माताएं गुमराह न हो
नई दिल्ली | एजेंसी: नवजात बच्चे को जन्म के बाद एक घंटे से लेकर छह महीने तक लगातार स्तनपान कराना चाहिए लेकिन एक नई मां और परिवार को यह समझाना लगातार मुश्किल होता जा रहा है. यह विशेषज्ञों का कहना है.
वे कहते हैं कि स्तनपान संबंधी मिथक आज भी गांवों और शहरों, दोनों जगह चल रहे हैं.
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता संजना चिश्ती ने कहा कि वह अब भी यह सुनती हैं कि शिशु मां का दूध पचा नहीं पाएगा. नवजात को शहद या पानी पिलाया जाता है. कई मामलों में मां के दूध के बजाय शिशु को मंदिर से लाया गया पवित्र जल पिलाया जाता है.
संजना ने कहा “जन्म से एक घंटे के अंदर शिशु को मां का पहला गाढ़ा पीला दूध पिलाना चाहिए क्योंकि इसमें रोग प्रतिरोधक गुण होते हैं. यह बात महिलाओं को समझाना बहुत मुश्किल है.”
वर्ष 2005-06 में हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-3) के अनुसार, भारत के शहरी इलाकों में जन्म से एक से आधे घंटे के अंदर स्तनपान कराने वाली माताओं का प्रतिशत सिर्फ 29 है जबकि ग्रामीण इलाकों में यह 21 प्रतिशत है.
बाल चिकित्सक प्रगति वाष्र्णेय ने बताया कि भारत में बच्चों के जन्म से 12 महीने तक गाय का दूध देना आम बात है. यह कुपोषण का कारण हो सकता है, इस दूध में मौजूद लैक्टोज के कारण बच्चे को गैस और दस्त की समस्या भी हो सकती है.
जिलास्तरीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण (डीएलएचएस) के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में मात्र 12 प्रतिशत माताएं अपने शिशु को छह महीने तक स्तनपान कराती हैं. यह हरियाणा के बाद दूसरा न्यूनम आंकड़ा है जहां यह मात्र 9.4 प्रतिशत है. इसके अलावा शहरों में लगभग 35 प्रतिशत और गांवों में लगभग 48 प्रतिशत बच्चों को जन्म के एक दिन के अंदर स्तनपान नहीं कराया जाता है.
बाल चिकित्सकों के अनुसार, गांवों में मिथक और पुरानी परंपराएं और शहरों में पेशेवर माताओं के पास समय की कमी के कारण माताएं स्तनपान नहीं करा पातीं.
विशेषज्ञों का कहना है कि सही समय पर स्तनपान न कराए जाने के कारण बच्चे कुपोषण का शिकार हो सकते हैं.
इंटरनेशल बेबी फूड एक्शन नेटवर्क (आईबीएफएएन) फॉर एशिया के क्षेत्रीय समन्वयक अरुण गुप्ता ने बताया कि शिशुओं के पूरक भोजन (डिब्बाबंद दूध) का प्रचार करने वाली कंपनियां माताओं को आकर्षित करती हैं जिससे माताएं गुमराह हो जाती हैं और स्तनपान कराना कम कर देती हैं.