यूपी भाजपा के कार्यकर्ता निराश?
लखनऊ | एजेंसी: भाजपा कार्यसमिति की बैठक से पहले जो जोश कार्यकर्ताओं में नजर आ रहा था, वह समापन होते-होते कुछ फीका पड़ता नजर आया. दरअसल जिस तरह से मिशन उप्र का ऐलान करने वाले अध्यक्ष अमित शाह बैठक में नहीं पहुंचे और पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी बैठक से किनारा किया, वह कार्यकताओं के मन में कई अनसुलझे सवालों को पैदा कर गया.
वृदांवन में दो दिन चली भाजपा प्रदेश कार्यसमिति में कार्यकर्ताओं में दोबारा उप्र की सत्ता पर काबिज होने को लेकर छटपटाहट तो दिखाई दी, लेकिन शीर्ष नेताओं के दिशा निर्देश के अभाव में प्रदेश कार्यसमिति सत्ता की मंजिल तक पहुंचने का कोई ठोस रोडमैप तैयार नहीं कर सकी.
हालत यह रही कि अखिलेश सरकार की पटरी से उतरी कानून व्यवस्था के खिलाफ जनाआंदोलन चलाने तथा अन्य नाकामियों को जनता के सामने रखने का फैसला लेकर बैठक समाप्त हो गई, जिसमें कार्यकतरओ को कुछ भी नयापन नजर नहीं आया.
कार्यकर्ता अब तक इस बात को नहीं समझ पाये हैं कि आखिर वर्षो बाद भाजपा की किसी राज्य कार्यसमिति में सहमति देने के बाद भी अध्यक्ष अमित शाह तथा केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह क्यों नहीं पहुंचे. चर्चा तो इस बात की भी है कि अमित शाह और राजनाथ सिंह को बैठक में नहीं ला पाना प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी की असफलता है.
हालांकि अमित शाह और राजनाथ सिंह की गैरमौजूदगी में ही कार्यकर्ताओं को कर्मयोग का पाठ पढ़ाया गया और उपचुनाव का बिगुल फूंकते हुए सपा सरकार का विसर्जन करने तथा उप्र फतह का संकल्प लिया गया.
कार्यकर्ताओं को लोकतांत्रिक संग्राम तेज करके चुनाव जीतने के गुर देने के साथ ही मजहब देख दंगाइयों को संरक्षण देने एवं धर्म के आधार पर निर्दोषों के उत्पीड़न की सरकारी नीति पर सवाल खड़े करते हुए तमाम नसीहतें दी गई.
केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र ने कार्यकताओं से कहा कि अब वह उप्र को फतह करने में जुटें. इस मकसद की पूर्ति के लिए उन्होंने कनेक्टिविटी बढ़ाते हुए एक्टिविटी बढ़ाने का मंत्र दिया गया. कलराज की तर्ज पर ही तमाम भाजपा नेताओं ने अपने भाषण में कार्यकर्ताओं को नसीहतें दी. कार्यसमिति की बैठक का ज्यादातर वक्त नसीहतें देने में गुजर गया.
भाजपा का संविधान यूं तो हर तीन महीने में कार्यसमिति की वकालत करता है पर लोकसभा चुनावों के चलते तय समय पर यह बैठक नहीं हुई. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी के कार्यकाल की दूसरी कार्यसमिति की यह बैठक करीब 15 महीने के बाद हुई. जीत के उल्लास के बाद हुई कार्यसमिति में पार्टी के बड़े नेताओं का नहीं आना कार्यकतरओ को अखरा.
अमित शाह ने 19 अगस्त को लखनऊ में जिस तरह से मिशन उप्र का ऐलान किया था उससे यही लगा था कि कार्यसमिति में वह इसका रोडमैप साझा करेंगे. इसके उलट आखिरी समय में सांगठनिक वजहें बताकर उनका कार्यक्रम टल गया और आनन फानन में कलराज मिश्र से कार्यसमिति की शुरूआत करायी गई.
इसी तरह समापन राजनाथ सिंह को करना था, लेकिन वह भी रविवार को मथुरा नहीं पहुंचे. ऐसे में कार्यसमिति का समापन पार्टी महामंत्री संगठन रामलाल ने किया. इसके अलावा भाजपा की राष्ट्रीय टीम से बाहर हुए वरुण गांधी तथा उनकी मां मेनका गांधी और उमा भारती भी मथुरा नहीं आए. पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और सांसद योगी आदित्यनाथ सहित उप्र से भाजपा के एक दर्जन से अधिक सांसदों ने समिति की बैठक में आने का कार्यक्रम अन्तिम क्षणों में रद्द कर दिया.
प्रदेश महामंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के पुत्र पंकज सिंह भी उद्घाटन सत्र में नहीं पहुंचे. ऐसे में एक तरह से तमाम प्रमुख नेताओं की गैर मौजूदगी में कार्यसमिति की यह बैठक कार्यकर्ताओं के लिए महज औपचारिकता ही साबित हुई. नेता भले ही इस बैठक से बहुत कुछ हासिल होने का दावा कर रहे हों, लेकिन कार्यकर्ता कुछ हद तो अपने को खाली हाथ और ठगा हुआ ही महसूस कर रहे हैं.