिवादन भी ‘जय सिया राम‘ हुआ करता था, यानि राम के साथ सीता का नाम भी लिया जाता था.
फिर राम मंदिर आंदोलन का दौर आया. लाल कृष्ण आडवाणी की यात्रा के समय से राम का एक उग्र तेवर वाला चित्र सामने आया जिसमें राम धनुष पर तीर ताने खड़े हैं और उनके बाल हवा में पीछे की ओर लहरा रहे हैं. यानी विश्व हिन्दू परिषद ने पारिवारिक राम को योद्धा राम में तब्दील कर दिया. ‘जय सिया राम‘ के अभिवादन को ‘जय श्री राम‘ के नारे का रूप दे दिया गया. अगर विश्व हिन्दू परिषद को सिर्फ हिन्दू धर्म के प्रचार प्रसार का काम करना होता तो राम दरबार के चित्र से भी काम चल जाता. किंतु हिन्दुत्ववादी शक्तियों को तो राजनीति करनी थी. सो मर्यादा पुरूषोत्तम का स्वरूप बदला गया.
अब राम ने तो रावण के खिलाफ युद्ध किया था. आज कहां से रावण खोज कर लाया जाए. तो अयोध्या की बाबरी मस्जिद को निशाना बनाया गया. राम के नाम पर एक विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू महासभा, भारतीय जनता पार्टी, शिव सेना के कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी हुई और उन्होंने मस्जिद पर चढ़ाई कर दी. 1992 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की ही सरकार था. उन्हें प्रधान मंत्री नरसिंह राव के रूप में एक विभीषण भी मिल गया और बाबरी मस्जिद ढहा दी गई.
राम मंदिर आंदोलन से हिन्दुववादी शक्तियों ने मतों का ध्रुवीकरण किया जिसका उन्हें चुनाव में भी लाभ मिला. किंतु इस प्रक्रिया में उन्होंने हिन्दू समाज का पूरी तरह से साम्प्रदायिकीकरण कर डाला और आम लोगों की गरीबी, निरक्षरता, कुपोषण, खराब स्वास्थ्य, किसानों की आत्महत्या, समाज के वंचित तबकों के साथ अन्याय के बजाए गौहत्या, पाकिस्तान पर सर्जिकल धावा लव-जिहाद, रोमियो विरोधी अभियान, आदि राजनीति के मुद्दे बन गए. हिन्दुत्ववादियों की राय से अलग राय रखने वाले उनकी हिंसा का शिकार होने लगे. दाभोलकर, पंसारे व कलबुर्गी जैसे लोगों की हत्या तक हो गई. धर्म के नाम पर खड़ी हुई राजनीति देखते ही देखते नफरत की राजनीति में बदल गई और मुसलमानों को खासकर निशाना बनाया गया. गौमांस खाने के शक पर ही अथवा गाय को किसी वाहन से ले जाते हुए मुस्लिम नागरिकों की जान तक चली गई. इस किस्म की हिंसा के बीज राम मंदिर आंदोलन में प्रारम्भ से ही छुपे हुए थे. 6 दिसम्बर के दिन भी कुछ मुसलमान अयोध्या में मारे गए थे जिन मामलों के मुकदमे आज तक दर्ज नहीं हुए हैं.
जिस रास्ते पर हिन्दुत्व की राजनीति इस देश को ले जा रही है वह हमें एक कट्टरपंथी समाज बना देगा. क्या यही राम राज्य की कल्पना है?
इस देश को हिन्दुत्व की राजनीति से बचाना होगा. धर्म का सही अर्थों में लोग पालन करें और समाज में सुख शांति हो ऐसा प्रयास करना होगा. सुख व शांति के लिए साम्प्रदायिक सद्भावना स्थापित करना बहुत जरूरी है. साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए कट्टरपंथी नजरिए को त्याग धर्म का सौहार्द्यपूर्ण रूप अपनाना पड़ेगा.
इस दिशा में प्रसिद्ध राम कथा वाचक संत मोरारी बापू का अनोखा प्रयास उल्लेखनीय है. मोरारी बापू ने गुजरात के भावनगर जिले में महुआ नामक अपने पैतृक स्थान पर बने राम मंदिर में राम दरबार की जो मूर्तियां लगाई हैं उनमें राम, लक्ष्मण व हनुमान के पास कोई शस्त्र नहीं है. उनका कहना है कि भविष्य के भगवान की कल्पना में भगवान को शस्त्रों की जरूरत नहीं पड़ेगी. मोरारी बापू ने हिन्दुत्व की सोच के एकदम विपरीत राम का चरित्र सामने रखा है.
मोरारी बापू के राम के स्वरूप के आधार पर समाज में सौहार्द्य कायम किया जा सकता है. ऐसा माना जाता है कि हिन्दू धर्म के मूल में सद्भावना है ही. लेकिन हिन्दुत्व की राजनीति ने उसे दुनिया के कुछ अन्य धर्मों की नकल कर, जिनकी उत्पत्ति हिन्दू धर्म के काफी बाद हुई, उसे आक्रामक रूप देने की कोशिश की. लकिन इससे तो हिन्दू धर्म की पहचान ही खत्म होने का खतरा है.
हिन्दू समाज को हिन्दुत्व की राजनीति से सावधान रह गांधी के राम या मोरारी बापू के राम, जो राम का असली स्वरूप है, को ही अपनाए रखना चाहिए और हिन्दुत्व के आक्रामक राम, जिसका मंदिर हिंसा की नींव पर बनने वाला हो, उसे अस्वीकार करना चाहिए. तभी हिन्दू धर्म बच पाएगा. विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने के आग्रह के बीज धार्मिक नहीं राजनीतिक सोच की उपज हैं.
यदि दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक हिन्दू धर्म अभी तक बचा रहा है तो वह अपने आक्रामक रूप के कारण नहीं बल्कि अपने सौहार्द्य और लचीलेपन के मूल्य के कारण. यानी हम अपने से अलग विचार मानने वाले का न सिर्फ स्वागत करते हैं बल्कि उसे अपनाते भी हैं. इसे कट्टर बनाने वाले नासमझदार हैं जो जाने-अनजाने हिन्दू धर्म को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
अयोध्या में ही आर्चाय युगल किशोर शरण शास्त्री भी रहते हैं जिन्होंने धर्म के साम्प्रदायिकीकरण के खिलाफ संघर्ष किया है. वे राम जानकी मंदिर के महंथ हैं. उन्होंने तय किया है कि वे अपना मंदिर एक सर्व धर्म सद्भाव केन्द्र में तब्दील करेंगे ताकि दुनिया के किसी भी धर्मावलम्बी यहां तक कि नास्तिक लोगों का भी वहां स्वागत होगा. इस दिशा में एक सर्व धर्म सद्भाव न्यास की स्थापना हो चुकी है. भारत सरकार के भूतपूर्व कैबिनेट सचिव दिवंगत जफर सैफुल्लाह भी इस प्रयास में शामिल थे.
हिन्दुत्व की नफरत की राजनीति से समाज में दरारें बढ़ेंगी जबकि मोरारी बापू व युगल किशोर शास्त्री के प्रयासों से सद्भावना मजबूत होगी. हिन्दू समाज को तय करना है कि उसे कलह व हिंसा वाला समाज चाहिए या सुख व शांति वाला.