केजरीवाल झूठे और रजत शर्मा ?
नई दिल्ली | संवाददाता: अरविंद केजरीवाल को झूठा बताने वाले रजत शर्मा खुद झूठ में उलझ गये हैं. इंडिया टीवी पर 14 मार्च को प्रसारित 9 बजे के कार्यक्रम “आज की बात” में रजत शर्मा ने अरविंद केजरीवाल के कई पेंच खोलने की कोशिश की. बुखार होने और बीमार होने के बाद भी रजत शर्मा ने पत्रकारिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता साबित करने के लिये 14 मार्च का कार्यक्रम एंकर किया.
लेकिन कार्यक्रम के अंत में रजत शर्मा ने जो दावा किया, अब वह दावा सवालों के घेरे में है. रजत शर्मा का यह कार्यक्रम हर रोज दिखाया जा रहा है.
इस कार्यक्रम के अंत में रजत शर्मा ने अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम को संबोधित करते हुये कहा-“केजरीवाल जी, आपको पब्लिक लाइफ में आये हुये चार दिन हुये हैं.संघर्ष क्या होता है, ये आपको नहीं मालूम है. अपनी बात कहने की आजादी के लिये मैंने इमरजेंसी के ज़माने में जेल काटी है. उस ज़माने में जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश था,आज़ाद अखबार निकालने के लिये पुलिस मुझे पकड़ के ले गई और मैंने मार खाई. दो दिन तक थाने में टार्चर सहा. और अगर हिम्मत से सच कहने के लिये सौ बार और ज़ेल जाना पड़ेगा तो मैं तैयार हूं क्योंकि देश की जनता मेरे साथ है.”
रजत शर्मा के आपातकाल के जमाने के संघर्ष के दावा का वीडियो यू ट्यूब पर यहां उपलब्ध है, जिसके 41 मिनट के बाद के हिस्से में रजत शर्मा ने यह दावा किया है. बेहद ग़रीब परिवार के रजत शर्मा की कहानी संघर्ष से भरी हुई है. लेकिन रजत शर्मा ने जिस इमरजेंसी के ज़माने में जेल काटने की बात कही है, उसकी हक़ीकत ये है कि रजत शर्मा ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत ही 1982 के आसपास की थी.
आपातकाल 25 जून, 1975 को लगाया गया था और 21 मार्च 1977 तक लागू था. उस आपातकाल के बाद 24 मार्च 1977 से लेकर 28 जुलाई 1979 तक मोरारजी देसाई औऱ 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री रह चुके थे. रजत शर्मा ने एकाधिक बार यह कहा है कि उन्होंने 1982 में पहली बार ऑनलुकर में लेख लिखा था.
11 अप्रैल 2009 को बीबीसी को दिये एक साक्षात्कार के अंश देखें- “पत्रकार बनने की नहीं सोची था. सोचा था कि एम कॉम के बाद बैंक में नौकरी करेंगे और घर का भार कम करेंगे. एम कॉम के रिज़ल्ट का इंतज़ार कर रहा था तभी मेरी मुलाक़ात जयनंदा ठाकुर से हुई. उन्हें रिसर्चर की ज़रूरत थी. उन्होंने इसके लिए मुझे चार सौ रुपये महीने देने का वादा किया. एक दिन मैंने उनसे कहा कि जितनी सूचनाएँ मैं देता हूँ, वो सब तो आप इस्तेमाल नहीं करते. क्या मैं इसे इस्तेमाल कर सकता हूँ. फिर मैंने एक लेख ऑनलुकर पत्रिका को भेजा और उन्होंने इसके लिए मुझे 600 रुपये दिए. ये बात जुलाई 1982 की होगी. ऑनलुकर के एडीटर डीएम सिल्वेरा ने मुझे पत्रिका में बतौर ट्रेनी का ऑफ़र दिया.
इसे किस्मत कहें या कुछ और. 1982 के आखिर में उन्होंने मुझे संवाददाता बना दिया, 1984 में दिल्ली का ब्यूरो चीफ़. फिर 1985 में सिल्वेरा साहब ने इस्तीफ़ा दे दिया. मैगज़ीन के मालिक ने मुझे मुंबई बुलाया और कहा कि हम सोच रहे हैं आपको एडीटर बना दें. इसके बाद प्रीतिश नंदी के साथ मैंने चंद्रास्वामी के ख़िलाफ़ स्टिंग ऑपरेशन किया. मैगज़ीन बहुत अच्छी चली. तीन साल मैं उसका एडीटर रहा. उसके बाद एक साल संडे ऑब्ज़र्बर और फिर तीन साल द डेली में एडीटर रहा. फिर टेलीविज़न में आ गया.”
‘आप की अदालत’ लगा कर मशहूर हुये रजत शर्मा अब’आप’ की अदालत के कटघरे में हैं. जाहिर है, केजरीवाल को झूठा बताने की कोशिश में रजत शर्मा ऐसी बात कह गये हैं, जिसे साबित करना उनके लिये मुश्किल होगा.