राष्ट्र

चुनाव के बाद कड़वे दिनों का संकेत !

नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: प्रधानमंत्री मोदी ने कड़वे फैसले का संकेत दिया है. शनिवार को पणजी में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा “देश को बेहतर वित्तीय स्वास्थ्य की ओर ले जाने के लिए हमें कड़े और कड़वे फैसले लेने होंगे.” लोकसभा चुनाव के पहले अच्छे दिन आने वाले हैं की घोषणा करने वाले मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं के कहा “कड़े फैसले, कड़वी औषधि और वित्तीय समझदारी इस घड़ी देश के लिए आवश्यक है. मुझे विश्वास है कि आप मेरा साथ देंगे.” कठिन समय की चेतावनी देते हुए मोदी ने कहा, “बच्चे के प्रति अपनी मुहब्बत को जानते हुए भी मां को उसे ठीक करने के लिए कड़वी दवा पिलानी पड़ती है.”

शनिवार को दिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषण को बजट पूर्व का संकेत माना जा रहा है. अभी बजट पेश नहीं हुआ है बावजूद उसके यदि कड़वी औषधि की बात की जाती है तो यह कई पूर्ववर्ती सरकारों की याद दिला देती है जिन्होंने कड़े वित्तीय अनुशासन लागू करने के पहले इसी तरह की बात की थी. जाहिर है कि उस वित्तीय अनुशासन का भार आम जनता ने ही उठाया था. नतीजन सामाजिक सुरक्षा में कटौती की गई थी. जिसके तहत सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, पेंशन जैसी सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्रों के लिये वित्तीय आबंटन कम कर दिया था. जिसे लोग आज भी भोग रहें हैं.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को आगे कहा “आर्थिक विसंगतियों को दूर करने के लिए अगले एक-दो साल तक कड़े और मज़बूत फैसले लेने होंगे और यही कदम भारत के आत्मविश्वास को बहाल करेगा और बढ़ावा मिलेगा.” अब इसमें गौर करने वाली बात यह है कि आर्थिक विसंगति की कौन सी समझ पीएमओ तथा वित्त मंत्रालय में काम कर रही है. आज देश की सबसे बड़ी आर्थिक विसंगति यह है कि देश के सबसे रईस व्यक्ति मुकेश अंबानी ‘एंटालिया’ में रहते हैं वहीं करोड़ों लोग ऐसे झोपड़ियों में रहते हैं जहां न तो निस्तारी की समुचित व्यवस्था है और ही पीने का साफ पानी उपलब्ध है. यहां तक की मध्यम वर्ग के लोग जिन गलियों में रहते हैं वहां की बजबजाती नालियां मच्छरों की पनाहगाह बनी हुई हैं.

यदि इस विसंगति को दूर किया जाने वाला है तो आम जनता को कड़े फैसले से आगाह क्यों किया जा रहा है. आम आदमी तो ऐसे किसी भी कदम का खुलकर स्वागत करेगा तथा आने वाले कई लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी को चुनाव प्रचार में निकलने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ेगी. आगाह तो उन्हें करना चाहिये जिनके पास सब कुछ से बहुत कुछ ज्यादा है, जिनके पास कुछ भी नहीं है उन्हें आगाह किये जाने की जरूरत क्यों आन पड़ी है. कहीं ऐसा तो नहीं कि आर्थिक विसंगति को दूर करने के लिये मनमोहन सिंहनुमा फैसलों को जारी रखा जाना है.

गौर करने वाली बात यह है कि नरेन्द्र मोदी ने यहां तक संकेत दिया है ”मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि मेरे फैसलों से उस असीम प्यार पर चोट लग सकती है जो देश ने मुझे दिया है. लेकिन मेरे देशवासी ऐसा समझेंगे कि इन फैसलों से वित्तीय हालात दुरुस्त होंगी और उसके बाद मैं उस प्यार को फिर हासिल कर लूंगा.” इसके थोड़ी ही देर बाद नरेन्द्र मोदी ने सोशल नेटवर्किग साइट ट्वीटर पर एक लघु संदेश में कहा, ”राष्ट्रीय हित में कड़े फैसलों का समय आ गया है. हम जो भी फैसला करेंगे, वे शुद्ध रूप से राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर लिए जाएंगे.”

अब बात को राष्ट्रीय हितों से जोड़ा जा रहा है. राष्ट्रीय हित से क्या तात्पर्य हो सकता है. आखिरकार इस बार के लोकसभा चुनाव में 66.38 फीसदी लोगों ने मतदान किया है जो देश के संसदीय इतिहास में सबसे ज्यादा है. इतने ज्यादा मत पड़ने का अर्थ यह नहीं है कि जनता कड़वे घूंट के लिये तैयार है. यदि कड़वी औषधि पिलानी है तो उन धन्ना सेठों को पिलाई जाये जिनके कुछ सालों पहले 5.28 लाख करोड़ रुपयों के टैक्स माफ कर दिये गये थे. ज्ञात रहे कि यह इतनी बड़ी रकम थी कि यह देश के सकल घरेलू उत्पादन के 6-7 फीसदी के करीब की थी. आप भी सहमत होंगे कि राष्ट्र हित बहुसंख्य गरीब आबादी को ऊपर उठाने से होगा न कि मनमोहन सिंह की नीतियों को जारी रखने से जिससे टाटा-अंबानी-अडानी को फायदा पहुंचता हो.

बजट के पहले सभी पक्षों से विचार विमर्श किया जा रहा है परन्तु इससे उस आवाम को अछूता रखा गया है जिसके वोट से मोदी ने प्रधानमंत्री की संभाली है. आवाम अब आगे किसी भी तरह की कड़वी औषधि खाने के हालत में नहीं है. उसके पास ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिससे उसे और मरहूम किया जा सके. मुद्दे की बात यह है कि लोकसभा चुनाव के बाद आवाम अच्छे दिनों की प्रतीक्षा बड़ी बेकरारी से कर है, कड़वे घूंट की नहीं.

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