साहित्यकार सत्ता के साथ नहीं होता
राजेश जोशी ने कहा साहित्यकार सत्ता के साथ कभी खड़ा नहीं होता है. इसी के साथ उन्होंने भाजपा से सवाल किया है कि जनसंघ का इतिहास लगभग साठ साल का हो गया है फिर भी उसके पास साहित्यकार क्यों नहीं हैं? देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में लेखकों और साहित्यकारों में पनपे गुस्से को भाजपा के नेताओं की बयानबाजी ने और बढ़ा दिया है. सरकार के रवैये से नाराज होकर साहित्य सम्मान लौटाने वाले जाने माने कवि और मध्य प्रदेश निवासी राजेश जोशी ने कहा है कि ‘राजनीतिक सत्ता हासिल करने के बाद भाजपा ‘मीडीओकर’, जो तीसरे और चौथे दर्जे के बेवकूफ हैं, उनके जरिए बौद्धिक सत्ता पर कब्जा करना चाहती है.’
देश में अभिव्यक्ति पर बढ़ रहे हमलों और उन पर भाजपा नेताओं तथा केंद्र सरकार के मंत्रियों के बेतुके बयान आने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से किसी तरह की प्रतिक्रिया न दिए जाने पर जोशी ने एक बातचीत के दौरान सवाल उठाए.
उन्होंने कहा, “तीन बड़े रचनाधर्मियों की हत्या के खिलाफ शुरू हुआ अभियान अब बड़ा रूप ले चुका है, वैज्ञानिक, इतिहासकार और फिल्म जगत से जुड़े लोग भी इसमें शामिल हो गए हैं, मगर सरकार अब भी इसे कमतर आंक रही है, सरकार को यह समझ लेना चाहिए कि जब विरोध बढ़ते जाते हैं और सरकारें ज्यादा हठधर्मी और जिद्दी हो जाती हैं तो उसके नुकसान होते हैं. लोकतंत्र में सरकारें हठधर्मी होकर राज नहीं कर सकतीं यह बात आपातकाल से सीख लेना चाहिए.”
जोशी ने आपातकाल का जिक्र करते हुए कहा, “आपातकाल से इस सरकार को भी सीख लेनी चाहिए, आपातकाल के बाद क्या हुआ, लोगों ने सरकार को उलट दिया, लिहाजा कोई भी सरकार जो जिद के साथ अपनी गलतियों के प्रति भी जिद्दी होगी, वह बहुत दिन तक टिक नहीं सकती, सरकार को विनम्र होना चाहिए और विनम्र होना पड़ेगा. जनता की बात को सुनना पड़ेगा. आपको जनता ने चुना है, नहीं तो जनता एक दिन आपको बाहर कर देगी, दिल्ली के चुनाव में इस बात को देखा गया है.”
केंद्र सरकार के मंत्रियों और भाजपा के नेताओं द्वारा साहित्यकारों पर राजनीति करने का आरोप लगाए जाने के सवाल पर जोशी ने कहा, “हर साहित्य की अपनी राजनीतिक दृष्टि होती है, वह लोकतांत्रिक हो सकती है, वामपंथी हो सकती है, एक तो यह पूछा जाना चाहिए भाजपा से जो पहले जनसंघ थी, उसका इतिहास लगभग साठ साल का हो गया है, वह अपने बुद्धिजीवी, रचनाकर क्यों पैदा नहीं कर पाए, आपके पास उतने बड़े रचनाकार, विचारक, साहित्यकार, इतिहासकार, समाजशास्त्री, कवि नहीं हैं जितने वामपंथियों के पास है. यह आपकी कमी है यानी आपकी बौद्धिकता में कोई घपला है.”
उन्होंने कहा, “आप जिस विचार को लेकर चल रहे हैं वह इतना बोदा है कि वह रचनाकर पैदा ही नहीं कर सकता है. यह हर किसी को सोचना चाहिए कि जब आप किसी पर एक उंगली उठाते हैं तो तीन उंगली आपकी तरफ होती है. भाजपा को यह सीखना चाहिए कि जब आप एक उंगली वामपंथियों की तरफ उठा रहे हैं तो तीन उंगलियां आपकी तरफ हैं, और वह इशारा कर रही हैं कि आप बुद्धिहीन है.”
जोशी ने सरकार की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहा, “सरकार ने एक तो साहित्यकारों की हत्या पर सख्त कदम नहीं उठाया, कुछ बोला नहीं और अब तक नहीं बोला है. सरकार इसलिए नहीं बोल रही है, क्योंकि यह संगठन तो उसके अपने हैं. दिक्कत तो यह है जो इस तरह का असहिष्णुता का माहौल बनाने वाले संगठन हैं, वह तो सत्ता में भागीदार दल के संगठन हैं. इतना ही नहीं जिस तरह के सांसदों और मंत्रियों के बयान आ रहे हैं, वह उनके अहंकारी होने का संकेत दे रहा है.”
जोशी ने सत्ता में बैठे लोगों के अहंकार का जिक्र करते हुए कहा, “सत्ता में बैठे लोगों में अहंकार दिख रहा है, यह अहंकार इन लोगों में इसलिए है, क्योंकि इन्होंने कभी सोचा ही नहीं था कि इन्हें सत्ता मिल सकती है. यह अहंकार आपके चेहरे से सारे नकाब हटा देता है और बता देता है कि आप सत्ता में बैठने के काबिल ही नहीं थे.”
वर्तमान हालात को जोशी ने आपातकाल से भी बुरा बताया. उनका कहना है कि तब तो घोषित आपातकाल था, साहित्यकारों ने विरोध किया, अखबारों ने संपादकीय को खाली छोड़ दिया. तब भी साहित्यकारों की हत्याएं नहीं हुई, अब तो दो वर्ष में तीन साहित्यकारों की हत्याएं हो चुकी हैं.
अभिव्यक्ति पर हो रहे हमलों को जोशी अपने तरह से परिभाषित करते है. उनका कहना है, “किसी भी देश में दो सत्ताएं होती हैं, एक राजनीतिक व दूसरी बौद्धिक. आजादी के बाद से देश की राजनीतिक सत्ता कांग्रेस और अन्य दलों के हाथ में रही, मगर बौद्धिक सत्ता प्रगतिशील लोगों या यूं कहें कि वामपंथियों के हाथों में रही और कांग्रेस ने इसमें दखल भी नहीं दिया. वहीं भाजपा एक विचारधारात्मक दल है, उसकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसे राजनीतिक सत्ता तो मिल गई है मगर बौद्धिक सत्ता उसके पास नहीं है. वह इस सत्ता को हथियाना चाहती है, मगर उसके पास न तो बौद्धिक लोग हैं और न ही साहित्यकार. इसलिए वह साहित्यकारों पर हमले करती है और अच्छी जगह पर गजेंद्र चौहान जैसे बेवकूफों को बैठा देती है.”
जोशी ने कहा, “बौद्धिक सत्ता पर कब्जे के लिए भाजपा अपने लोगों को तमाम अकादमियों में बैठा देना चाहती है, इससे पता चलता है कि आप देश की बौद्धिक सत्ता पर मीडीओकर, तीसरे और चौथे दर्जे के बेवकूफों को प्रमुख स्थानों पर बैठाकर कब्जा करना चाहते हैं.”
साहित्यकारों के सत्ता से चल रहे संघर्ष के सवाल पर जोशी का कहना है, “सत्ता और साहित्य दो विपरीत ध्रुव हैं, जिनके बीच दूरी होती है, क्योंकि साहित्यकार जनता की बात कहता है, वह सत्ता के प्रतिपक्ष में होता है. तभी तो भक्तिकाल में कवि कुंभनदास को कहना पड़ा था संतन को कहां सीकरी सो काम, आवत जात पनइयां टूटी बिसर गयो हरिनाम.’ आशय साफ है कि साहित्यकार सत्ता के साथ कभी खड़ा नहीं होता.”
उन्होंने कहा कि साहित्य हमेशा सत्ता के प्रतिरोध में रहा. काल कोई भी रहा हो, साहित्य हमेशा जनता की आवाज बना है. ऐसा हो सकता है कि कुछ काल में कुछ रचनाकार ऐसे रहे हों जो सत्ता के साथ चले हों, ये संभव है, मगर यह इस पर तय होगा कि सत्ता कैसी है. अगर सत्ता गलत है और उसके साथ साहित्यकार खड़ा होगा तो उसके साहित्यकार होने पर संदेह होगा और उंगलियां उठेंगी.
जोशी मानते हैं कि कई बार साहित्यकार और सत्ता के बीच टकराव की स्थितियां बनी हैं. आजादी की लड़ाई में यह टकराव हुआ और दिखा. चाहे भारतेंदु, माखन लाल चतुर्वेदी, सुभद्रा देवी चौहान हों, उन्हें ऊंची आवाज में बात करनी पड़ी थी. वर्तमान में भी साहित्यकारों का सत्ता से टकराव हुआ है, क्योंकि तीन बहुत बड़े रचनाकारों की हत्या कर दी गई, कुछ कट्टरतावादियों द्वारा. इस पर सरकार ने चुप्पी साध ली और विरोध तक नहीं जताया.
दूसरी ओर, सरकार द्वारा असहिष्णुता का ऐसा वातावरण निर्मित किया गया, जिसमें दादरी जैसे कांड हुए. अब जो असहिष्णुता का वातावरण बन रहा है वह लोकतंत्र के लिए घातक संकेत है, यह रचनाकार का धर्म है कि वह लोकतंत्र को बचाने के लिए खड़ा हो और हम लोग वही कर रहे हैं.