राज्यसभा में सरकार की मुसीबत
नई दिल्ली | एजेंसी: राज्यसभा में अल्पमत मोदी सरकार को भविष्य में मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है. जाहिर है कि सरकार शीतकालीन सत्र के अगले सप्ताह में बीमा, कंपनी और लोकपाल विधेयकों में संशोधन के लिए विधेयक पेश करने वाली है ऐसे में विपक्ष उनके लिये मुसीबत खड़ा कर सकता है. हालांकि, सब कुछ कांग्रेस के रुख पर निर्भर करता है. राज्यसभा में शीतकालीन सत्र के आधे सत्र तक एकजुट होकर उभरे विपक्षी दल बीमा विधेयक पर कांग्रेस की सहमति के बाद भले बिखर चुका नजर आ रहा हो, इसके बावजूद ऊपरी सदन में अल्पमत वाली नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए आगे की कार्यवाही के दौरान मुसीबतें कम होती नहीं दिख रहीं.
सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के राज्यसभा में सिर्फ 59 सदस्य हैं, जबकि अकेले कांग्रेस के 69 सांसद हैं. विपक्षी दलों के एकजुट हो जाने के बाद राज्यसभा में अब तक की कार्यवाही लगभग बाधित जैसी ही रही.
ऐसे में राज्यसभा की कार्यवाही की उत्पादकता का घटना स्वाभाविक ही था. मध्य सत्र तक की कार्यवाही में जहां लोकसभा की उत्पादकता 99 फीसदी रही वहीं राज्यसभा की 72 फीसदी. राज्यसभा में चार दिन की कार्यवाही विपक्ष के विरोध प्रदर्शनों की ही भेंट चढ़ गया.
अब तक मिले संकेतों पर भरोसा किया जाए तो आगे के सत्र के दौरान भी यह गतिरोध बना रह सकता है. 24 नवंबर को शुरू हुआ मौजूदा शीतकालीन सत्र 23 दिसंबर को समाप्त होगा.
दूसरी ओर विपक्षी दलों का ध्यान लगातार दो बार बढ़ाए गए उत्पाद शुल्क को वापस करवाए जाने पर है और इस पर कांग्रेस सहित लगभग सभी विपक्षी दल एकमत नजर आ रहे हैं, जिसके कारण सरकार की कार्यवाही बाधित होनी तय है.
कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने कहा, “अगर उत्पाद शुल्क वापस लेने पर मतदान का प्रस्ताव आता है तो हम इसका समर्थन करेंगे.”
इस संबंध में डीजल और पेट्रोल के उत्पाद शुल्क में वृद्धि की अधिसूचना के निरस्तीकरण के लिए राज्यसभा में अब तक दो प्रस्ताव स्वीकार कर लिए गए हैं, जिसमें से एक तृणमूल कांग्रेस के सदस्य सुखेंदु शेखर रॉय द्वारा लाया गया जबकि दूसरा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सीताराम येचुरी लाए थे.
विपक्षी दलों ने सबसे पहले काले धन पर चुनावी भाषणों के दौरान किए गए वादों पर सराकर का जमकर घेराव किया. इसके बाद केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति के बयान पर भी जमकर हंगामा हुआ और इसी क्रम में भाजपा सांसद साक्षी महाराज के नाथूराम गोडसे पर दिए बयान ने भी काफी तूल पकड़ा.
अंतत: सत्र का मध्य विराम धर्मातरण मुद्दे पर गहमागहमी के बीच हुआ.
बीमा संशोधन विधेयक पर भी लगभग ऐसी ही स्थिति रहने की संभावना है, क्योंकि इस संशोधन विधेयक के जरिए बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 26 फीसदी से बढ़ाकर 49 फीसदी किए जाने का प्रावधान रखा गया है.
कांग्रेस ने हालांकि भाजपा द्वारा चंदन मित्रा की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा तैयार रिपोर्ट का समर्थन किया है. कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा है कि उनकी पार्टी ‘सिद्धांतत:’ इस विधेयक के विरोध में नहीं है.
वाम दलों का रुख हालांकि इस पर बिल्कुल सख्त है. भाकपा के डी. राजा ने कहा, “बीमा विधेयक जैसे आर्थिक मामलों पर कांग्रेस का रुख क्या रहता है, देखने वाली बात होगी. यह सोमवार को ही स्पष्ट होगी. हो सकता है वे इसका समर्थन करें, क्योंकि वास्तव में यह विधेयक वही लाए थे.”
इस पर हालांकि कांग्रेस में ही मतभेद नजर आने लगे हैं. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर कहा, “कुछ नेताओं को लगता है कि विधेयक का समर्थन करना सरकार को जीत यूं ही दे देना है. सिद्धांतत: हम इसके विरोध में नहीं हैं. आखिर हमारी ही पार्टी ने इस विधेयक को पेश किया था.”