यहां नागपंचमी पर बरसते हैं पत्थर
चंदौली | एजेंसी: देश में ‘नाग पंचमी’ का त्योहार ‘नाग देवता’ की पूजा-अर्चना कर मनाया जाता है. देश के कुछ हिस्से जरूर इसके अपवाद जैसे पूर्वाचल के चंदौली जिले के दो गांव. इन गांवों के लोग इस त्योहार को एक-दूसरे को कंकड़-पत्थर और कीचड़ मारकर मनाते हैं. इन ग्रामीणों का मानना है कि इस प्राचीन परंपरा के निर्वहन से गांव में कोई बीमारी या ‘अनिष्ट’ नहीं होता है.
देश के सभी हिस्सों में त्योहारों को मनाने के अलग-अलग तौर-तरीके होते हैं और उनसे जुड़ी मान्यताएं भी हैं. अब ‘नाग पंचमी’ को ही ले लीजिए. आमतौर पर हर जगह यह त्योहार ‘नाग देवता’ की पूजा-अर्चना करने के बाद उन्हें दूध पिलाकर मनाया जाता है.
लेकिन पूर्वाचल के गांव महुआरी व विशुपुर के बाशिंदे इस दिन शाम को गंगा नदी के तट पर पहुंच एक-दूसरे पर कंकड़-पत्थर और कीचड़ बरसाते हैं. यह सिलसिला इतने पर ही खत्म नहीं हो जाता बल्कि तौहीनी भाषा बोलकर एक-दूसरे को शर्मिदा भी किया जाता हैं. हालांकि, बाद में सभी गले मिलकर बधाई देते हैं और कजरी व सावनी गीत का आनंद उठाते हैं.
महुआरी गांव के बुजुर्ग सुंदर सिंह ने बताया, “दोनों गांवों की यह सदियों पुरानी परंपरा है. किंवदंती है कि इस परंपरा को न निभाने पर लोगों का अमन चैन छिन जाता है और घोर ‘अनिष्ट’ होता है.” विशुपुर गांव के बुजुर्ग केदार सिंह ने कहा, “कंकड़-पत्थर और कीचड़ मारने के बाद सामाजिक भाईचारा व आपसी प्रेम को प्रदर्शित किया जाता है.”
वह बताते हैं कि दो दशक पूर्व एक घटना के चलते हुए तनाव को लेकर दोनों गांवों के लोगों ने इस परंपरा को नहीं निभाया था. जिसके बाद दोनों गांवों में महामारी फैल गई थी.
इन बुजुर्गों की बात से इसी गांव के स्नातक पास युवक धर्मेंद्र सिंह सहमत नहीं हैं. परंपरा को गलत ठहराते हुए उन्होंने कहा, “बुजुर्ग रूढ़िवादी परंपराओं को ज्यादा अंगीकार करते हैं जबकि यह किसी अंधविश्वास से कम नहीं है.” वह कहते हैं कि भला एक-दूसरे को पत्थर मारने से दैवीय आपदाएं कैसे रुक सकती हैं? कुल मिलाकर तीज-त्योहार मनाने के रीति-रिवाज कुछ भी हों, पर ऐसी परंपरा को कम से कम युवा पीढ़ी तो अंधविश्वास ही मान रही है.