रायपुर जंगल सफारी में 23 काले हिरणों की मौत: जिम्मेवारों को कौन बचा रहा?
रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ के जंगल सफारी में जानवरों की मौत का सिलसिला थमता नज़र नहीं आ रहा है. अकेले अगस्त के महीने में जंगल सफारी में 23 काले हिरणों की मौत हो गई. इस जंगल सफारी के 36 में से 35 काले हिरणों की कुछ महीनों के भीतर मौत हो चुकी है.
इससे पहले पिछले साल डॉक्टरों की लापरवाही से 17 चौसिंगा मारे जा चुके हैं.
लेकिन इन मौतों के लिए ज़िम्मेवार जंगल सफारी के डॉक्टर राकेश वर्मा को तमाम तरह के आरोप, जांच और विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर रमन सिंह के निर्देश के बाद भी वन विभाग ने हटाने की ज़रुरत नहीं समझी. हालत ये है कि एक के बाद एक जानवरों की मौत को, जंगल सफारी के अधिकारी लगातार छुपाने की कोशिश कर रहे हैं.
नवंबर में 17 चौसिंगा की मौत के बाद जब मामला विधानसभा में उठा तो पता चला कि आरोपी चिकित्सक जानवरों की मौत के सिलसिले के बीच, लिखित में मना करने के बाद भी छुट्टी मनाने चला गया था. कूट रचना, फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाने, जमानत पर रिहा होने की जानकारी छुपाने जैसे तमाम आरोप इस डॉक्टर के ख़िलाफ़ जांच में सही पाए गए.
इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर रमन सिंह ने इस डॉक्टर को हटाने के निर्देश दिए.
लेकिन राज्य के वन मंत्री केदार कश्यप के कथित रुप से करीबी होने की चर्चा के बीच आरोपी चिकित्सक के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने से वन विभाग पीछे हट गया.
शीर्ष वन अधिकारियों का हाल ये है कि जिन जानवरों की मौत के लिए इस चिकित्सक को ज़िम्मेवार माना गया, उसके लिए राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यप्राणी सुधीर अग्रवाल इस मामले में शुरु से ही डॉक्टर राकेश कुमार वर्मा को बचाने के लिए महज ‘चेतावनी देने’ की अनुशंसा कर चुके हैं.
यहां तक कि राकेश कुमार वर्मा की नियुक्ति की गड़बड़ी के मामले में भी सुधीर अग्रवाल ने कोई कार्रवाही नहीं की.
जानवरों की मौत और छुट्टी मनाते चिकित्सा अधिकारी
चौसिंगा भारत के वन्यप्राणियों की अनुसूची एक का प्राणी है. इसी श्रेणी में बाघ और दूसरे जानवर रखे गए हैं.
छत्तीसगढ़ के जंगल सफारी में पिछले साल नवंबर में 17 चौसिंगा की मौत के मामले में वन विभाग द्वारा गठित जांच समिति की रिपोर्ट बताती है कि 24 नवंबर 2023 को कई चौसिंगा की बीमारी की सूचना देने के बाद भी मुख्य चिकित्सा अधिकारी राकेश कुमार वर्मा जंगल सफारी नहीं पहुंचे. इसके उलट अगले दिन वे 10.30 बजे जंगल सफारी पहुंचे.
जांच दल के अनुसार अगर समय से जानवरों का इलाज शुरु किया जाता तो इनकी जान बचाई जा सकती थी. लेकिन राकेश वर्मा द्वारा अत्यधिक लापरवाही बरती गई.
जांच दल ने पाया कि बड़ी संख्या में चौसिंगा के मृत्यु की जानकारी भी डॉक्टर राकेश वर्मा ने जंगल सफारी के संचालक को नहीं दी. चौसिंगा की मौतों का सिलसिला अगले कई दिनों तक जारी रहा.
चौसिंगा की मौत के लिए गठित जांच दल ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अनुसूची-एक में शामिल वन्यप्राणियों की आकस्मिक मृत्यु हो रही थी, इसकी परवाह किए बिना, डॉक्टर राकेश कुमार वर्मा बिना किसी सक्षम अधिकारी की अनुमति के 26 नवंबर से 30 नवंबर तक अवकाश पर चले गए.
डॉक्टर राकेश वर्मा पर आरोप है कि वे बिना अनुमति के और मना करने के बाद भी तब अवकाश पर गए, जब उन्हें पता था कि उनकी अनुपस्थिति में जंगल सफारी की कनिष्ठ पशु चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर सोनम मिश्रा जंगल सफारी में अनुपस्थित थीं.
जांच दल ने कहा कि अगर डॉक्टर राकेश वर्मा ने यह कदाचार नहीं किया होता तो कई चौसिंगा नहीं मरते.
डॉ. वर्मा ने बनाई फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट
मरते हुए चौसिंगा को छोड़ कर छुट्टी मनाने चले गए डॉक्टर राकेश वर्मा ने इसके बाद भी फर्ज़ीवाड़ा करने में कमी नहीं की.
जांच दल की रिपोर्ट के अनुसार डॉक्टर वर्मा ने छुट्टी पर जाने से पहले पांच चौसिंगा में से केवल 2 चौसिंगा का ही पोस्टमार्टम किया गया और फिर पांच चौसिंगा की पोस्टमार्टम की फर्ज़ी रिपोर्ट तैयार कर दी.
जांच दल ने सवाल उठाए कि बिना पोस्टमार्टम के ही अगर चौसिंगा का दाह संस्कार करना था तो फर्ज़ी पोस्टमार्टम रिपोर्ट क्यों तैयार की गई?
लेकिन इतने सारे गंभीर आरोपों के बाद भी राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यप्राणी सुधीर अग्रवाल ने एक चिट्ठी जारी कर डॉक्टर राकेश कुमार वर्मा को महज ‘चेतावनी देने’ का सुझाव दे कर, अपनी तरफ से छुट्टी पा ली.
क़ानून के जानकार मानते हैं कि ऐसे मामलों में निलंबन के बजाय महज चेतावनी जारी करना, बताता है कि सुधीर अग्रवाल ने राकेश कुमार वर्मा को किसी भी तरह की कार्रवाई से बचाने की कोशिश की.
वन विभाग में संविलयन में फर्जीवाड़ा
डॉक्टर राकेश वर्मा के ख़िलाफ़ 8 करोड़ 44 लाख के घोटाले का आरोप भी रहा है.
इस मामले की शिकायत पिछले साल आम आदमी पार्टी की प्रियंका शुक्ला ने वन विभाग के शीर्ष अधिकारियों से लिखित में की थी. जांच में आरोप सही पाए गए.
लेकिन इस मामले में शीर्ष अधिकारियों ने राकेश कुमार वर्मा के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की.
शिकायत के अनुसार पशु चिकित्सक डॉक्टर राकेश कुमार वर्मा, पिता एल के वर्मा 30.08.2006 से 23.07.2007 तक सहायक परियोजना अधिकारी के तौर पर ज़िला पंचायत, कांकेर में कार्यरत थे. इस दौरान डॉक्टर राकेश वर्मा ने अपने सहयोगियों के साथ मिल कर राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में 8 करोड़, 44 लाख, 60 हज़ार, 719 रुपये रुपये का कपटपूर्ण दुर्विनियोग किया था.
इस मामले में राकेश वर्मा के ख़िलाफ़ 2010 में राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो, रायपुर द्वारा धारा 409, 420, 120 (बी) भारतीय दंड संहिता और धारा 13 (1) सी, 13 (1)डी, 13 (2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत अपराध क्रमांक 58/2010 दर्ज किया गया था. इस मामले में श्री वर्मा को निलंबित भी किया गया था. लेकिन 8.44 करोड़ के घोटाले के आरोपी राकेश वर्मा की गिरफ़्तारी नहीं हुई.
इस बीच आरोपी राकेश कुमार वर्मा पशु चिकित्सा विभाग से, प्रतिनियुक्ति पर वन विभाग में काम करने लगे. 2018 में आरोपी डॉक्टर राकेश कुमार वर्मा का संविलयन वन विभाग में कर दिया गया.
दिलचस्प यह है कि वन विभाग द्वारा राज्य शासन को जिन अधिकारियों के संविलयन का प्रस्ताव भेजा था, उस प्रस्ताव में डॉक्टर राकेश वर्मा का नाम ही शामिल नहीं था. लेकिन इस मामले में भ्रामक स्थिति बना कर डॉक्टर राकेश कुमार वर्मा का वन विभाग में गैरक़ानूनी तरीके से संविलयन कर दिया गया.
इस दौरान डॉक्टर राकेश कुमार वर्मा ने अपने खिलाफ दर्ज इस मामले को छुपा कर रखा और वन विभाग को कभी भी इस संदर्भ में जानकारी नहीं दी.
हाईकोर्ट से मिली सशर्त जमानत
2022 में 8.44 करोड़ के घोटाले के आरोप में डॉक्टर राकेश कुमार वर्मा की गिरफ़्तारी की सुगबुगाहट शुरु हुई तो डॉक्टर राकेश वर्मा ने कांकेर की स्थानीय न्यायालय में जमानत याचिका दायर की.
मामले की गंभीर प्रकृति को देखते हुए न्यायालय ने जमानत याचिका खारिज़ कर दी.
इसके बाद आरोपी डॉक्टर राकेश कुमार वर्मा ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में जमानत के लिए याचिका दायर की, जिसे अदालत ने सशर्त स्वीकार कर लिया.
अदालती कार्रवाई के दौरान डॉक्टर राकेश कुमार वर्मा कांकेर और उच्च न्यायालय में उपस्थित रहे लेकिन उन्होंने न तो वन विभाग को इसकी जानकारी दी और न ही वन विभाग से इस संबंध में कोई स्वीकृति हासिल की, जो अपने आप में अपराध है.
इस पूरे मामले की जांच कर के प्रतिवेदन शीर्ष अधिकारियों को भेजा गया. लेकिन इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई.
समझना मुश्किल नहीं है कि राज्य का वन विभाग, इन मामलों में आरोपी के साथ खड़ा है. कम से कम जंगल सफारी में होने वाली जानवरों की मौत की परवाह तो उसे नहीं ही है.